Lok Sabha Speaker: स्‍पीकर पर पहले भी हुई रार! इतिहास में पहली बार होगा आर-पार!
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Lok Sabha Speaker: स्‍पीकर पर पहले भी हुई रार! इतिहास में पहली बार होगा आर-पार!

Lok Sabha Speaker Election: संसदीय परंपरा का हवाला देते हुए विपक्ष डिप्‍टी स्‍पीकर का पद मांग रहा था और बदले में स्‍पीकर के पद पर एनडीए के उम्‍मीदवार को समर्थन देने को तैयार था. लेकिन इस मामले में सहमति नहीं बनने के कारण अंतिम समय में कांग्रेस ने के सुरेश को विपक्ष की तरफ से प्रत्‍याशी बना दिया. सत्‍तारूढ़ एनडीए ने एक बार फिर ओम बिरला को प्रत्‍याशी बनाया है.

Lok Sabha Speaker: स्‍पीकर पर पहले भी हुई रार! इतिहास में पहली बार होगा आर-पार!

Om Birla Vs K Suresh: भारत के संसदीय इतिहास में अभी तक आमतौर पर स्‍पीकर का चुनाव सर्वसम्‍मति से होता रहा है. लिहाजा आज तक इस पद पर कोई चुनाव नहीं हुआ है. लेकिन पहली बार पक्ष और विपक्ष के बीच सर्वसम्‍मति नहीं बनने के कारण लोकसभा के अध्‍यक्ष पद पर चुनाव होने जा रहा है. दरअसल संसदीय परंपरा का हवाला देते हुए विपक्ष डिप्‍टी स्‍पीकर का पद मांग रहा था और बदले में स्‍पीकर के पद पर एनडीए के उम्‍मीदवार को समर्थन देने को तैयार था. लेकिन इस मामले में सहमति नहीं बनने के कारण अंतिम समय में कांग्रेस ने के सुरेश को विपक्ष की तरफ से प्रत्‍याशी बना दिया. सत्‍तारूढ़ एनडीए ने एक बार फिर ओम बिरला को प्रत्‍याशी बनाया है.

चुनाव का तरीका
लोकसभा अध्‍यक्ष का चुनाव संविधान के अनुच्‍छेद 93 के तहत किया जाता है. इसके तहत सदस्‍यों को चुनाव से एक दिन पहले अपने प्रत्‍याशियों के समर्थन का नोटिस जमा करना होता है. उसके बाद चुनाव में साधारण बहुमत के जरिये लोकसभा अध्‍यक्ष का चुनाव होता है. यानी जिस प्रत्‍याशी को आधे से ज्‍यादा सांसदों का वोट मिलता है वो स्‍पीकर बनता है. लोकसभा के स्‍पीकर सदन के कामकाज को सुचारू रूप  से चलाने के लिए जिम्‍मेदार होते हैं. स्‍पीकर संसदीय बैठकों का एजेंडा भी तय करते हैं और विवाद की स्थिति में नियमानुसार कार्रवाई करते हैं. स्‍पीकर से अपेक्षा होती है कि वह तटस्‍थ होकर फैसले लें. इस संदर्भ में नीलम संजीव रेड्डी का जिक्र करना जरूरी है क्‍योंकि उन्‍होंने तटस्‍थता के सिद्धांत का पालन करते हुए अध्‍यक्ष बनने के बाद कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी.

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इसी तरह मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में सोमनाथ चटर्जी अध्‍यक्ष बने थे. वह सीपीएम के थे और इस पार्टी ने बाहर से कांग्रेस को समर्थन दिया था. 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के मसले पर विवाद हो गया था और सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. पार्टी ने लोकसभा अध्‍यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी को भी अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा देने के लिए कहा लेकिन उन्‍होंने तटस्‍थता के सिद्धांत का हवाला देते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया. नतीजतन उनको पार्टी से निष्‍कासित कर दिया गया. 

जब माहौल एकदम अलग था...
हालांकि कई बार ऐसे मौके भी आए जब सत्‍ता पक्ष की तरफ से सहयोगी दल को लोकसभा स्‍पीकर का पद दिया गया. 12वीं लोकसभा में जब पहली बार अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्‍व में एनडीए की सरकार बनी तो टीडीपी नेता जीएमसी बालयोगी को स्‍पीकर बनाया गया. 13वीं लोकसभा के दौरान बालयोगी की हेलीकॉप्‍टर दुर्घटना में मौत के बाद शिवसेना नेता मनोहर जोशी को स्‍पीकर बनाया गया.  

ओम बिरला यदि जीते बनाएंगे ये रिकॉर्ड
यदि ओम बिरला लगातार दूसरी बार स्‍पीकर बनते हैं तो एम. के अयंगर, जी. एस. ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जीएमसी बालयोगी के बाद लगातार दो लोकसभाओं के अध्‍यक्ष बनने के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे. हालांकि इनमें से बलराम जाखड़ ही अपने दोनों कार्यकाल पूरे कर सके. वह 1980 से 1989 तक लोकसभा स्‍पीकर रहे. 22 जनवरी, 1980 को सातवीं लोकसभा के अध्यक्ष  बने. उसके बाद लगातार दूसरी बार जाखड़ 16 जनवरी, 1985 को आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष बने.

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