Karva Chauth: करवा देवी का अपने पति के लिए सति धर्म देखकर और उसकी मगरमच्छ से जान बचाने पर चित्रगुप्त ने उन्हें वरदान में करवाचौथ का व्रत दिया था. आइए जानते हैं इसके नाम के पीछे का राज़...
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Karva Chauth: यह तो आप सभी जानते ही होंगे कि करवाचौथ का व्रत एक पत्नी पूरा दिन बिना कुछ खाए-पिए अपने पति की लंबी उम्र और हिफाज़त के लिए रखती है. रात में चांद दिखाई देने पर ही वह व्रत को खोलती है और अगर व्रत के बीच में कुछ खा लिया जाए तो यह अशुभ माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवा चौथ के व्रत की शुरूआत कैसे हुई ? आइए बताते हैं इसके पीछे की कहानी.
हिंदु मायथोलॉजी के मुताबिक, करवा नाम की एक महिला थी. एक दिन उनका पति नदी में नहा रहा था तभी मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया. उसने अपनी पत्नी करवा को मदद के लिए बुलाया, करवा ने मगरमच्छ से अपने पति को छुड़वा लिया और मगरमच्छ को बांधकर यमराज के पास ले गई. यमराज ने करवा को देखकर कहा, ‘देवी आप यहां क्या कर रही हैं और क्या चाहती हैं? करवा ने कहा- “इस मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया था इसलिए आप अपनी ताक़त से इसे मौत की सज़ा दे दें और नरक में ले जाएं”. तभी यमराज ने कहा, लेकिन अभी तो इस मगरमच्छ की उम्र बाकी है और वक्त से पहले वह इसे मौत नहीं दे सकते.
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करवा ने यमराज से कहा कि अगर आप इस मगर को मारकर मेरे पति को लंबी उम्र नहीं दोगे तो मैं अपनी तपस्या के बल से आपको नष्ट कर दूंगी. यह सुनकर यमराज के पास खड़े चित्रगुप्त ने सोचा कि वह करवा की अपने पति के लिए भक्ति और सति धर्म की वजह से ना तो उसे श्राप दे सकते हैं और ना ही उसकी कही गई बात को अनदेखा कर सकते हैं. काफी सोचने के बाद उन्होंने मगर को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया. साथ ही चित्रगुप्त ने करवा से कहा- “जिस तरह तुमने अपने पति की हिफाज़त की है यह देखकर मैं बहुत खुश हूं. मैं यह वरदान देता हूं कि आज की तारीख़ वाले दिन जो भी महिला पूरे भरोसे के साथ तुम्हारा व्रत और पूजा करेगी उसके सुहाग की हिफाज़त मैं करूंगा”.
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जिस दिन करवा को यह वरदान मिला उस दिन कार्तिक महीने की चतुर्थी थी. इसलिए करवा और चौथ की वजह से इसका नाम करवाचौथ पड़ा और इसकी शुरूआत हुई.
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