नई दिल्लीः कार्तिक मास की अमावस्या में आने वाली चतुर्थी तिथि करवाचौथ के नाम से प्रसिद्ध है. सौभाग्य, परिवार की कुशलता और संपन्नता के लिए रखा जाने वाला यह व्रत भारतीय परिवार परंपरा की एकजुटता की निशानी है. जहां खान-पान, परिधान और व्यवहार सभी एक साथ मिलकर एक अटूट बंधन के प्रतीक हैं, जो कि यह बताते हैं कि सभी कि क्षमताएं अलग-अलग हैं, लेकिन हर किसी का अपनी जगह अपना महत्व है.
श्रीगणेश ने दिया वरदान
अमूमन, पूजा-पाठ शुभ कर्म आदि के लिए शुक्ल पक्ष को ही शुभ माना जाता है. कृष्ण पक्ष की तिथियों के हिस्से यह लाभ और महत्व कम ही आ पाया है. एक बार की बात है, कहते हैं कि कृष्ण पक्ष की तिथियां इससे खुद को हीन समझने लगीं, तब श्रीहरि ने अमावस्या की तिथि को पूर्णिमा की ही तरह के लक्षण प्रदान किए और कहा कि भले ही तुम्हारे दिन कोई पूजा-पाठ न हो, लेकिन इस दिन गंगा स्नान से श्रद्धालुओं को मेरी ही भक्ति प्राप्त होगी.
इसके बाद भी कुछ असंतोष रहने पर लोकपाल और दिग्पाल प्रथम पूज्य गणेश जी ने भी कहा, मेरे लिए शुक्ल और कृष्ण पक्ष की दोनों ही चतुर्थियां विशेष प्रिय होंगीं.
इसलिए करते हैं करवा चौथ व्रत
लोक व्यवहार में कार्तिक चतुर्थी स्कंद माता स्वरूप देवी शक्ति से उनके जैसा सौभाग्य और प्राप्त करने का दिन है और श्रीगणेश के आशीष से इसके अखंड बनाए रखने की प्रार्थना का दिन है.
कलश का स्वरूप श्रीगणेश का ही है, नलिका वाला कलश जिसे करवा भी कहते हैं, वह साक्षात वरद मुद्रा वाले श्रीगणेश ही हैं, जिनके द्वारा अर्ध्य देने पर चंद्र की कांति के समान ही पति व परिवार की कांति भी मलिन नहीं होती है.
करवाचौथ के विभिन्न आयाम
करवा चौथ के दिन सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं. इसके बाद वह दिनभर पांच प्रकार के पकवान बनाती हैं.
यह पांच प्रकार के पकवान कढ़ी, खीर, मौसम के अनुसार रसयुक्त सब्जी, चावल, पूड़ी-पुए होते हैं. अलग-अलग स्थान के अनुसार पकवान में तब्दीली भी होती है. जैसे पंजाब आदि क्षेत्र में सारे पक्के पकवान और कढ़ी बनती है. उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में खीर और दुध फरा विशेष तौर पर बनता है. वहीं बिहार आदि क्षेत्र में चावल के चउंआ फारा बनते हैं.
यह सभी अलग-अलग पकवान परंपरा के साथ आरोग्य का वरदान हैं और यह भी सिखाते हैं कि जैसे एक थाली में अलग-अलग रंग के पकवान भी एकसाथ नजर आते हैं उसी तरह परिवार को भी एक घर में एक छत के नीचे मिल-जुल कर रहना चाहिए.
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क्या है असल करवा चौथ
स्त्री जीवन का आधार है, वह त्याग करती है और इसी कारण परिवार आगे बढ़ सकता है. यदि वह इतना त्याग कर रही है तो उसे भी सम्मान पूरा मिलना चाहिए. आधुनिक युग में यह पुण्य व्रत बाजार के अतिक्रमण के कारण दिखावे की ओर भी बढ़ रहा है. जबकि भारतीय मनीषा के प्रत्येक व्रत और कार्य किसी दिखावे के लिए नहीं बल्कि श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार किए जाते हैं. इनकी शुचिता बनाए रखनी चाहिए. मां लक्ष्मी-गणेश, देवी शक्ति और शिव कोई और नहीं हमारे ही भीतर हैं. चंद्र हमारा ही मन है. इसलिए प्रतीकों की पूजा करते हुए उनके वास्तविक अर्थ को समझकर जीवन पालन जरूरी है. यही करवा चौथ है.