शराब के सेवन से हमारे शरीर को होने वाले नुकसान के बारे में तो हम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह हमारे दिमाग को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है?
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शराब के सेवन से हमारे शरीर को होने वाले नुकसान के बारे में तो हम सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह हमारे दिमाग को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है? शराब दिमाग के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर सोचने-समझने की क्षमता, डिमेंशिया और व्यवहार को बिगाड़ देती है.
बीएलके मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी और हेड न्यूरो इंटरवेंशन के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ.विनित बंगा ने विस्तार से बताया कि शराब दिमाग के किन पांच महत्वपूर्ण क्षेत्रों को प्रभावित करती है. चलिए जानते हैं.
1. न्यूरोट्रांसमीटर एक्टिविटी
दिमाग में तंत्रिका संदेशों के आदान-प्रदान में न्यूरोट्रांसमीटर नामक कैमिकल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. शराब इन न्यूरोट्रांसमीटर्स के काम को बदल देती है. यह 'गाबा' (GABA) नामक अवरोधक न्यूरोट्रांसमीटर के प्रभाव को बढ़ा देती है, जिससे आराम और सुस्ती का अनुभव होता है. इसके उल्टा, यह उत्तेजक न्यूरोट्रांसमीटर 'ग्लूटामेट' (Glutamate) के काम को रोकती है, जिससे सोचने-समझने और प्रोडक्टिविटी में कमी आ सकती है.
2. दिमाग की संरचना
ज्यादा शराब का सेवन दिमाग की संरचना में बदलाव ला सकता है. इससे दिमाग के टिशू का आकार कम हो सकता है और तरल पदार्थ से भरे हुए दिमागी कोष्ठ (वेंट्रिकल्स) का आकार बढ़ सकता है. इसका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है, मेमोरी, ध्यान लगाने और निर्णय लेने में परेशानी होती है.
3. न्यूरोकेमिकल असंतुलन
शराब का लंबे समय तक सेवन न्यूरोट्रांसमीटर के नाज़ुक संतुलन को बिगाड़ देता है. यह असंतुलन डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे मूड संबंधी बीमारियों को जन्म देता है. साथ ही, इससे आत्मसंयम में कमी आती है.
4. मेसोलेम्बिक मार्ग
शराब, डोपामाइन के स्तर को बढ़ाकर दिमाग के मेसोलेम्बिक देने वाले तंत्र को सक्रिय कर देती है, जिससे खुशी और प्रोत्साहन की अनुभूति होती है. समय के साथ, शराब के बार-बार सेवन से ये इनाम पथ कम सेंसिटिविटी हो जाते हैं, जिससे शराब के प्रति सहनशीलता (टॉलरेंस) बन जाती है.
5. दिमाग का काम
शराब दिमाग के उन क्षेत्रों को प्रभावित करती है जो निर्णय लेने और समस्याओं को सुलझाने को कंट्रोल करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. इससे तर्क करने और समस्याओं को सुलझाने की क्षमता कम हो जाती है और खतरा उठाने वाला व्यवहार बढ़ जाता है.