Mauni Amavasya 2023 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2023 में माघ मास की अमावस्या 21 जनवरी को पड़ रही है. इस दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है.
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Mauni Amavasaya katha: मौनी अमावस्या का पर्व माघ मास की अमावस्या को मनाया जाता है. इस बार यह 21 जनवरी को होगा. इस दिन मौन रखकर स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति दीर्घायु होता है. आइए जानते हैं इस दिन के महत्व की पौराणिक कथा.
कथा
कांचीपुर में एक ब्राह्मण देवस्वामी के सात पुत्र और एक पुत्री थी. सातों पुत्रों के विवाह के बाद पुत्र गुणवती के लिए योग्य वर की तलाश शुरू हुई तो ब्राह्मण ने अपने बड़े बेटे को इसकी जिम्मेदारी सौंपी. इस बीच ब्राह्मण की बेटी की कुंडली देख ज्योतिषी ने कहा कि सप्तपदी की पूर्णता के साथ ही यह विधवा हो जाएगी. उपाय पूछने पर ज्योतिषी ने बताया कि सिंहल द्वीप में रहने वाली सोमा धोबन यदि पुत्री के विवाह में अपने सुहाग का सिंदूर दें तो यह दोष मिट सकता है.
सिंहल द्वीप
इस पर ब्राह्मण का छोटा पुत्र अपनी बहन को लेकर सिंहल द्वीप के लिए चला और समुद्र तट पर पार करने का विचार करते हुए एक पेड़ के नीचे बैठ गया. पेड़ पर एक गिद्ध परिवार रहता था, किंतु उस समय घोसले में केवल उसके बच्चे थे. शाम को गिद्ध मां अपने बच्चों के लिए भोजन लेकर आई तो बच्चों ने मां को पूरी बात बताई और कहा कि जब तक पेड़ के नीचे बैठे भाई-बहन को कुछ नहीं खिलाया जाता, तब तक वह भी नहीं खाएंगे.
सोमा
इस पर गिद्ध मां ने जंगल से कंदमूल फल आदि लाकर देते हुए कहा कि आप भोजन करें. मैं सुबह आपको समुद्र पार करा दूंगी. गिद्ध मां द्वारा पहुंचाए जाने के बाद दोनों अप्रत्यक्ष रूप से सोमा की सेवा में लग गए. एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से सफाई और लीपने आदि के बारे में पूछा तो सबने एक साथ कहा कि हम नहीं करेंगे तो कौन करने आएगा. सोमा को इस पर कुछ संदेह हुआ तो वह रात भर नहीं सोई तो सुबह के अंधेरे में ही भाई-बहन को सफाई करते हुए देखा और जब दोनों चुपचाप जाने लगे तो सोमा ने उनका हाथ पकड़ लिया. इस पर दोनों ने पूरी बात बताई, उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर सोमा उनके साथ ही कांचीपुरी के लिए चल पड़ी.
सुहाग
सोमा ने घर से निकलते हुए बहुओं को आदेश दिया कि उसकी अनुपस्थिति में किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट न देना. कांचीपुरी में गुणवती का विवाह हुआ. सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया, किंतु सोमा ने अपने संचित पुण्यों का फल सुहाग के सिंदूर के रूप में गुणवती को दिया, जिससे वह जी उठा. इसके बाद सोमा तुरंत अपने घर गई जहां पर सोमा के पति, पुत्र और दामाद की मृत्यु हो चुकी थी. सोमा ने अश्वत्थ वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की तो तीनों परिवारजन भी जी उठे. तभी से कन्या के विवाह में धोबिन से सुहाग देने और माघी अमावस्या को गंगा स्नान कर विष्णु जी के पूजन का विधान है.