Jain Sadhvi: राजस्थान के छोटीसादड़ी कस्बे की एक सरकारी टीचर ने अपनी नौकरी छोड़कर संन्यासिन बनने का फैसला किया था. 40 वर्षीय प्रीति अपनी 11 साल की बेटी के साथ जैन साध्वी की दीक्षा ले रही हैं.
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Jain Sadhvi Life: स्वर्ण नगरी कहे जाने वाले छोटीसादड़ी में भगवान के प्रति भक्ति की एक अजब मिसाल देखने को मिली है. राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के छोटीसादड़ी की एक सरकारी टीचर ने नौकरी से इस्तीफा देकर जैन साध्वी बनने का फैसला किया है. इस महिला का नाम प्रीति है. इतना ही नहीं 40 वर्षीय प्रीति अकेले दीक्षा नहीं ले रही हैं, बल्कि उनके साथ उनकी बेटी भी संन्यासिन बनने की राह पर हैं.
सबसे कम उम्र में दीक्षा लेने वाली साध्वी
प्रीति की बेटी सारा महज 11 साल की है और अब वह जैन साध्वी का जीवन जिंएगी. सारा भी अपनी मां प्रीति के साथ 21 अप्रैल को जैन साध्वी की दीक्षा लेने जा रही हैं. इसके साथ ही सारा दीक्षा लेने वाली सबसे कम उम्र की 'संन्यासी' होंगी. प्रीति ने जब पहली बार अपने परिवार को दीक्षा लेने की इच्छा के बारे में बताया तो सभी ने उन्हें कम उम्र का हवाला देते हुए दीक्षा लेने से रोका. लेकिन प्रीति ने इस कठिन रास्ते पर चलने का फैसला किया. उनकी बेटी भी अपनी मां के साथ संन्यासिन बनने जा रही है. सारा ने भी संयम पथ पर आगे बढ़ने का निश्चय किया है.
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21 अप्रैल को होगी दीक्षा
21 अप्रैल को सकल जैन श्रीसंघ के संतों के सानिध्य में प्रीति बेन और सारा की दीक्षा कराई जाएगी. दीक्षा समारोह के बाद वे दोनों अपने गुरु सौम्या रत्ना श्रीजी एवं पुनीतरसा श्रीजी के साथ नगर से एक साध्वी की तरह प्रस्थान करेंगी. इनकी दीक्षा को लेकर सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं.
दीक्षा से मतलब है कि साधु-साध्वियां संसार से विरक्त होकर संयम पथ पर चलती हैं और मोक्ष की राह पर आगे बढ़ते हैं. यह दिशाहीन जीवन को एक मोक्ष पाने की दिशा में ले जाने का है. जैन साधु-साध्वियों का जीवन बहुत कठिन होता है. वे ना तो जूते-चप्पल पहनते हैं, ना बिस्तर पर सोते हैं. वे मांगकर भोजन करते हैं, जमीन पर सोते हैं और नंगे पैर पैदल यात्रा करते हैं. उन्हें लोभ, मोह, माया आदि का त्यागकर संयम के रास्ते पर चलना होता है.