Bhishma Pledge: दुर्योधन द्वारा पांडवों को राज्य का हिस्सा न देने के सवाल पर भीष्म ने यह कौन से वचन बोले जिनका द्रोणाचार्य और विदुर ने भी समर्थन किया.
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Bhishma Pratigya: दुर्योधन पांडवों को राज्य देने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं था. तभी तो उसने वारणावत में लाक्षागृह बनवाकर पांडवों को माता कुंती के साथ जलाने की कोशिश की. अपनी सूझबूझ से पांडवों ने बाहर निकलने के लिए सुरंग बना ली और वहां से निकल गए. अब पांडवों को राज्य देने के मामले में महाराज धृतराष्ट्र ने गुरु द्रोणाचार्य, कुलगुरु कृपाचार्य, महात्मा विदुर और भीष्म पितामह को गुप्त स्थान पर बुलाकर मंत्रणा शुरू की.
भीष्म बोले, दुर्योधन का राजा बनना धर्म विरुद्ध है
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को संबोधित करते हुए कहा कि मैं पांडवों से झगड़ा करने की बात का समर्थन नहीं कर सकता हूं. जिस तरह इस राज्य को तुम अपने बाप दादा का समझते हो, ठीक उसी तरह यह राज्य उनके भी बाप दादाओं का है. भीष्म ने दुर्योधन से साफ कहा कि यदि यह राज्य पांडवों को नहीं मिलेगा तो तुम या भरतवंश का कोई भी पुरुष अपने को उस राज्य का अधिकारी कैसे कह सकता है. तुम जो अभी राजा बन बैठे हो, यह धर्म के विपरीत है. तुमसे भी पहले वह राज्य के अधिकारी हैं.
भीष्म बोले, दुर्योधन अपने माथे पर कलंक का टीका न लगवाओ
भीष्म पितामह ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, तुम्हें हंसी खुशी से उनका राज्य लौटा देना चाहिए. इसी में तुम्हारा और सब लोगों का भला है अन्यथा क्या होगा कहना मुश्किल है. उन्होंने कहा तुम अपने माथे पर कलंक का टीका क्यों लगवा रहे हो.
पांडवों के भस्म होने की बात से मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया
उन्होंने कहा कि जब मैंने सुना की कुंती और पांचों पांडव भस्म हो गए, मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया था. उनके जलने का जितना दोष तुम पर लगा, उतना पुरोचन पर नहीं जिसने लाक्षागृह बनाया था. अब पांडवों के जीवित होने और मिलने से तुम्हारी अपकीर्ति मिटायी जा सकती है. पांडवों के जीवित रहते स्वयं इंद्र भी उन्हें राज्य से वंचित नहीं कर सकते हैं. वे बुद्धिमान और धर्मात्म हैं और आपस में मेलजोल भी रखते हैं. तुमने उन्हें जो अब तक राज्य से दूर रखने का प्रयत्न किया वह अधर्म है. भीष्म पितामह ने धृतराष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से अपना मत बता देता हूं कि यदि तुम्हें धर्म से रत्ती भर भी प्रेम है, तुम मेरा प्रिय और अपना कल्याण करना चाहते हो तो शीघ्र ही पांडवों को उनका आधार राज्य वापस करवा दो. उनकी बात का बाद में द्रोणाचार्य और महात्मा विदुर ने भी समर्थन किया.
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