Last Rites: अंतिम यात्रा के वक्‍त क्यों बोला जाता है 'राम नाम सत्य है', वजह जानकर हो जाएंगे हैरान
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Last Rites: अंतिम यात्रा के वक्‍त क्यों बोला जाता है 'राम नाम सत्य है', वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

Hindu Religion: मनुष्य जीवनभर संसारिक सुखों का भोग करने के लिए धन के पीछे लोभी हो जाता है, लेकिन अपने साथ ले जाता तो अपने कर्म और 'राम का नाम'. आइए जनाते हैं कि हिंदु धर्म में शव ले जाते हुए  'राम नाम सत्य है' क्यों कहा जाता है. 

 

राम नाम सत्य है

Hindu Rituals On Funeral: इस संसार में हर एक प्राणी जिनमें प्राण उन सबकी की मृत्यु तय है. इस धरती पर जन्म लेने वाला मनुष्य, जीव अपने शरीर का त्याग करकेएक नई योनि में प्रवेश करता है. अगले जन्म आप या हम किस रूप में जन्म लें, इस बात को कोई नहीं जानता फिर भी जिंदगी भर व्यक्ति मोह-माया में लिप्त हम सिर्फ धन और शानों-शौकत के पीछे लगा रहता है.

सांसरिक मोह-माया का त्याग

इंसान कितनी भी मशक्त, छल-कपट कर लें खाली हाथ ही जाता है. साथ ले जाता है तो सिर्फ अपने अच्छे कर्म जिन्हें लोग याद करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही अगले जन्म में उसका भोग करता है. मनुष्य कर्मों के साथ कुछ और ले जाता है तो वो 'राम का नाम' है. अक्सर आपने देखा होगा कि लोग शव ले जाते हुए अंतिम यात्रा में लोग सिर्फ 'राम नाम सत्य है' का उच्चारण करते हैं. क्या आपको पता है कि अंतिम यात्रा में  सिर्फ राम के नाम को क्यों लिया जाता है, आइए जानते है इसके पीछे के तथ्य. 

मोक्ष प्राप्ति के लिए 

हिंदु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी व्यक्ति जब अपने जीवन की आखिरी पल जी रहा होता है तो वह राम का नाम जप करता है. कहा जाता है कि सिर्फ राम का नाम लेने से ही जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है. रामायण में भी राजा दशरथ ने भी अपने अंतिम समय में राम-राम बोलकर ही मोक्ष प्राप्ति की थी. शास्त्रों के अनुसार भी यदि आप राम के नाम का जाप करते हैं तो आपके कष्ट कम होते हैं. 

युधिष्ठिर ने बताया अर्थ 

'अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।

शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।'

महाभारत के पांडव के बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने श्लोक का अर्थ है कि बताया कि लोग शव को ले जाते हुए राम नाम का नाम बोलते है सिर्फ उसके साथ राम का नाम ही जा रहा होता है, लेकिन वापस लौटकर उसके रिश्तेदार, परिवार के लोग उस व्यक्ति (मृतक) की धन- संपत्ति में वापस सोच- विचार में लग जाते हैं. उसकी सम्पत्ति को लेकर वे आपस में लड़ने-भिड़ने यहां तक कि ईर्ष्या करने लग जाते हैं. धर्मराज युधिष्ठिर ने आगे कहा हैं कि, "नित्य ही प्राणी मरते हैं, उसके जाने पर दुखी होते हैं लेकिन अंत में परिजन सम्पत्ति को ही चाहते हैं इससे ज्यादा और क्या आश्चर्य होगा? इसलिए व्यक्ति को अधिक लोभ में नहीं रहना चाहिए उसको अपने कर्म अच्छे करने चाहिए. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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