Ketu Mahadasha: क्या होती है केतु की महादशा, जिससे चमक जाते नौकरी-कारोबार? 7 साल तक धन-दौलत की झमाझम होती है बरसात
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Ketu Mahadasha: क्या होती है केतु की महादशा, जिससे चमक जाते नौकरी-कारोबार? 7 साल तक धन-दौलत की झमाझम होती है बरसात

Effect of Ketu Mahadasha: पौराणिक ग्रंथों में केतु को छाया ग्रह कहा गया है. यानी कि एक ऐसा ग्रह, जो प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं है लेकिन उसकी उपस्थिति को सहज महसूस किया जा सकता है. इस केतु की महादशा लगने पर किसी का भी भाग्य पलट सकता है.

 

Ketu Mahadasha: क्या होती है केतु की महादशा, जिससे चमक जाते नौकरी-कारोबार? 7 साल तक धन-दौलत की झमाझम होती है बरसात

Ketu Mahadasha Effect in Hindi: वैदिक शास्त्र में छाया ग्रह केतु को पाप ग्रह माना गया है. उसे वैराग्य, मोक्ष, आध्यात्म और तंत्र-मंत्र से जोड़ा गया है. कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर केतु की बुरी नजर पड़ जाए, उसे दरिद्र होते देर नहीं लगती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि केतु हमेशा बुरा फल ही प्रदान करता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी कुंडली में केतु किस स्थिति में और कौन से ग्रह के साथ बैठा है. उसी के अनुसार वह जातक को उचित प्रतिफल प्रदान करता है. 

अगर कुंडली में इस जगह बैठा हो केतु

ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार, यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में केतु अशुभ स्थिति में बैठा हो तो उस व्यक्ति को जीवनभर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उसे कारोबार में नुकसान होता है और करियर भी अच्छा नहीं चल पाता. भाग्य का साथ न मिलने की वजह से उसे बार-बार असफलताओं का सामना करना पड़ता है. 

कहते हैं कि अगर जन्मकुंडली में केतु ग्रह की ओर से कालसर्प दोष का निर्माण हो रहा हो तो उस व्यक्ति के पैरों में कमजोरी आ जाती है. उसे घुटनों में दर्द या पैरों के पतलेपन का सामना करना पड़ जाता है. ननिहाल की ओर से उसे पर्याप्त प्यार और सम्मान नहीं मिलता. उसके कार्यों में बार-बार अटकाव आता है, जिससे उसके मन की शांति और चैन सब उड़ जाते हैं. 

केतु की महादशा का जीवन पर क्या प्रभाव?

धार्मिक विद्वानों के मुताबिक, यदि कुंडली में केतु ग्रह शुभ स्थिति में विराजमान हों तो फिर हर कार्य अच्छे होते चले जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में केतु का तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम और द्वादश स्थान में होना व्यक्ति को अच्छे परिणाम देता है. यानी कि जातक जो भी काम करता है, उसमें उसे शुभ परिणाम हासिल होते हैं. 

केतु और गुरू की युति से क्या होता है?

यही नहीं, यदि केतु और देव गुरू बृहस्पति की युति बन जाती है तो इससे कुंडली में राजयोग का निर्माण होता है. जो व्यक्ति को आध्यात्म के मार्ग की ओर ले जाता है और मानसिक शांति का अनुभव करता है. वहीं केतु के दशम भाव में विराजमान होने पर संबंधित व्यक्ति ज्योतिष विद्या में मान-सम्मान हासिल करता है. केतु की यह महादशा व्यक्तियों की झोली खुशी से भर देती है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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