Lord Vishnu Dasavatar Katha: कहते हैं कि जब-जब भी धरती पर पर अनाचार और पाप बढ़ा है, तब-तब भगवान विष्णु कोई न कोई अवतार लेकर पृथ्वी पर आए हैं. विष्णु के दस अवतार सीरीज में आज हम उनके तीसरे वराह अवतार के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसमें उन्होंने शूकर (सुअर) के मुख और मनुष्य के धड़ के साथ धरती पर अवतार लिया था.
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Why Lord Vishnu Take Varaha Avatar: भगवान विष्णु को श्रीहरि के नाम से भी जाना जाता है. वे इस ब्रह्मांड के संचालक माने जाते हैं. मान्यता है कि जब-जब भी पृथ्वी पर मानवता की हानि हुई और पाप-अत्याचार हद से ज्यादा बढ़े तो भगवान विष्णु ने अवतार लेकर लोगों का उद्धार किया है. विष्णु पुराण में उनके इस तरह के कुल 52 अवतारों का जिक्र मिलता है. अपनी सीरीज भगवान विष्णु के 10 अवतार में आज हम उनके तीसरे अवतार यानी वराह अवतार के बारे में बताने जा रहे हैं.
विष्णु पुराण के अनुसार, एक बार की बात है. पृथ्वी पर हिरण्याक्ष और हिरण्याकशिपु नामम दो शक्तिशाली दैत्य रहा करते थे. वे दोनों महर्षि कश्यप और माता दिति की संतान थे. दोनों बहुत ही बलवान थे. कई देवताओं से वरदान पाकर वे स्वयं को अपराजेय समझने लगे थे. यहां तक कि वे दुनिया के पालनहार भगवान विष्णु को भी अपने सामने तुच्छ मानने लगे थे और उनके बारे में अभद्र भाषा बोलते थे.
जब हिरण्याक्ष राक्षस ने पृथ्वी का कर लिया हरण
अपने बल और मिले वरदानों के मद में चूर होकर एक बार हिरण्याक्ष राक्षस ने सम्पूर्ण पृथ्वी का हरण कर लिया. अपनी मायावी ताकत के बल पर पृथ्वी को पाताल में ले गया और वहां रसातल में छिपा दिया. ऐसा करके वह ब्रह्मांड में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करना चाहता था. पृथ्वी को पाताल लोक में छिपा दिए जाने की वजह से हाहाकार मच गया और जीवन छिन्न-भिन्न होने लगा. सृष्टि के संचालन में बाधा आते देख देवता भी विचलित हो उठे.
श्रीहरि ने कैसे लिया वराह अवतार
कोई उपाय न देखकर सभी देवता इकट्ठे होकर भगवान ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे और उनसे मानवता को बचाने की गुहार लगाई. देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान ब्रह्मा जी की नासिका यानी नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में अवतरित हुए. शुरू में उनकी ऊंचाई महज 8 अंगुल थी लेकिन देखते ही देखते उन्होंने विशाल रूप धारण कर लिया. उनका मुख शूकर यानी सुअर का था, जबकि गर्दन से नीचे का धड़ा मनुष्य वाला था.
थूथन से लगा लिया पृथ्वी का पता
भगवान विष्णु के इस विचित्र और बलशाली रूप को देखकर देवताओं को आशा बंध गई कि अब सृष्टि का उद्धार होने जा रहा है. उन्होंने और सभी ऋषि-मुनियों ने पुष्प वर्षा कर उनकी आराधना की. अपनी थूथन की सहायता से वराह भगवान ने पता लगा लिया कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को कहां छिपाया है. इसके पश्चात वराह अवतार में ही भगवान विष्णु पृथ्वी को वापस लाने के लिए पाताल लोक पहुंचे तो वहां राक्षस हिरण्याक्ष ने उन्हें ललकारा.
हिरण्याक्ष राक्षस का किया वध
पाताल लोक में ही भगवान विष्णु और हिरण्याक्ष राक्षस के बीच भीषण युद्ध हुआ. हिरण्याक्ष ने श्रीहरि पर अपने तमाम मायावी अस्त्र शस्त्र चलाए लेकिन उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. काफी देर युद्ध चलने के बाद भगवान विष्णु के वराह अवतार ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया. इसके पश्चात वे वराह अवतार के अगले दो दांतों पर पृथ्वी को रखकर पाताल लोक से बाहर लेकर आए. फिर अपने खुरों से जल को स्थिर कर पृथ्वी को वहां स्थापित कर दिया.
देह त्यागकर चले गए बैकुंठ धाम
सभी देवी-देवताओं और मुनियों ने पुष्प वर्षा कर उनका सत्कार किया. वह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी. उनके वराह अवतार ने उस दिन व्रत कर जल का आचमन किया और फिर द्वादशी उसी जल में अपनी देह त्याग कर बैकुंठ धाम चले गए. जिस जल में उन्होंने अपनी देह त्यागी, उसे आदि गंगा कहा गया है. उनका यह तीसरा और लोक कल्याण के लिए पहला अवतार था. जिसमें उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी को नष्ट होने से बचाया था. प्रत्येक वर्ष दिसंबर में उनकी वराह जयंती मनाई जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)