Which Body Part Doesn Burn During Cremation: सनातन धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शव का अग्नि में दाह संस्कार किया जाता है. इस संस्कार में शरीर जलकर राख बन जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक अंग ऐसा है, जो बिना जले रह जाता है.
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Which part of the body does not burn during cremation: जीवन के बाद मरण, जिंदगी का ऐसा कठोर सत्य है, जिसे कोई चाहकर भी नहीं बदल सकता. श्रीमदभागवत गीता के अनुसार, जिसने भी इस दुनिया में जन्म लिया है, उसका एक दिन जाना तय है. हालांकि इस सत्य को जानते हुए भी अपनों के जाने का दुख हर किसी को रुला देता है. सनातन धर्म में मृत्यु के पश्चात विधि-विधान के साथ शव का अंतिम संस्कार किया जाता है और उसे अग्नि के हवाले कर दिया जाता है. कुछ ही देर बाद शव जलकर मिट्टी में मिल जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शरीर का एक हिस्सा ऐसा भी है, जो दाह संस्कार के बाद भी नहीं जलता. आखिर इसकी वजह क्या है. उस बिना जले हिस्से का बाद में क्या किया जाता है.
दाह संस्कार में शरीर का कौन सा हिस्सा नहीं जलता?
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, अंतिम संस्कार के समय जब शव को चिता में रखा जाता है तो कुछ ही घंटों में हड्डियों समेत शरीर का पूरा हिस्सा जल जाता है. हालांकि इस दौरान एक अंग ऐसा है, जो बिना जला रह जाता है. यह अंग है मनुष्य के दांत. असल में दांतों का निर्माण कैल्शियम फॉस्फेट से होता है. यह पदार्थ इतना ठोस माना जाता है कि आग भी इसे जला नहीं पाती. यही वजह है कि दाह संस्कार के बाद भी आमतौर पर दांत बिना जले रह जाते हैं, जबकि शरीर का बाकी हिस्सा राख बन चुका होता है.
दांत का यह हिस्सा होता है बेहद सख्त
वैज्ञानिकों के मुताबिक, दाह संस्कार में बहुत तेज गर्मी (करीब 1292 डिग्री फ़ारेनहाइट) निकलती है. जिसे त्वचा, नसों समेत हड्डियां तक जल जाती हैं. इस भीषण आग में दांत का नरम हिस्सा भी जल जाता है. लेकिन तामचीनी नाम का उसका सख्त हिस्सा अक्सर बचा रह जाता है. यह हिस्सा कैल्शियम फॉस्फेट से बना होता है, जिसे बेहद मजबूत माना जाता है. आग भी इस पदार्थ को जला नहीं पाती. इसी कारण के चलते अक्सर दाह संस्कार में दांत का यह हिस्सा बचा रह जाता है.
दाह संस्कार में बचे दांतों का क्या होता है?
दाह संस्कार के 2 दिन बाद शमशान घाट से अस्थियां इकट्ठी की जाती हैं. इस दौरान अस्थियों के साथ ही बिना जले रह गए हड्डियों के कुछ टुकड़ों और दांतों के हिस्सों को इकट्टा कर कट्टे या बोरी में भरा जाता है. इसके बाद उन्हें गंगा नदी या अन्य किसी पवित्र नदी में विधि विधान के साथ प्रवाहित कर दिया जाता है और साथ ही हाथ जोड़कर पुण्य आत्मा को शांति प्रदान करने व उन्हें श्रीहरि के चरणों स्थान देने की प्रार्थना की जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)