Bawaal Movie Review: इस बवाल में है रोमांस की थकान, वरुण आगे बढ़े कुली नं.1 से और जाह्नवी हैं छुई-मुई
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Bawaal Movie Review: इस बवाल में है रोमांस की थकान, वरुण आगे बढ़े कुली नं.1 से और जाह्नवी हैं छुई-मुई

Bawaal Film Review: बवाल के नाम पर निर्देशक नितेश तिवारी (Nitesh Tiwari) ने इस फिल्म में जो काटा है, उसकी बुवाई सही ढंग से नहीं हुई. नतीजा यह कि मूंगफली में दाना नहीं है. फिल्म इतिहास के नाम पर वरुण-जाह्नवी के रोमांस की गाड़ी को पटरी पर लाने की कोशिश करती है. लेकिन माहौल नहीं बन पाता. फिल्म देखने से पहले पढ़ लें रिव्यू...

 

Bawaal Movie Review: इस बवाल में है रोमांस की थकान, वरुण आगे बढ़े कुली नं.1 से और जाह्नवी हैं छुई-मुई

Bawaal Movie Review: बॉलीवुड के फिल्मकारों को अचानक महसूस होने लगा है कि वह देश की जनता को इतिहास पढ़ा सकते हैं. वे फिल्में बनाने से ज्यादा इतिहास दिखाने में दिलचस्पी ले रहे हैं. लेकिन इतिहास से सबक लेने वाली बात नहीं सीख रहे. हाल के वर्षों में इतिहास की आड़ में कही गई ज्यादातर कहानियों को दर्शकों ने कूड़ेदान में डालने लायक माना. दंगल के बाद छिछोरे जैसी फिल्म से कॉलेज में पढ़ने-बढ़ने की सीख देने वाले निर्देशक नितेश कुमार इस बार स्कूल के बच्चों को इतिहास पढ़ाने आए हैं. उनका हीरो फिल्म में इतिहास पढ़ाता है. भारतीय इतिहास की बात बहुत हो चुकी, तो नितेश यूरोप चले गए. दूसरे विश्व विश्व युद्ध की पढ़ाई कराने.

गिरा दिया बम
बवाल में न ढंग की कहानी और न वह इतिहास से न्याय करती है. तीन कच्चे-पक्के सीन रचकर नितेश ने द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) को समेट दिया. न उसकी त्रासदी, न भयावहता और जापान पर अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराने की सबसे भीषण घटना का तो रत्ती भर जिक्र नहीं. ऐसे अधकचरे इतिहास ने न लोगों का भला किया और न ही फिल्मों का इससे भला हो सकता है. नितेश और उनके जैसे फिल्म मेकर्स को इतिहास से उतना ही मतलब है, जितना उनकी फिल्म में काम आ जाए. इसके आगे पन्ने पलटने की जरूरत वे नहीं समझते. आपके पास अमेजन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) का सब्सक्रिप्शन होने के साथ, दो घंटे से ज्यादा का खाली वक्त है तभी इस फिल्म को देखें.

अज्जू भैया का माहौल
फिल्म की कहानी लखनऊ में रहने वाले अज्जू भैया (वरुण धवन) की है. वह स्कूल में इतिहास के अध्यापक हैं. क्लास में पढ़ाने के बजाय क्रिकेट की ड्रीम टीम बनाते नजर आते हैं. अज्जू भैया की फिलॉसफी है कि अपना माहौल बना कर रखा जाए. लोग बात भूल जाते हैं, माहौल नहीं. अज्जू भैया ने जब क्लास में विधायक (मुकेश तिवारी) के लड़के को थप्पड़ मारा तो विधायक ने स्कूल से अज्जू भैया को सस्पेंड करा दिया. अज्जू भैया सरेंडर के मूड में थे, लेकिन तभी माहौल बनाने के लिए उन्होंने तय किया कि पत्नी निशा (जाह्नवी कपूर) समेत यूरोप (Europe) जाएंगे. वहां से बच्चों को मोबाइल पर वर्ल्ड वार 2 वाली जगहें दिखाते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध का पाठ पढ़ाएंगे. अज्जू भैया ने शादी के 10 महीने बाद तक निशा को कहीं नहीं घुमाया क्योंकि उसे मिर्गी के दौरे आते हैं.

कहानी यूरोप में
यूरोप में बवाल की कहानी वर्ल्ड वार की जगहों से ज्यादा अज्जू भैया का मजाक उड़ाने पर फोकस है. फिर दिखाती है कि कैसे उनका हृदय परिवर्तन होता है. वह दुनिया को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं और धीरे-धीरे पत्नी को प्यार करने लगते हैं. असल में नितेश और उनके राइटरों की टीम को इतिहास या द्वितीय विश्व युद्ध से कोई मतलब नहीं था. वह सिर्फ किसी तरह हीरो-हीरोइन का मिलन दिखाना चाहते थे. यही बॉलीवुड फार्मूला है. फिल्म में वरुण-जाह्नवी का रोमांस लभगभग जीरो है. हीरो हीरोइन से नाराज है और हीरोइन एकदम दयनीय, गुजरे जमाने की भारतीय नारी जैसा बर्ताव करती है. कॉमेडी के लिए एक गुजराती परिवार को भी यूरोप की यात्रा पर दिखाया गया, जिसके साथ वरुण का बैग हवाई अड्डे पर बदल जाता है. यह ट्रैक जरूर कुछ बेहतर है. परंतु इसका कहानी में सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया.

हॉट से छुई-मुई तक
बवाल वास्तव में पढ़ाई-लिखाई को हल्के में लेती है. ऐसा लगता है कि नितेश तिवारी और राइटरों ने नए जमाने के स्कूल नहीं देखे. वहां के टीचर नहीं देखे. उन्हें लग रहा था कि वरुण-जाह्नवी और वर्ल्ड वार 2 के नाम पर माहौल बन जाएगा. कहानी कौन देखेगा. वरुण (Varun Dhawan) अपने किरदार में जमे हैं और कुली नं. 1 से एक कदम आगे बढ़े हैं. लेकिन वह गोविंदा (Govinda) और सलमान खान (Salman Khan) की छाया के मिक्स जैसे नजर आते हैं. उन्हें अपनी तलाश करना बाकी है. जाह्नवी (Janhvi Kapoor) का रोल खराब ढंग से लिखा और गढ़ा गया. सोशल मीडिया में आए दिन हॉट तस्वीरें डालने वाली एक्ट्रेसें पर्दे पर छुई-मुई दिखने की कोशिश करती हुई, अपनी हंसी उड़वाती हैं. जाह्नवी के लुक पर गंभीरता से काम किए जाने की जरूरत है. मिली, गुड लक जैरी के बाद बवाल में भी वह किसी प्रकार से आकर्षक नहीं लगीं. अज्जू भैया के पिता के रोल में मनोज पाहवा असर छोड़ते हैं.

कहां रह गई कमी
फिल्म में अज्जू भैया और निशा पेरिस (फ्रांस), बर्लिन (जर्मनी), एम्सटर्डम (नीदरलैंड्स) और ऑश्विट्स (पोलैंड) जैसे शहरों में जाते हैं. फिल्म देखने का फायदा यही है कि आप यहां की चुनिंदा जगहों को देख पाते हैं. लेकिन बवाल के निर्देशक-लेखक इनके ऐतिहासिक महत्व को दिखा पाने में लगभग नाकाम हैं. वे पूरे विश्व युद्ध को सिर्फ अज्जू भैया का माहौल जमाने और निशा के साथ उनका दांपत्य जीवन सुधारने के लिए इस्तेमाल करते हैं. वह भी अधकचरे ढंग से. वास्तव में फिल्म की स्क्रिप्ट बेहद निराशाजनक है. जिसे चार लोगों ने मिलकर लिखा है. बवाल में हीरो को सुधारने के लिए जो घटनाएं बुनी गई हैं, वे बेहद कमजोर हैं. ऐसे में फिल्म का क्लाइमेक्स भी लचर साबित होता है.

निर्देशकः नितेश तिवारी
सितारे: वरुण धवन, जाह्नवी कपूर, मनोज पाहवा
रेटिंग**

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