Opinion: श्रद्धा वालकर मर्डर, तलाक रेट... जब संसद में लिव-इन को बैन करने की हुई मांग, क्या आप सहमत हैं?
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Opinion: श्रद्धा वालकर मर्डर, तलाक रेट... जब संसद में लिव-इन को बैन करने की हुई मांग, क्या आप सहमत हैं?

Shradha Aftab Live-in case: क्या लिव-इन रिलेशनशिप समाज में बीमारी की तरह फैल रहा है और इससे तलाक की दर बढ़ी है? यह सवाल संसद तक पहुंच गया है. श्रद्धा मर्डर का जिक्र करते हुए इसे बैन करने की मांग की गई है लेकिन क्या बैन लगाने से युवा मान जाएंगे?

Opinion: श्रद्धा वालकर मर्डर, तलाक रेट... जब संसद में लिव-इन को बैन करने की हुई मांग, क्या आप सहमत हैं?

जब कोई एडल्ट लड़का और लड़की बिना शादी किए एक छत के नीचे रहना शुरू करते हैं तो इसे लिव-इन कहा जाता है. उनका रिश्ता पति-पत्नी की तरह ही होता है लेकिन विवाह का बंधन नहीं होता है. कुछ महीने पहले देश को झकझोर देने वाले श्रद्धा मर्डर केस में पता चला था कि वह और आफताब लिव-इन में ही थे. किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ फिर आफताब ने जो किया उसने प्यार और इश्क जैसे शब्दों से लोगों का भरोसा डिगा दिया. उसने श्रद्धा के करीब 35 टुकड़े कर उसे जंगल में फेंक दिया. उस समय भी यह बहस हुई थी कि लिव-इन रिलेशन क्या ठीक है? अब संसद में भाजपा के सांसद धर्मबीर सिंह ने इसे 'बीमारी' कहा है और इसके खिलाफ कानून बनाने की मांग कर दी है. उन्होंने भी श्रद्धा वालकर मर्डर का जिक्र करते हुए अपना तर्क रखा. अगर आप आम लोगों या सोशल मीडिया पर पूछेंगे कि लिव-इन पर कानून बनना चाहिए या नहीं, तो कुछ लोग यह जरूर कहेंगे कि जब लड़का-लड़की बालिग हैं तो वे चाहे जो करें इसमें सरकार क्यों दखल देगी? जब अपने देश में बीफ या इस तरह के फूड्स पर बहस होती है तो कुछ लोग ऐसा ही तर्क दोहराते हैं कि क्या अब सरकार के हिसाब से खाना होगा? इसी तरह की चर्चा एडल्ट मूवी देखने को लेकर होती है. कुछ लोग पॉर्न साइट पर बैन का विरोध करते हैं. उनका तर्क होता है कि सरकार बेडरूम में ताक-झांक क्यों करेगी? हालांकि आजकल ऐसे भी मामले सामने आने लगे हैं जब स्टेशन पर या कोई नेता पॉर्न देखता देख लिया जाता है.

क्या लिव-इन बीमारी है?

खैर, वापस लिव-इन पर आते हैं. हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. इसके भी हैं. आजकल वेब सीरीज में गाली सुनकर मुस्कुराने वाली युवा पीढ़ी जिंदादिल तरीके से रहना चाहती हैं. नो रोकटोक, ज्यादा इंस्टाग्राम, पढ़ाई के साथ रात में पार्टी का ट्रेंड, घर की रोटी से ज्यादा पिज्जा प्रेम, पकौड़ी से ज्यादा सड़क किनारे मोमोज का चस्का... ऐसी चीजों पर अगर आप गौर करें तो समझ में आता है कि भारतीय संस्कृति स्थिर कहां है, वह तो निरंतर बदल रही है. हां कुछ लोगों ने प्राचीन परंपराओं, खानपान, अनुष्ठान और आदतों को संभाले रखा है. वे निभा रहे हैं. लेकिन समाज तेजी से बदला है और निरंतर यह प्रक्रिया चल रही है. पश्चिम की चीजें यहां आएंगी तो लोगों का प्रभावित होना लाजिमी है. ऐसे में इसे बीमारी समझने की बजाय सुधार पर ही फोकस होना चाहिए.

पढ़िए, सांसद जी ने कहा क्या

हरियाणा के सांसद धर्मबीर सिंह ने लोकसभा में लिव-इन रिलेशन का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यह एक गंभीर और ज्वलंत मसला है. सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति भाईजारे और 'वसुधैव कुटुम्बकम' के लिए जानी जाती है. हमारा सामाजिक तानाबाना दुनिया में सबसे अलग है. पूरी दुनिया के लोग भारतीय संस्कृति की 'विभिन्नता में एकता' के कायल हैं. भारतीय समाज में सदियों से तयशुदा शादियों की परंपरा रही है. आज भी देश में एक बड़ा तबका अपने माता-पिता या पारिवारिक सदस्यों द्वारा तय की गई शादियों को ही प्राथमिकता देता है. इसमें दूल्हा-दुलहन की सहमति भी होती है.

भिवानी महेंद्रगढ़ से भाजपा सांसद ने कहा कि तयशुदा शादियां कई चीजों को ध्यान में रखकर कराई जाती हैं, जैसे- सामाजिक और व्यक्तिगत मूल्य और पसंद आदि. परिवारों की पृष्ठभूमि को भी प्राथमिकता दी जाती है. भारत में शादी को पवित्र बंधन माना जाता है जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है. यहां तलाक की दर बहुत ही कम है. हालांकि हाल के वर्षों में तलाक की दर बढ़ रही है जिसमें ज्यादातर प्रेम विवाह होता है. मेरा एक सुझाव है कि प्रेम विवाह में लड़का और लड़की के मां-बाप की सहमति को जरूरी बनाया जाए. भारत के बहुत बड़े भाग में सम-गोत्र और एक ही गांव में शादी नहीं होती है... प्रेम विवाह से गांव में झगड़े बहुत होते हैं और खानदान बर्बाद हो जाते हैं इसलिए दोनों परिवारों की सहमति जरूरी बनाई जाए.

उन्होंने आगे कहा कि आजकल समाज में एक नई बीमारी ने जन्म लिया है. वैसे तो यह बीमारी पश्चिमी देशों की है. इस सामाजिक बुराई को लिव-इन रिलेशनशिप कहते हैं. लिव-इन रिलेशन एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें दो लोग महिला या पुरुष बिना शादी के साथ रहते हैं. इस तरह के संबंध पश्चिमी देशों में बहुत आम हो चुके हैं लेकिन यह बुराई हमारे यहां भी तेजी से फैल रही है. इसका नतीजा भी भयानक होता है. हाल ही में श्रद्धा और आफताब का मामला सामने आया था जिसमें दोनों लिवइन रिलेशनशिप में रहते थे. रोजाना कोई न कोई केस सामने आ जाता है. इससे हमारा कल्चर तो बर्बाद हो ही रहा है समाज में नफरत और बुराई भी फैल रही है. अगर यही हाल रहा तो हमारी संस्कृति एक दिन दम तोड़ देगी. उन्होंने आखिर में सरकार से जल्द से जल्द लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ कानून बनाने की मांग की है. 

सरकार करे तो क्या करे?

यह बड़ा मसला है. सांसद महोदय की चिंता यूं ही या निरर्थक नहीं है. उनकी चिंता अपनी जगह उचित है. कोई नहीं चाहता कि उसकी बेटी के साथ वो हो जो श्रद्धा के साथ हुआ तो क्या लिव-इन को बैन कर दिया जाए? क्या ऐसा करने से युवा साथ रहना छोड़ देंगे. फिर बात मोरल पुलिसिंग पर आकर अटक जाएगी. बड़े-बुजुर्ग कहते आए हैं कि बांधने से बाजार नहीं लगती. किसी भी रिश्ते या फैसले की खामियों को युवाओं के मन-मस्तिष्क में डालना जरूरी है. वह खुद ये समझें कि क्या ठीक है क्या गलत. सीधे रोक लगाने से विद्रोह कर बैठेंगे फिर हमारा परिवार बिखर सकता है. कुछ ऐसा किया जाए कि लिव-इन में रहने की जरूरत ही न हो. जहां तक मैंने हॉलीवुड की फिल्में देखने से समझा है कि पश्चिम में युवा होते ही मां-बाप से अलग रहकर कमाने और घर बसाने का चलन है. यहां बसाने का मतलब शादी बिल्कुल नहीं है. वहां बड़े-बड़े नेता लिव-इन में रहते हैं. इसे हमें समझना होगा कि उनमें और हममें अंतर क्या है, वहां पत्नी या धर्मपत्नी से ज्यादा पार्टनर कहा जाता है. शादी का कॉन्सेप्ट उनके लिए बेकार है. शादी को वे बंधन मानते हैं. हर जरूरतें जब ऐसे ही पूरी हो जाएं तो भावनाओं को तवज्जो क्यों दी जाए, उनका ऐसा मानना होता है. उनके हिसाब से लिव-इन ठीक भी हो सकता है लेकिन हमारे यहां तो परिवार, संयुक्त परिवार का कॉन्सेप्ट है.

आज हम भले ही फ्लैट में बीवी-बच्चों के साथ रहने लगे हों पर त्योहार पर तो घर ही भागते हैं. मां-बाप से हमेशा जुड़े रहते हैं. उनकी सेहत की फिक्र होती है. हमारे लिए ऐसी क्या जरूरत है कि हम बिना शादी किए किसी लड़की या लड़के के साथ फ्लैट या कमरा साझा करें? यह सवाल युवाओं पर ही छोड़ना होगा. इस पर मीडिया के जरिए बहस होनी चाहिए. एक स्वस्थ और गंभीर डिबेट की जरूरत है जिससे पश्चिम के फॉर्म्युले को हूबहू अपनाने की बजाय भारतीय युवा अपनी जरूरतों और दृष्टिकोण को क्लियर रखें. हो सकता है आप लिव-इन से सहमत या असहमत हों, पर इस डिबेट में शामिल जरूर हो सकते हैं. 

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