तपती गर्मी के बीच पिएं ये आठ घरेलू ड्रिंक्स, शरीर में बनी रहेगी स्फूर्ति

आपका शरीर सही ढंग से काम करे इसके लिए हर समय पर्याप्त तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट का स्तर बना रहना चाहिए. ऐसे में आज हम आपको ऐसे आठ ड्रिंक्स के बारे में बता रहे हैं जो कि गर्मियों में आपको तरोताजा रखेगा.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 16, 2022, 08:41 PM IST
  • तपती गर्मी के बीच पिएं ये आठ घरेलू ड्रिंक्स
  • शरीर में बनी रहेगी पानी की मात्रा और स्फूर्ति
तपती गर्मी के बीच पिएं ये आठ घरेलू ड्रिंक्स, शरीर में बनी रहेगी स्फूर्ति

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को 'तलाक-ए-हसन' की प्रथा के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें एक पुरुष अपनी पत्नी को महज 'तलाक' बोलकर तलाक दे सकता है. यह एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक प्रथा है, जिसके कारण अक्सर महिलाओं को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है. 30 मई को, शीर्ष अदालत ने 'तलाक-ए-हसन' की प्रथा के खिलाफ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया था.

मुस्लिम महिला ने दायर की है याचिका

याचिका एक मुस्लिम महिला द्वारा दायर की गई है, जिसने 'एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन' का शिकार होने का दावा किया है. याचिका अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर की गई है. याचिकाकर्ता ने इस साल फरवरी में दिल्ली महिला आयोग में एक शिकायत दर्ज कराई थी और अप्रैल में एक प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी और दावा किया था कि पुलिस ने उसे बताया कि शरीयत के तहत एकतरफा तलाक-ए-हसन की अनुमति है.

क्या कहा गया है तलाक-ए-हसन को लेकर

याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 का जिक्र करते हुए शादी से संबंधित मामलों में एक गलत धारणा व्यक्त करने का दावा किया गया है. इसमें तलाक-ए-हसन को एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक करार दिया गया है, जो विवाहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों के लिए हानिकारक भी बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है.

दलील में कही गयी है ये बात

याचिका में कहा गया है कि संविधान न तो किसी समुदाय के पर्सनल लॉ को पूर्ण संरक्षण देता है और न ही पर्सनल लॉ को विधायिका या न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र से छूट देता है. दलील में तर्क दिया गया है कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक के अन्य रूपों की प्रथा न तो मानव अधिकारों और लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के साथ मेल खाती है, न ही इस्लामी आस्था का एक अभिन्न अंग है.

कई इस्लामिक राष्ट्र में है बैन

याचिका में कहा गया है, "कई इस्लामी राष्ट्रों ने इस तरह के अभ्यास को प्रतिबंधित कर दिया है, जबकि यह सामान्य रूप से भारतीय समाज और विशेष रूप से याचिकाकर्ता की तरह मुस्लिम महिलाओं को परेशान करना जारी रखे हुए है. यह प्रस्तुत किया जाता है कि यह प्रथा कई महिलाओं और उनके बच्चों, विशेष रूप से समाज के कमजोर आर्थिक वर्गों से संबंधित लोगों के जीवन पर कहर बरपाती है."

क्या है याचिकाकर्ता का दावा

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि दिसंबर 2020 में मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार उसकी शादी एक व्यक्ति से हुई थी और उसका एक लड़का है. याचिका में कहा गया है कि उसके माता-पिता को दहेज देने के लिए मजबूर किया गया था और बाद में पर्याप्त दहेज नहीं मिलने के कारण उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया था.

क्या है याचिकाकर्ता की मांग

उसने आरोप लगाया कि दहेज देने से इनकार करने पर याचिकाकर्ता के पति ने एक वकील के जरिए उसे एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन दे दिया. याचिका में मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के उल्लंघन के लिए अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.

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