Explained: इतिहास में पहली बार! क्या सच में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को हटा सकते हैं विपक्षी दल?
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Explained: इतिहास में पहली बार! क्या सच में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को हटा सकते हैं विपक्षी दल?

No Confidence Motion: जगदीप धनखड़ और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ के घटक दलों के बीच तल्ख रिश्तों के बीच कई विपक्षी दल उन्हें उपराष्ट्रपति के पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने संबंधी नोटिस दिया हैं. बता दें कि पार्टियां संविधान के अनुच्छेद 67B के तहत प्रस्ताव पेश कर सकती है.

Explained: इतिहास में पहली बार! क्या सच में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को हटा सकते हैं विपक्षी दल?

Rajya Sabha No Confidence Motion: विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया ब्लॉक’ के घटक दलों ने राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को लेकर नोटिस दिया है. इंडिया ब्लॉक ने जगदीप धनकड़ पर कार्यवाही के दौरान पक्षपात करने का आरोप लगाया है और उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आएगी. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि राज्यसभा के माननीय सभापति द्वारा अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीके से राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करने के कारण INDIA ग्रुप के सभी घटक दलों के पास उनके खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

क्या सच में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को हटा सकते हैं विपक्षी दल?

विपक्षी दल राज्यसभा में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए हैं. इंडिया ब्लॉक द्वारा सदन में पक्षपातपूर्ण कार्यप्रणाली का आरोप लगाते हुए राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस दिया है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ पेश किए गए नोटिस में कांग्रेस, टीएमसी, आप, सपा, डीएमके, सीपीआई और आरजेडी जैसी पार्टियों के 60 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं. पार्टियों संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत अविश्वास प्रस्ताव पेश करेंगी.

क्या है उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया?

हालांकि, विपक्षी दलों का यह कदम विफल हो सकता है, क्योंकि संख्या विपक्ष के पक्ष में नहीं है. अध्यक्ष को हटाने की प्रक्रिया राज्यसभा में प्रस्ताव पेश करके शुरू की जानी चाहिए. प्रस्ताव को सदन में एक सदस्य द्वारा पेश किया जाना चाहिए और उस दिन सदन में उपस्थित 50 प्रतिशत सदस्यों द्वारा पारित किया जाना चाहिए. यदि प्रस्ताव राज्यसभा से पारित हो जाता है तो इसे स्वीकार किए जाने के लिए लोकसभा द्वारा बहुमत से पारित किया जाना चाहिए. यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 67(बी), 92 और 100 का पालन करती है.

क्या है अनुच्छेद 67(बी)?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67(बी) के अनुसार, उपराष्ट्रपति को तभी हटाया जा सकता है, जब राज्यसभा में प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद उसे 50 प्रतिशत सदस्यों द्वारा पारित किया गया है. इसके बाद लोकसभा भी उस प्रस्ताव पर सहमत हो. हालांकि, इसके बाद भी इसके लिए 14 दिन का नोटिस देना होता है. अनुच्छेद 67 में लिखा है कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है. उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को एक लेटर लिख उस पर दस्तखत कर अपना पद त्याग सकता है. अगर उसके पद की अवधि खत्म भी हो गई है, तो उसके उत्ताधिकारी के पद ग्रहण करने तक वह उस पद पर बना रहेगा.

ऐसा हुआ तो भारत के संसदीय इतिहास में पहला मौका

अगर ऐसा होता है तो यह भारत के संसदीय इतिहास में सभापति को हटाने का पहला प्रयास होगा और इसे अध्यक्ष के लिए शर्मिंदगी के रूप में देखा जाएगा. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, विपक्षी सूत्रों ने कहा कि अगस्त में मॉनसून सत्र के दौरान जब इस कदम की योजना बनाई गई थी, तब उनके पास सभी इडिया ब्लॉक दलों के 'आवश्यक संख्या में हस्ताक्षर' थे, लेकिन उन्होंने आगे नहीं बढ़ने दिया क्योंकि उन्होंने जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) को 'एक और मौका' देने का फैसला किया था. हालांकि, अब विपक्ष ने आगे बढ़ने के लिए राजी कर लिया है.

उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया या सिर्फ मैसेज देने की कवायद

संख्या जुटाने के अलावा, विपक्ष को अध्यक्ष को हटाने के लिए 14 दिन के नोटिस से भी गुजरना होगा. सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अगुवाई की थी और टीएमसी-एसपी के अलावा अन्य भारतीय ब्लॉक दलों ने इसका समर्थन किया था. टीएमसी के एक सूत्र ने कहा, 'यह कुर्सी के बारे में नहीं है, यह भाजपा के बारे में है.'

सूत्रों ने कहा कि अगस्त में विपक्षी दल इस बात से चिंतित थे कि विपक्ष के नेता का माइक्रोफोन कथित तौर पर बार-बार बंद किया जा रहा था. एक अन्य सूत्र ने कहा, 'विपक्ष चाहता है कि सदन नियमों और परंपराओं के अनुसार चले और सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी अस्वीकार्य है.' कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा, 'विपक्ष चाहता है कि संसद चले. पिछले दो-तीन दिनों में यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार नहीं चाहती कि सदन चले. आज मैंने राज्यसभा में जो देखा वह अविश्वसनीय था. विपक्ष के नेता को बोलने की अनुमति नहीं दी गई और सदन के नेता को बोलने के कई मौके दिए गए.'

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