नई दिल्लीः संसार के कल्याण के लिए भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय कच्छप अवतार लिया था. उसके बाद समय-समय पर भक्तों की भलाई के लिए कभी राम कभी कृष्ण तो जैसे अवतारों में प्रकट हुए. अब कलियुग में उनके हर भक्त को उनके कल्कि अवतार का इंतज़ार है.
लेकिन क्या आपको मालूम है कि अपने कल्कि अवतार से पहले ही वो दुनिया में मौजूद हैं . हर किसी को दर्शन देते हैं . उनकी बातों को सुनते हैं. सुनकर हैरानी जरूर हो रही होगी लेकिन अब हम आपको जो अलौकिक रहस्य बताने वाले हैं उससे आपको इस बात का एहसास हो जाएगा कि भगवान विष्णु ने भक्तों का कष्ट सुनने के लिए इस दुनिया में मकर अवतार ले लिया है
भगवान के दर्शन करने आता है मगरमच्छ
केरल के कासरगोड में अनंतपुरा मंदिर में एक मगरमच्छ रहता है जो मांसाहारी नहीं शाकाहारी है. उसे मछलियां और मांस नहीं पसंद वो चावल और गुड़ का प्रसाद खाता है. ये मगरमच्छ भक्तों के साथ एक भक्त की तरह मंदिर में रहता है. भगवान विष्णु की भक्ति करता है.
किसी भक्त को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. यहां तक कि तालाब में हज़ारों मछलियां रहने के बावजूद ये मछली नहीं खाता. ये मंदिर के पीछे बने तालाब में एक दरार के अंदर दिन रात बैठा रहता है और जब निकलता है तो भगवान विष्णु के दर्शन करने उनके मंदिर में पहुंच जाता है लेकिन पुजारी के प्रार्थना करने पर वापस तालाब में भी लौट जाता है.
शाकाहारी मगरमच्छ और पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि सदियों पहले एक ऋषि इस मंदिर में तपस्या कर रहे थे इस दौरान बालक रूप में भगवान कृष्ण उनके सामने आए और ऋषि को परेशान करने लगे. बालक की शैतानियों से परेशान होकर ऋषि ने उसे तालाब में धक्का दे दिया.
बालक तालाब में गिरकर कहीं गायब हो गया. जब ऋृषि तपस्या करके उठे तो उन्होंने देखा कि बालक तालाब में नहीं है और तालाब में एक जगह एक दरार बन गई है. बालक उसी दरार से गायब हो चुका था. कुछ दिनों बाद उसी दरार के बाहर एक मगरमच्छ दिखने लगा.
स्थानीय लोगों ने दिया बबिया नाम
शुरू में तो लोग इसे देखकर डरे लेकिन फिर इसके साथ सबकी दोस्ती हो गई. कहते हैं एक दिन मंदिर में आए भक्त ने मगरमच्छ को केला खाने के लिए अपने पास बुलाया. उस भक्त की बात सुनकर मगरमच्छ उसके पास आया और उसने केला खाया.
इस दौरान उसने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और केला खाकर वापस तालाब में चला गया. इस मगरमच्छ का नाम स्थानीय लोगों ने बबिया रख दिया. हालांकि इसका ये नाम कब और किसने रखा इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है.
सन 1945 से दिखाई दे रहा है
कहते हैं 1945 के बाद से ही अनंतपुरा मंदिर के तालाब में मगरमच्छ दिखाई दे रहा है. 1945 से आजतक एक भी दिन ऐसा नहीं बीता जब ये मगरमच्छ वहां नज़र ना आया हो. एक मगरमच्छ की उम्र करीब 70 साल होती है. लेकिन स्थानीय लोग जिस मगरमच्छ को यहां देख रहे हैं वो करीब 80 साल से यहां पर मौजूद है .मान्यता है कि मगरमच्छ जिस दरार में रहता है वहीं से कहीं आता और जाता है.
रह सकता है केवल एक मगरमच्छ
मान्यता ये भी है कि इस तालाब में केवल एक मगरमच्छ ही रह सकता है. इसीलिए अगर पहले वाले मगरमच्छ की मृत्यु हो जाती है तो वो उसी दरार से गायब हो जाता है और उसकी जगह कोई नया मगरमच्छ तालाब में आ जाता है. इस अलौकिक रहस्य के लिए केवल एक पंक्ति ही काफी है हरि अनंत हरि कथा अनंता.
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