The Trial Review: अदालत का तनाव है यहां गायब, काजोल की सीरीज में मुश्किल से गुजरता है वक्त
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The Trial Review: अदालत का तनाव है यहां गायब, काजोल की सीरीज में मुश्किल से गुजरता है वक्त

Kajol Web Series Review: काजोल की डेब्यू वेब सीरीज असर नहीं छोड़ती. वह औसत बनकर रह जाती है. कहानी को अदालती मुकदमों के बहाने यहां खींचा गया और मुद्दे की बात बहुत पीछे रह जाती है. छह-सात घंटे का समय इस सीरीज के लिए निकालने से पहले यह रिव्यू पढ़ लें...

 

The Trial Review: अदालत का तनाव है यहां गायब, काजोल की सीरीज में मुश्किल से गुजरता है वक्त

Kajol Web Series The Trial: अमेरिकी वेब सीरीज द गुड वाइफ के हिंदी रूपांतरण द ट्रायल को देखते हुए साफ महसूस होता है कि कहानी छोटी है और उसे खींच-खींच कर लंबा किया जा रहा है. मेर्कस को शायद ओटीटी ने कहा हो कि पौन-पौन घंटे के आठ एपिसोड से कम नहीं चलेंगे. समस्या इसलिए नहीं थी कि अजय देवगन और उनके साथी प्रोड्यूसर हैं. जबकि अजय की पत्नी काजोल वेब सीरीज को लीड कर रही हैं. ऐसे में न धन की समस्या और न ही समय की. लेकिन समस्या है कंटेंट की. दर्शक के रूप में आप इन सब पर ध्यान देते हैं. ओटीटी के सब्सक्रिप्शन के लिए जेब ढीली करनी पड़ती है और समय तो कीमती है ही. द ट्रायलः प्यार कानून धोखा, वेब सीरीज डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हुई है.

पहले भी किया यही
अव्वल तो यही है कि हिंदी के तथाकथित बड़े कंटेंट क्रिएटरों के पास कहानियों के अपने आइडिये नहीं हैं. फिल्म/वेब सीरीज की भारतीय कहानियां ढूंढने के बजाय वे अमेरिकी-यूरोपीय और कोरियाई ड्रामों में यह ढूंढते हैं कि आखिर किसे उठाकर भारतीय परिवेश में ढाल सकते हैं. द गुड वाइफ ऐसी कहानी है, जिसे किसी भी देश-काल-समाज के उच्चवर्ग में रूपांतरित किया जा सकता है. अजय देवगन और डिज्नी हॉटस्टार इससे पहले ब्रिटिश सीरीज लूथर का हिंदी में रुद्रः द एज ऑफ डार्कनैस के रूप में रुपांतरण कर चुके हैं. अब अजय देवगन ने अपनी पत्नी को उसी प्लेटफॉर्म पर वेबसीरीज में लॉन्च किया है. मगर इस बदलाव में कहानी लचर रह गई.

जिंदगी का भंवर
द ट्रायल एक न्यायाधीश की पत्नी की कहानी है. एडिशनल जज राजीव सेनगुप्ता (जीशु सेनगुप्ता) को भ्रष्टाचार और सेक्स स्कैंडल के आरोप में जेल हो जाती है. उसकी संपत्ति और बैंक अकाउंट सील हो जाते हैं. कभी वकील रही राजीव की पत्नी नयनिका (काजोल) घर संभालने और दो बच्चियों की परवरिश के लिए वापस वकालत शुरू करती है. उसके पूर्व प्रेमी की लॉ फर्म, आहूजा खन्ना चौबे एंड एसोसिएट्स में वह जूनियर लॉयर के रूप में नई शुरुआत करती है. छह महीने का प्रोबेशन है. कैसे वह नए सिरे से जीवन और करियर में संतुलन बैठाती है और राजीव का क्या होता है, द ट्रायल की यही मूल कहानी है. इस कहानी में ढेर सारी घटनाएं पिरोई हैं. जो सिर्फ यह दिखाती हैं कि नयनिका कितनी काबिल है. जिस केस में हाथ डालती है, वहां कामयाब होती है. जहां तक राजीव का प्रश्न है, तो उसे जमानत मिलती है और घर वापसी पर नयनिका के रिश्ते एक मोड़ पर ठहरे रहते हैं. एक और ट्रेक नयनिका और उसके पूर्व प्रमी विशाल चौबे (अली खान) का है. क्या दोनों का रिश्ता आगे बढ़ेगाॽ

एक कहानी कई मुद्दे
द ट्रायल के आठ एपिसोड की शुरुआत तो ठीक होती है. सेक्स स्कैंडल में फंसे जज का जेल जाना. उसकी पत्नी और दो किशोरवय बेटियों की मुश्किलें. लेकिन कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है इसमें नए-नए केस आते हैं, जो नयनिका की सफलता की सीढ़ियां बनते हैं. मुद्दे की बात खुद को दोहराती है. द ट्रायल में कई ट्रायल आते हैं. क्रिकेटर और मॉडल. मॉडल का मीडिया ट्रायल. स्कूली किशोर का मर्डर केस में फंसना. म्यूजिशियन की घरेलू नौकरानी का कत्ल. सोशल वर्कर और इंश्योरेंस कंपनी का केस. इन सबके बीच सेक्स स्कैंडल में फंसे राजीव सेनगुप्ता का ट्रेक हाशिये पर चला जाता है. जिससे कुछ और किरदारों के लिए जगह बनती है. काजोल के साथ लॉ फर्म में अपनी नौकरी पक्की करने की कोशिश में लगे जूनियर लॉयर धीरज पासवान (गौरव पांडे) और तमाम ट्रायल के कागजात तथा सबूत इकट्ठा करने वाली सना (कुब्रा सैत). इनके अलावा बाकी ढेर सारे किरदार एपिसोड्स के हिसाब से आते-जाते रहते हैं.

जूनियर होकर भी बॉस
द ट्रायल की समस्या यह भी है कि बीच में आने वाले मुकदमों में कोई तनाव पैदा नहीं होता. कोई ‘पीक पॉइंट’ नहीं आता. वे साधारण मुकदमों की तरह शुरू और खत्म होते हैं. ताकि एपिसोड बढ़ते जाएं. इन मुकदमों की जटिलताएं नहीं उभरती. आखिरी दो एपिसोड में जरूर निर्देशक ने नयनिका, राजीव और विशाल की जिंदगी में त्रिकोण बनाने की कोशिशी की, लेकिन बात सतही बनी रहती है. पूरी सीरीज काजोल के आस-पास है और उन्हें ही स्टार बनाने की कोशिश करती है. कुछ दृश्यों में काजोल अच्छी लगी हैं, लेकिन अनेक मुश्किलों में फंसी महिला के किरदार को वह जीवंत नहीं कर पाती. जूनियर लॉयर होकर भी तमाम दृश्यों में वह बॉस जैसा बर्ताव करती हैं. जीशू सेनगुप्ता और अली खान के साथ दृश्यों में उनकी बॉडी लैंग्वेज या चेहरे के हाव-भाव ऐसे नहीं हैं कि वह रिश्ते के किसी भंवर में फंसी हैं.

अगर गुजारना हो वक्त
सीरीज में अगर कोई एक्टर बढ़िया ढंग से परफॉर्म करते हैं तो वह हैं, शीबा चड्ढा (लीगल फर्म की बॉस मालिनी खन्ना) और अली खान. किरण कुमार के भी गिने-चुने अपीयरेंस हैं और वह जमे हैं. सीरीज में अच्छी राइटिंग का अभाव खलता है. ऐसा लगता है कि अब्बास दलाल और हुसैन दलाल इधर बहुत सारी सीरीज एक साथ लिख रहे हैं और उन पर काम का दबाव है. उनकी राइटिंग में रिचर्स का अभाव भी खलता है. यहा सिद्धांत कुमार भी उनके साथ जुड़े हैं. तीनों राइटर एक समय के बाद फटाफट कहानी खत्म करने की तरफ बढ़ते हैं. सुपर्ण वर्मा का निर्देशन औसत है. अदालती दृश्यों में तनाव और ड्रामा दोनों गायब हैं. ऐसे में अगर आपके पास लगभग छह घंटे खाली हैं और आप किसी तरह सिर्फ वक्त गुजारना चाहते हैं, तो यह वेब सीरीज देख सकते हैं.

निर्देशकः सुपर्ण वर्मा
सितारे: काजोल, जीशू सेनगुप्ता, अली खान, शीबा चड्ढा, किरण कुमार, गौरव पांडे, कुब्रा सैत
रेटिंग**1/2

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