Ganesh Ji: गणेश जी बैठे हैं कृपा बरसाने को तैयार, आज धन-दौलत, कारोबार में तरक्की के लिए कर लें ये काम
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Ganesh Ji: गणेश जी बैठे हैं कृपा बरसाने को तैयार, आज धन-दौलत, कारोबार में तरक्की के लिए कर लें ये काम

Shri Ganesh Kavach Path: बुधवार का दिन गौरी पुत्र गणेश जी को समर्पित है. कहते हैं कि इस दिन कुछ विशेष गणेश जी की कृपा दिलाते हैं. ऐसे में बुधवार के दिन गणेश कवच का पाठ करना भी शुभ फल प्रदान करता है. 

 

ganesh ji upay

Ganesh Ji Upay: सनातन धर्म में गणेश पूजन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य की शुरुआत अगर गणेश पूजन से की जाए, तो व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता मिलती है. इसलिए किसी भी काम से पहले श्री गणेश जी का नाम लिया जाता है. बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित है. ऐसे में गणेश जी के नाम से काम की शुरुआत करने पर सिद्धि प्राप्त होती है. 

गणेश जी को प्रसन्न करने और जीवन में आगे बढ़ने के लिए बुधवार के दिन गणेश कवच का पाठ करना बहुत जरूरी बताया गया है. इससे भक्तों को धन-ऐश्वर्य के साथ बुद्धि और बल की प्राप्ति भी होती है. व्यक्ति को जल्द ही परेशानियों से छुटकारा मिलता है. 

गणेश कवच पाठ

गौर्युवाच

एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि नाशयत्यहो ।  

अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने मुनिसत्तम ।।1।।

दैत्या नानाविधा दुष्टा: साधुदेवद्रुह: खला: ।

अतोऽस्य कण्ठे किंचित्त्वं रक्षार्थं बद्धुमर्हसि ।।2।।

मुनिरुवाच

ध्यायेत्सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्यं युगे त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।

द्वापरे तु गजाननं युगभुजं रक्तांगरागं विभुं तुर्ये तु द्विभुजं सितांगरूचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ।।3।।

विनायक: शिखां पातु परमात्मा परात्पर: ।

अतिसुंदरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कट: ।।4।।

ललाटं कश्यप: पातु भ्रूयुगं तु महोदर: ।

नयने भालचन्द्रस्तु गजास्यस्तवोष्ठपल्लवौ ।।5।।

जिह्वां पातु गणाक्रीडश्रिचबुकं गिरिजासुत: ।

पादं विनायक: पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुख: ।।6।।

श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिंतितार्थद: ।

गणेशस्तु मुखं कंठं पातु देवो गणञज्य: ।।7।।

स्कंधौ पातु गजस्कन्ध: स्तनौ विघ्नविनाशन: ।

ह्रदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ।।8।।

धराधर: पातु पाश्र्वौ पृष्ठं विघ्नहर: शुभ: ।

लिंगं गुज्झं सदा पातु वक्रतुन्ड़ो महाबल: ।।9।।

गणाक्रीडो जानुजंघे ऊरू मंगलमूर्तिमान् ।

एकदंतो महाबुद्धि: पादौ गुल्फौ सदाऽवतु ।।10।।

क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरक: ।

अंगुलीश्च नखान्पातु पद्महस्तोऽरिनाशन ।।11।।

सर्वांगनि मयूरेशो विश्र्वव्यापी सदाऽवतु ।

अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतु: सदाऽवतु ।।12।।

आमोदस्त्वग्रत: पातु प्रमोद: पृष्ठतोऽवतु ।

प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायक: ।।13।।

दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैर्ऋत्यां तु गणेश्वर: ।

प्रतीच्यां विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजगर्णक: ।।14।।

कौबेर्यां निधिप: पायादीशान्यामीशनन्दन: ।

दिवोऽव्यादेलनन्दस्तु रात्रौ संध्यासु विघ्नह्रत् ।।15।।

राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचत: पाशांकुशधर: पातु रज:सत्त्वतम:स्मृति: ।।16।।

ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम् ।

वपुर्धनं च धान्यश्र्च ग्रहदारान्सुतान्सखीन् ।।17।।

सर्वायुधधर: पौत्रान्मयूरेशोऽवतात्सदा ।

कपिलोऽजाबिकं पातु गजाश्रवान्विकटोऽवतु ।।18।।

भूर्जपत्रे लिखित्वेदं य: कण्ठेधारयेत्सुधी: ।

न भयं जायते तस्य यक्षरक्ष:पिशाचत: ।।19।।

त्रिसंध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत् ।

यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ।।20।।

युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्ध्रुवम् ।

मारणोच्चटनाकर्षस्तंभमोहनकर्मणि ।।21।।

सप्तवारं जपेदेतद्दिननामेकविशतिम ।

तत्तत्फलमवाप्नोति साधको नात्र संशय: ।।22।।

एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि य: ।

काराग्रहगतं सद्यो राज्ञा वध्यं च मोचयेत् ।।23।।

राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्तत्त्रिवारत: ।

स राजानं वशं नीत्वा प्रक्रतीश्र्च सभां जयेत् ।।24।।

इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।

मुद्गलाय च तेनाथ मांडव्याय महर्षये ।।25।।

मज्झं स प्राह कृपया कवचं सर्वसिद्धिदम् ।

न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते शुभम् ।।26।।

अनेनास्य कृता रक्षा न बाधाऽस्य भवेत्कचित् ।

राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसंभवा ।।27।। 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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