Holi 2023: यहां 150 सालों से नहीं मनाई जा रही होली, देवी मां हो जाती हैं नाराज; जानें क्या है वजह
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Holi 2023: यहां 150 सालों से नहीं मनाई जा रही होली, देवी मां हो जाती हैं नाराज; जानें क्या है वजह

Holi Weird Facts: आप सभी होली का इंतजार कर रहे होंगे और व्हाट्सप्प, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर होली के अपने पुराने रंग-बिरंगे चेहरे को पोस्ट कर रहे होगें या अपने दोस्तों को होली की अग्रिम बधाई दे रहे होंगे.

 

Holi 2023: यहां 150 सालों से नहीं मनाई जा रही होली, देवी मां हो जाती हैं नाराज; जानें क्या है वजह

Trending News: आप सभी होली का इंतजार कर रहे होंगे और व्हाट्सप्प, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर होली के अपने पुराने रंग-बिरंगे चेहरे को पोस्ट कर रहे होगें या अपने दोस्तों को होली की अग्रिम बधाई दे रहे होंगे. लेकिन क्या आप जानते है छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में 2 ऐसे गांव हैं जहां पिछले 150-160 साल से लोगों ने रंग-गुलाल नहीं उड़ाए. गांव वाले होली ना मनाने की वजह देवी माता के प्रकोप को बताते हैं. वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग होता है जिसे आनंद या उल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों का भी एक त्यौहार होली पूरी दुनिया में हिंदू धर्म के मानने वाले लोग मनाते हैं.

गांव में आखिर क्यों नहीं मनाई जाती होली

कोरबा जिले के दो ऐसे गांव है जो होली का त्यौहार सालों से बेरंग मनाते है, इन गांवों में होली के दिन पकवान तो बनते है लेकिन होलिका दहन नहीं होता और ना ही रंग-गुलाल उड़ाए जाते हैं. कोरबा जिले का पहला गांव है खरहरी जो 35 किलोमीटर की दूरी पर मां मड़वारानी के प्राकट्य पहाड़ों के नीचे बसा है. इस गांव में पिछले 150 सालों से होली का त्योहार नहीं मनाया गया है. गांव के बुजुर्गों का मानना है कि उनके जन्म के काफी समय पहले से ही इस गांव में होली ना मनाने का रिवाज है. इस गांव में करीब 650 से 700 लोग रहते हैं. गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यहां सालों पहले भीषण आग लगी थी, गांव के हालात बेकाबू हो गए थे और गांव भर में महामारी फैल गई थी.

बुजुर्ग बताते हैं पुराने समय का किस्सा

इस दौरान गांव के लोगों का भारी नुकसान हुआ था और हर तरफ अशांति फैल गई थी. ऐसे में एक रोज गांव के एक बैगा (हकीम) के सपने में देवी मां मडवारानी आईं और उन्होंने बैगा को इस त्रासदी से बचने का उपाय बताया. उन्होंने कहा कि गांव में होली का त्योहार कभी ना मनाया जाए तो यहां शांति वापस आ सकती है. तभी से इस गांव में कभी भी होली का त्योहार नहीं मनाया गया. ग्रामीणों ने बताया कि ना यहां होलिका दहन होता है और ना ही रंग उड़ाए जाते हैं केवल होली के नाम से पकवान बनते हैं.

पकवान तो बनते हैं लेकिन रंग नहीं खेले जाते

गांव में किसी को नहीं मालूम कि आखिरी बार कब होली मनाई गई. होली खेलने से कब गांव में आग लगी, किसकी मौत हुई, ग्रामीण पुरखों से सुनते हुए आ रहे हैं इसलिए पिछले 150 सालों से गांव में किसी ने होली ही नहीं मनाई. खरहरी गांव में आज भी पुरानी मान्यताओं को माना जाता है. लोगों का आज भी मानना है कि नियम तोड़कर रंग-गुलाल खेलने वालों पर माता का कहर टूट पड़ता है और वे बीमार हो जाते हैं. चेहरे व बदन पर दाने निकल आते हैं और पूजा-अनुष्ठान के बाद ही सब कुछ ठीक हो पाता है. 

गांव के बड़ों से लेकर बच्चे तक हर कोई नियम का पालन करता है. अब गांव में आने वाले नए लोग अब इन पंरपरों को देखते हुए दूसरे गांव में जाकर होली मना रहे हैं. खासकर शादी होकर आने वाली महिलाएं मायके में जाकर होली मनाना पंसद कर रही है. गांव के टीचर की माने तो बच्चों मे भी बुजुर्गों की बातों का इतना डर है की वे होली नहीं मनाना चाहते.

दूसरे गांव में भी कुछ ऐसी है मान्यता

जिले का दूसरा गांव है धमनागुड़ी जो कोरबा से करीब 30 किलोमीटर दूर और मड़वारानी से महज 5 किमी दूर है. इस गांव में भी पिछले 150 सालों से कभी होलिका दहन नहीं हुआ और न ही होली खेली गई. इस गांव में किवदंती है कि होली खेलने से गांव के देवी-देवता नाराज हो जाते हैं. ग्रामीणों की माने तो सालों पहले जब गांव में पुरूष वर्ग होली मना रहे थे और नशे में गाली-गलौच कर रहे थे. तब डंगनहीन माता (बाँस की देवी) गांव की महिलाओं के शरीर मे प्रवेश कर गईं और डांग (बांस) से पुरुषों की पिटाई करने लगी. जब पुरुषों ने माफी मांगी तब माता ने उन्हें गांव में होली ना मनाने की शर्त पर माफ किया. उस समय से आज तक गांव में होलिका दहन नहीं होता और ना ही रंग-गुलाल खेले जाते है. भले ही अब कुछ लोगों को लगता है कि ये अंधविश्वास है और अब इस नियम को बंद कर गांव में होली खेलने की छूट दी जाए.

दोनों गांव के बीच की दूरी सिर्फ 5 किमी

दोनों गांव की दूरी महज 5 किमी है और सालों पहले दोनों ही गांव के लोग पेड़-पौधों को होलिका में काटकर डाल देते थे और होलिका दहन करने के बाद अपशब्दों और गालियों का उपयोग करते थे. आज की पीढ़ी यह मानती है कि पेड़ों की कटाई और गालियों से ही वनदेवी नाराज हुईं, और उन्होंने संदेश भेजा कि होली न जलाएं पेड़ों को न काटें. तब से ये परंपरा कायम है. अब इसे ग्रामीणों की आस्था कहे या अंधविश्वास लेकिन ग्रामीणों की होली ना मनाने की वजह से कई पेड़ कटने से बच जा रहे है, लेकिन मासूम बच्चों के मन में होली के रंगों और मस्ती को लेकर जो उत्साह रहता है वह इन ग्रामीणों की किवदंतियों में दब जा रही है.

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