Explainer: सड़क का नाम बदलने का प्रोसेस क्या है? किस आधार पर नया नाम होता है सेलेक्ट या रिजेक्ट
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Explainer: सड़क का नाम बदलने का प्रोसेस क्या है? किस आधार पर नया नाम होता है सेलेक्ट या रिजेक्ट

Name Change Demand Of Babur Road: किसी सड़क का नाम किस आधार पर बदला जाता है? सड़क का नया नाम कैसे चुना जाता है? इसका पूरा प्रोसेस क्या है, आइए इसके बारे में जानते हैं.

Explainer: सड़क का नाम बदलने का प्रोसेस क्या है? किस आधार पर नया नाम होता है सेलेक्ट या रिजेक्ट

Babur Road Name Change: दिल्ली में आज बाबर रोड (Babur Road) के साइन बोर्ड पर अयोध्या मार्ग का स्टीकर चिपकाया गया. ये काम हिंदू सेना (Hindu Sena) ने किया. लेकिन इससे सड़कों के ऐतिहासिक नाम बदलने पर बहस छिड़ गई है. लोग बात कर रहे हैं कि नाम बदलना सही है या नहीं. क्या नाम बदलना जरूरी है? इसके साथ ही हर कोई ये भी जानना चाहता है कि अगर किसी रोड का नाम बदल जाता है तो उसका प्रोसेस क्या होता है. किसके पास इसकी रिक्वेस्ट जाती है. तो आइए इसका पूरा प्रोसेस जानते हैं कि नाम कैसे बदलना जाता है? उसके लिए क्या क्राइटेरिया होता है?

नाम बदलने का पूरा प्रोसेस क्या है?

बता दें कि सड़कों का नाम बदलने की रिक्वेस्ट उस नगर पालिका या महापालिका के पास भेजी जाती है, जहां की सड़क का नाम बदला जाना है. जैसे दिल्ली में अगर बाबर रोड का नाम बदलना है तो इसके लिए अपील नई दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (NDMC) के पास जाएगी. ये रिक्वेस्ट सरकार, किसी संगठन या किसी आम नागरिक की तरफ से जा सकती है. नाम बदलने की रिक्वेस्ट के एजेंडे को NDMC काउंसिल के सामने रखा जाता है. जिसमें चेयरपर्सन मिलाकर 13 सदस्य होते हैं. अगर काउंसिल प्रस्ताव को पास कर देती है तो इसे दिल्ली सरकार के अप्रूवल के लिए अर्बन डेवलपमेंट डिपार्टमेंट की रोड नेमिंग अथारिटी को भेजा जाता है. अगर वहां से नाम बदलने की अनुमति मिल जाती है एक लेटर पोस्टमास्टर जनरल दिल्ली को भेजा जाता है, जिसमें NDMC बताया जाता है कि नाम बदलने अनुमति मिल गई है.

नाम बदलने की मांग एक्सेप्ट या रिजेक्ट कैसे होती है?

नाम बदलने के लिए कुछ मापदंड रखे गए हैं, उन्हीं के आधार पर नाम बदलने की मांग को मंजूरी मिलती है. नाम बदलने के लिए जो भी नाम आता है, उसका इतिहास से वास्ता होना चाहिए. उसमें लोगों की भावनाओं का सम्मान होना चाहिए. यह भी देखा जाता है कि जिसके नाम पर सड़क का नाम रखा जाना है, उस शख्सियत को लोग पहचानें, उसके बारे में जानें, ऐसी जरूरत है भी या नहीं. नया नाम ऐसा नहीं होना चाहिए जो इतिहास से लोगों को वंचित करता हो. इसके अलावा वह पोस्ट ऑफिस या लोगों के बीच कन्फ्यूजन पैदा करने वाला ना हो. ये भी जान लीजिए कि NDMC के दिशानिर्देश में नाम बदलना एक अपवाद कहा गया है.

नया नहीं है सड़कों का नाम बदलना

जान लें कि सड़कों के नाम बदलना कुछ नया नहीं है. यह आजादी के बाद से लगातार हो रहा है. दिल्ली में अंग्रेजों के नाम वाली तमाम सड़कों का नाम हिंदुस्तानी महापुरुषों के नाम पर रखा गया है. जैसे अंग्रेजों ने जब दिल्ली बसाई तो वाइसरॉय हाउस की तरफ जाने वाली सड़क नाम किंग्स वे रखा. लेकिन भारत आजाद होने के बाद वाइसरॉय हाउस, राष्ट्रपति भवन का नाम बदलकर राजपथ हो गया. हालांकि, मोदी सरकार में ये राजपथ बदलकर कर्तव्य पथ हो चुका है. इसी पर 26 जनवरी की परेड निकाली जाती है. हालांकि, अंग्रेजों के समय के नामों की कुछ सड़कें अभी भी दिल्ली में है.

बाबर रोड पर क्यों अटकी सुई?

जान लें कि हाल के कुछ सालों में मुगलों के नाम से जुड़ी सड़कों के नाम बदले गए. औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया. इसी कड़ी में बाबर रोड का नाम बदलने की कई बार हो चुकी हैं. विरोध के नाम पर बाबर रोड के साइन बोर्ड पर कभी अयोध्या मार्ग का स्टीकर चिपका दिया जाता है तो कभी उसपर कालिक पोत दी जाती है.

सड़कों का नाम बदलना कितना सही?

सड़कों के नाम बदलने को लेकर कई मत हैं. एक मत है कि अगर ऐतिहासिक नामों को बदला जाता है तो लोग इतिहास से वंचित हो जाएंगे. उन्हें ऐतिहासिक शख्सियतों को बारे में जानने का मौका नहीं मिलेगा. इसलिए जो नाम हैं, उन्हें बदलकर नया नाम नहीं देना चाहिए. वहीं, दूसरा मत है कि मुगल अक्रांता थे. उन्होंने भारत पर हमला किया और यहां के लोगों पर अत्याचार किए. मंदिर तोड़े. इसलिए उनके नाम पर सड़क का नाम होना उन्हें सम्मान देने जैसा है. लेकिन ये लोग सम्मान के काबिल नहीं हैं. इसीलिए बाबर रोड जैसी सड़कों का नाम बदल देना चाहिए.

वहीं, एक और मत ये भी है कि नाम बदलने में अच्छा खासा खर्च होता है. साइन बोर्ड पर नाम दोबारा लिखवाना पड़ता है. इसके अलावा, उस रोड पर मौजूद, बैंकों, स्कूलों और अन्य दफ्तरों का पता फिर से बदलना पड़ता है. पोस्टल एड्रेस में बदलाव करना पड़ता है. ये खर्चीला और कन्फ्यूजन क्रिएट करने वाला काम है.

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