Ganapath Review: फ्यूचर की बातों के बीच याद आता है गुजरा हुआ जमाना, हमें है बेहतर सिनेमा की जरूरत
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Ganapath Review: फ्यूचर की बातों के बीच याद आता है गुजरा हुआ जमाना, हमें है बेहतर सिनेमा की जरूरत

Ganapath: टाइगर श्रॉफ की नई फिल्म उनके भविष्य के लिए कोई रास्ता खोलती नजर नहीं आती. निर्देशक विकास बहल (Vikas Bahal) ने पुराने फार्मूलों को तकनीक के सहारे चमकाने की कोशिश जरूर की, परंतु वे अपनी ही चिल्लर पार्टी और क्वीन जैसी फिल्मों से आगे नहीं बढ़ सके...

 

Ganapath Review: फ्यूचर की बातों के बीच याद आता है गुजरा हुआ जमाना, हमें है बेहतर सिनेमा की जरूरत

Tiger Shroff: गरीबों की बस्ती को बचाने के लिए फिल्मों में हमेशा एक हीरो आता है. यह शाश्वत फार्मूला है. विश्वास कीजिए कि साल 2070 में भी इसमें रत्ती भर बदलाव नहीं आने वाला. जबकि दुनिया लगभग तबाह हो चुकी होगी. थोड़ से अमीर बहुत सारी ताकत अपनी मुट्ठी में दबाए होंगे. गरीबों और दबे-कुचलों के सिर पर सिर्फ तिरपाल होगा. उनके पास कभी न खत्म होने वाली भूख और प्यास होगी. साथ ही होगा गुस्सा, जिसे वे एक-दूसरे को मारते-पीटते हुए निकालते होंगे. लेखक-निर्देशक विकास बहल (Vikas Bahal) की फिल्म गणपतः अ हीरो इज बॉर्न में 2023 में यही दिखाया गया है. फिल्म देखकर आपको शिद्दत से महसूस होता है कि क्या बॉलीवुड (Bollywood) को बचाने के लिए कोई आएगाॽ

गणपत की श्रेणी
गणपत भविष्य की कहानी है, जिसमें अतीत की ढेरों फिल्मों से लिए गए फार्मूलों को नई तकनीक की धार पर चढ़ाया गया है. टुकड़ा-टुकड़ा कहानी में जगह-जगह बिखराव दिखता है और नकलीपन भी. कहीं कुछ सहज नजर नहीं आता. ऐसा नहीं कि फ्यूचरिस्टिक फिल्मों (Futuristic Films) में दुनिया असली नहीं लगती, हीरो सच्चे नहीं लगते. मगर गणपत इस श्रेणी की फिल्म नहीं है. फिल्म में हीरो आता है, लेकिन वह बॉलीवुड फिल्मों के हीरो की तरह आता है. तबाह दुनिया में दुख उठा रहे लोगों को संकटों से उबारने वाले जन-नायक की तरह वह खड़ा नहीं होता. वह नाचता-गाता, रंगरेलिया मनाता, रोमांस करता और एक्शन से भरपूर अंदाज में अवतार लेता है.

एक सिल्वर सिटी
गणपत की शुरुआत भीषण युद्ध से लगभग खत्म हो चुके संसार के साथ होती है. दृश्यों के पीछ से आती दलपति (अमिताभ बच्चन) की आवाज से पता चलता है कि युद्ध ने सबकुछ करीब-करीब नष्ट कर दिया है और इंसान के बचे रहने लायक बहुत थोड़ी सी जगह शेष है. इन हालात का फायदा शक्तिशाली धनपतियों ने उठाया है. उन्होंने अपने लिए एक सिल्वर सिटी बना ली है. जहां अति उन्नत तकनीक से लैस तमाम सुविधाएं हैं. जीवन के सारे सुख हैं. गरीबों को यहां से बाहर फेंक दिया गया और उनका प्रवेश वर्जित है. दलपति ने भविष्यवाणी की है कि गरीबों को बचाने के लिए गणपत आएगा.

क्या गुड्डू है गणपत
गणपत इस कहानी में गुड्डू (टाइगर श्रॉफ) के रूप में आता है. सिल्वर सिटी में पला-बढ़ा, रंगीनियों में जीवन गुजारता. परिस्थितियां उसे गरीबों की बस्ती में पहुंचाती है, जहां उसे अपनी जिंदगी का प्यार जस्सी (कृति सैनन) के रूप में मिलता है. अमीरों के तमाम शौक के बीच एक ऐसा फाइटिंग रिंग है, जहां होने वाले मुकाबले उनका मनोरंजन करते हैं. यह उनकी मोटी कमाई का साधन भी है. गणपत भी इस रिंग का हिस्सा है. ऐसे में वह कैसे कर सकेगा गरीब बस्तीवालों का उद्धारॽ क्या यह गुड्डू सचमुच वह गणपत साबित होगा, जिसकी भविष्यवाणी दलपति ने की थीॽ गणपत की कहानी कई मोड़ों से होकर गुजरती है, मगर दर्शक के दिल को छू नहीं पाती. फिल्म में बने सैट, कंप्यूटर ग्राफिक्स से लेकर एक्शन-रोमांस और भावनाओं को व्यक्त करने वाले डायलॉग कृत्रिम लगते हैं.

पार्ट 2 के वास्ते
फिल्म की एक बड़ी समस्या यह है कि इसका असली खलनायक कभी पर्दे पर खुलकर नहीं आता है. उसे लेखक-निर्देशक ने पार्ट 2 के लिए बचा रखा है! पहले पार्ट में इस सिल्वर सिटी को चलाने और गरीबों से नफरत करने वाले खलनायक के गुर्गे ही खेल सजाते हैं. इसी तरह से अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का रोल देखकर यह समझ पाना कठिन होता है कि जब आज भी लोग उनके लिए अहम भूमिकाएं लिख रहे हैं, तो वह ऐसा कैमियो क्यों स्वीकार करते हैंॽ उनका गेट-अप भी यहां अजीब है. टाइगर श्रॉफ (Tiger Shroff) के चेहरे पर हाव-भाव की समस्या हीरोपंति में डेब्यू के समय से है. वह सिर्फ एक्शन दृश्यों में ही छाप छोड़ पाते हैं. लेकिन अब उनके ऐसे दृश्यों का भी अंदाज नया नहीं रह गया है.

एक्टिंग की बातें
कृति सैनन (Kriti Sanon) को हाल में संवेदनशील फिल्म मिमी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. इसके तत्काल बाद उन्हें यहां एक्शन दृश्यों में नानचाकू चलाते देखना चौंकाता है. वह अपना काम अच्छे ढंग से करती हैं, लेकिन कहानी उनके किरदार के साथ न्याय नहीं करती. वह भावुक दृश्यों में भी दिखी हैं. टाइगर के साथ उनकी जोड़ी जमती है और संभवतः यही वह बात है, जो फिल्म को थोड़ा-बहुत बचा पाती है. वीएफएक्स, बैकग्राउंड म्यूजिक और गीत-संगीत निराश करते हैं. गणपत के पिता के रूप में शिवा बने राशिन रहमान और खलनायक के लिए काम करने वाले जॉनी इंग्लिश बने फलस्तीनी एक्टर जियाद बाकरी प्रभावित करते हैं. एली अवराम अपनी छोटी-सी भूमिका को अच्छे ढंग से निभा जाती हैं.

कल आज और कल
इन बातों के बीच विकास बहल का निर्देशन निराश करता है. वह न तो फ्यूचरिस्टक फिल्म जैसा कमाल रच पाते हैं और न ही अमीर-गरीब की खाई वाला इमोशन पैदा कर पाते हैं. कमजोर स्क्रीन प्ले फिल्मी फार्मूलों पर खड़ा है और उस पर विकास अपनी तरफ से कल्पना की कोई नई उड़ान भरने में नाकाम हैं. भविष्य की दुनिया की बात करने वाली इस फिल्म को देखकर लगता है कि हमारे पास गुजरे जमाने की कई बेहतरीन फिल्में हैं, जिन्हें आज भी देखा जा सकता है.

निर्देशकः विकास बहल
सितारे: टाइगर श्रॉफ, कृति सैनन, अमिताभ बच्चन, राशिन रहमान, जियाद बाकरी, एली अवराम, जमील खान
रेटिंग**

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