Earthquake: भूकंप शुरू होने से पहले एक धीमी और रेंगने वाली प्रक्रिया होती है. वैज्ञानिकों ने एक नई स्टडी में यह पता लगाया है कि जिसमें कोई कंपन नहीं होता. यह प्रक्रिया भूकंप के बनने में अहम भूमिका निभा सकती है.
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Earthquake: भूकंप शुरू होने से पहले एक धीमी और रेंगने वाली प्रक्रिया होती है. वैज्ञानिकों ने एक नई स्टडी में यह पता लगाया है कि जिसमें कोई कंपन नहीं होता. यह प्रक्रिया भूकंप के बनने में अहम भूमिका निभा सकती है. यह रिसर्च पदार्थों के टूटने की प्रक्रिया को समझने पर फोकस थी. लैब में प्लास्टिक की शीट पर दरारों के बनने की स्टडी की गई. रिसर्च में पाया गया कि जब दो सतहों के बीच घर्षण बढ़ता है.. तो यह अचानक टूटने की स्थिति में बदल जाता है. यरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञानी और शोधकर्ता जे फाइनबर्ग ने कहा कि संपर्क में आई सतहों के पदार्थ का प्रकार मायने नहीं रखता. प्रक्रिया हर बार समान होती है.
भूकंप कैसे बनते हैं?
भूकंप तब बनते हैं जब दो टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे के खिलाफ चलती हैं लेकिन बीच का हिस्सा फंस जाता है. इससे तनाव बढ़ता है. यह तनाव उस समय टूटता है जब प्लेटों के बीच का कमजोर हिस्सा (ब्रिटल जोन) टूट जाता है. यह प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू होती है.. लेकिन जैसे ही दरार तेज गति से बढ़ती है, यह धरती को हिला देती है.
दरार बनने की प्रक्रिया को समझने की कोशिश
फाइनबर्ग और उनकी टीम ने इस सवाल का उत्तर खोजने के लिए गणितीय मॉडल और प्रयोगशाला में परीक्षण किए. उन्होंने थर्मोप्लास्टिक (प्लेक्सीग्लास) की शीट्स को एक-दूसरे पर दबाव देकर और खिसकाकर भूकंप जैसी दरारें पैदा कीं. यह प्रक्रिया कैलिफोर्निया की सैन एंड्रियास फॉल्ट जैसी स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट्स से मिलती-जुलती है.
दरार बनने से पहले की 'न्यूक्लिएशन फ्रंट' प्रक्रिया
शोधकर्ताओं ने पाया कि दरार बनने से पहले एक 'न्यूक्लिएशन फ्रंट' नामक चरण होता है. यह एक धीमी प्रक्रिया है, जिसमें दरारें धीरे-धीरे बढ़ती हैं. पहले इसे केवल एक रेखा की तरह समझा जाता था, लेकिन नए शोध में इसे दो-आयामी (2D) प्रक्रिया के रूप में मॉडल किया गया.
धीमी प्रक्रिया से तेज दरार में कैसे बदलता है तनाव?
शोध में पाया गया कि जब दरारें प्लेटों के बीच के कमजोर हिस्से से बाहर निकलती हैं, तो ऊर्जा का संतुलन बिगड़ जाता है. अतिरिक्त ऊर्जा अचानक तेज दरारें पैदा करती है, जो भूकंप की वजह बनती हैं. इस रिसर्च से पता चलता है कि अगर भूकंप से पहले होने वाली धीमी गति की गतिविधियों को मापा जा सके तो भूकंप की भविष्यवाणी संभव हो सकती है. हालांकि, असली दुनिया में यह चुनौतीपूर्ण है क्योंकि कई फॉल्ट्स बिना किसी भूकंप के लंबे समय तक धीमी गति से खिसकते रहते हैं.
लैब में भविष्यवाणी के संकेत ढूंढने की कोशिश
फाइनबर्ग और उनकी टीम अब लैब में इस प्रक्रिया के संकेतों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. फाइनबर्ग ने कहा कि हम लैब में इसे होते हुए देख सकते हैं. इसकी आवाजें सुन सकते हैं. यह हमें ऐसी जानकारी दे सकता है जो असली फॉल्ट्स में संभव नहीं है.