Sadhus Akhadas Election: कुंभ में कैसे चुनी जाती है संतों की 'सरकार'? किस प्रक्रिया से होता गठन, किन्हें दी जाती है 'महंतों' की जिम्मेदारी
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Sadhus Akhadas Election: कुंभ में कैसे चुनी जाती है संतों की 'सरकार'? किस प्रक्रिया से होता गठन, किन्हें दी जाती है 'महंतों' की जिम्मेदारी

Sadhus Akhadas Election Process: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में संतों की 'सरकार' के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. नियमों के तहत सभी 13 अखाड़ों में मौजूदा कार्यकारिणी को निलंबित कर दिया गया है. साथ ही उनके अधिकार अब 'पंचायत' के पास चले गए हैं.

Sadhus Akhadas Election: कुंभ में कैसे चुनी जाती है संतों की 'सरकार'? किस प्रक्रिया से होता गठन, किन्हें दी जाती है 'महंतों' की जिम्मेदारी

How are Mahants Elected in Sadhus Akhadas: प्रयागराज के महाकुंभ में संतों का हर अखाड़ा आया है. हर अखाड़े की अलग परंपराएं हैं और अलग वेशभूषाए हैं. लेकिन एक बात सबमें समान होती है. ये है संतों की सरकार. जी हां. इन अखाड़ों के लिए महाकुंभ सिर्फ आस्था का विषय नहीं बल्कि नई सरकार चुनने का भी मौका होता है. क्या होती है संतों की सरकार. इसे किस तरह चुना जाता है और क्या होती हैं संतों की सरकार की जिम्मेदारियां. हर डीटेल समझने के लिए पढ़िए हमारी स्पेशल रिपोर्ट. 

जब पूरा संसार महाकुंभ की महिमा को देख रहा है. सनातनी परंपरा और मान्यताओं को समझ रहा है. उसी दौरान. महाकुंभ में आए संत तैयारी कर रहे हैं अपनी नई सरकार चुनने की. सुनकर आप भी चौंक गए होंगे लेकिन यही है महाकुंभ में आए अखाड़ों का वो सत्य, जो बहुत कम लोगों को पता है.  

हर अखाड़े में चुने जाते हैं 8 महंत

दरअसल हर अखाड़े में 8 महंत चुने जाते हैं. इस मंडल को अष्टकौशल कहा जाता है. इन 8 महंतों के सहयोग से 8 उप महंतों का भी चुनाव होता है. ये 16 सदस्यीय समिति आगे चलकर कुछ और पदाधिकारी चुनती है. अखाड़े के कोष का जिम्मा 8 महंतों का होता है. जबकि पदाधिकारी दूसरे प्रशासनिक कार्यों के लिए चुने जाते हैं.

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खास बात ये है कि संतों की सरकार यानी अखाड़ों की कार्यकारिणी हर कुंभ में चुनी जाती है और अगला कुंभ आते ही भंग कर दी जाती है. हर सरकार की अवधि 6 साल की होती है. इस महाकुंभ में भी अखाड़ों की सरकार भंग हो गई है और अब अखाड़ों के संत अगली सरकार चुनने के लिए मंथन कर रहे हैं. 

महाकुंभ में लागू हुई पंचायती व्यवस्था

जिस तरह सरकार ना होने पर देश में राष्ट्रपति शासन लगता है. वैसे ही महाकुंभ में इस वक्त पंचायती व्यवस्था लागू की गई है. इस पंचायती व्यवस्था को चलाने की जिम्मेदारी कुछ खास अखाड़ों को दी जाती है. पंचायती अखाड़ा, महानिर्वाणी पंचायती अखाड़ा, श्रीशंभू पंचायती अटल अखाड़ा, तपोनिधी पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा और पंचायती आनंद अखाड़ा. 

ये वो अखाड़े हैं जो पंचायत को चलाते हैं. अगर किसी संन्यासी के खिलाफ कोई शिकायत है तो उस पर सुनवाई और फैसला इसी पंचायत से किया जाता है. किसी भी अखाड़े की सरकार चलाने के लिए किसी भी सन्यासी को महंत या उप महंत नहीं बनाया जा सकता. इसके लिए अखाड़े में सन्यासी का समय काल और उसके काम को आधार बनाया जाता है.

नए महंत तय करेंगे पदाधिकारियों का कार्यक्षेत्र

महंत राजू दास बताते हैं कि एक बार जब कुंभ में सरकार बन जाएगी तो महंत सभी पदाधिकारियों का कार्यक्षेत्र तय करेंगे और नए सिरे से अखाड़ों का संचालन शुरु हो जाएगा. संतों की ये सरकार सिर्फ अखाड़ों की व्यवस्था नहीं है बल्कि भारतीय परंपरा में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रभाव का भी प्रतीक है. 

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