Kurma Avatar of Vishnu: शास्त्रों में भगवान विष्णु के 52 अवतारों का वर्णन मिलता है. इसमें उन्होंने दूसरा अवतार कछुए यानी कूर्म के रूप में लिया था. आखिर वह घटना क्या थी, जिसके चलते उन्हें दूसरी बार जीव के रूप में पृथ्वी पर आना पड़ा.
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Lord Vishnu Kurma Avatar Katha: भगवान विष्णु की महिमा अपरंपार और अनंत हैं. वे दुनिया को चलाने वाले हैं. जब-जब भी दुनिया पर संकट आया है, तब-तब वे मानवता को बचाने और फिर से धर्म स्थापित करने के लिए धरती पर आए हैं. पौराणिक ग्रंथों में उनके ऐसे 52 अवतारों का जिक्र मिलता है. अपनी हालिया सीरीज भगवान विष्णु के 10 अवतार में हम उनके ऐसे ही 10 प्रमुख अवतारों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं. आज हम उनके दूसरे अवतार 'कूर्म अवतार' के बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं.
देवराज इंद्र को हो गया था अहंकार
नरसिंह पुराण के अनुसार, एक बार देवताओं को अपने वैभव और शक्ति पर बहुत अहंकार हो गया था. अपनी शक्ति में चूर वे किसी ऋषि-महात्मा को कुछ नहीं समझते थे. महर्षि दुर्वासा ने एक बार परिजात पुष्पों की माला तैयार करके देवराज इंद्र को भेंट की लेकिन अपने अहंकार में चूर इंद्र ने उस माला को पहनने के बजाय ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दिया. ऐरावत हाथी ने उस माला को अपने पैरों तले डालकर कुचल दिया. यह देख महर्षि दुर्वासा को बहुत क्रोध आया और उन्होंने देवताओं को उनकी शक्ति खत्म हो जाने का श्राप दे दिया.
भगवान विष्णु के आगे रोया दुखड़ा
महर्षि दुर्वासा के श्राप के प्रभाव से सभी देवता पूरी तरह शक्तिहीन हो गए और उनकी वैभव-समृद्धि भी पूरी तरह खत्म हो गई. इसका लाभ उठाकर देवताओं ने उन पर हमला शुरू कर दिया. अपनी शक्ति नष्ट हो जाने के बाद से देवता पूरी तरह शक्तिहीन हो चुके थे. इसलिए वे उनका मुकाबला नहीं कर पा रहे थे. इस घटना से दुखी होकर सभी देवता इकट्ठे होकर भगवान विष्णु (Lord Vishnu Kurma Avatar Katha) की शरण में पहुंचे. देवताओं ने उनसे अपना दुखड़ा बताकर उनसे मदद मांगी.
श्रीहरि ने दी समुद्र मंथन की सलाह
उनकी गुहार सुनकर भगवान विष्णु ने उनसे समुद्र मंथन करने के लिए कहा. श्रीहरि ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत कलश निकलेगा, जिसे पीने से देवता अमर हो जाएंगे और उन्हें फिर से पुरानी शक्तियां वापस मिल जाएंगे. लेकिन देवता अकेले मिलकर श्रीर सागर में मंथन नहीं कर सकते, इसलिए देव गुरू बृहस्पति के कहने पर उन्होंने राक्षसों को भी इस मंथन में भाग लेने के लिए राजी कर लिया. उन्होंने दानवों को प्रस्ताव दिया कि अमृत कलश निकलने पर वे उसे आधा-आधा बांट लेंगे.
भारी होने की वजह से डूबने लगा पर्वत
इसके बाद आपसी सहमति से समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया, जबकि नागराज वासुकि को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया गया. इसके बाद देव-दानवों ने मंदराचल पर्वत के चारों ओर नागराज वासुकि को लपेट उसे समुद्र में मथना शुरू किया. लेकिन पर्वत का आकार और वजन ज्यादा होने की वजह से वह समुद्र में डूबने लगा. इसके चलते समुद्र मंथन की प्रक्रिया अधर में लटक गई.
भगवान विष्णु ने लिया कूर्म अवतार
यह देखकर भगवान विष्णु ने विशालकाय आकार वाले बड़े कूर्म यानी कछुए का अवतार (Lord Vishnu Kurma Avatar Katha) लिया और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसे बेस दे दिया. यह उनका पृथ्वी पर दूसरा अवतार था. इससे पर्वत तेजी से घूमने लगा और कुछ समय बाद समुद्र मंथन पूरा हुआ. इसके बाद समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला, जिसे छीनकर इंद्र देवता के पुत्र भागने लगे. उनके पीछे-पीछे दानव भी भागे. भागमभाग में देवता उस अमृत को पी गए, जिससे उन्हें फिर से दैवीय शक्ति और सुख-समृद्धि हासिल हो गई. यदि भगवान विष्णु मदद न करते तो यह समुद्र मंथन कभी संभव ही नहीं हो पाता और इस ब्रह्मांड का सारा विधान ही बिगड़ जाता.
इस दिन मनाई जाती है कूर्म जयंती
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, कूर्म जयंती साल वैशाख महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है. कहते हैं कि इसी दिन देव-दानवों के समुद्र मंथन में सहायता करने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था. इस समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी, कालकूट विष और अमृत समेत 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी. यही वजह है कि कछुआ को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)