Zakir Hussain Burial: दुनिया के महान तबला वादक जाकिर हुसैन का पार्थिव शरीर भारत नहीं लाया जाएगा. उनका अंतिम संस्कार अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में ही किया जाएगा, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली.
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Zakir Hussain Burial: दुनिया के महान तबला वादक जाकिर हुसैन का पार्थिव शरीर भारत नहीं लाया जाएगा. उनका अंतिम संस्कार अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में ही किया जाएगा, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. परिवार के करीबी सूत्रों के मुताबिक जाकिर हुसैन ने अपनी अंतिम इच्छा में अमेरिका में ही दफन होने की बात कही थी. उनके भाई और बहन अमेरिका पहुंच चुके हैं.
सैन फ्रांसिस्को में होगा अंतिम संस्कार
महान तबला वादक जाकिर हुसैन का अंतिम संस्कार सैन फ्रांसिस्को में किया जाएगा. संभवत: बुधवार को उन्हें वहां सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा. जाकिर हुसैन के भाई फजल कुरैशी भारत से अमेरिका पहुंच चुके हैं, जबकि उनकी बहन खुर्शीद औलिया लंदन से अमेरिका रवाना हो चुकी हैं.
अंतिम इच्छा: पत्नी के पास ही रहना चाहते थे
परिवार के करीबी सूत्रों के मुताबिक, जाकिर हुसैन ने अपनी इटैलियन पत्नी एंटोनिआ मिन्नेकोला से कहा था कि वह हमेशा उनके पास ही रहना चाहते हैं. उन्होंने यह इच्छा भी जताई थी कि मृत्यु के बाद उन्हें अमेरिका में ही दफन किया जाए. भारत में उनके परिवार और दोस्तों की ओर से 27 दिसंबर को मुंबई के षण्मुखानंद हॉल में एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इस कार्यक्रम में संगीत जगत के कई दिग्गज कलाकार शामिल होंगे.
तौफीक कुरैशी ने साझा की यादें
जाकिर हुसैन के छोटे भाई और प्रसिद्ध संगीतकार तौफीक कुरैशी ने अपने भाई के साथ जुड़ी यादें साझा कीं. उन्होंने कहा, "जाकिर भाई मेरे लिए पिता, भाई और दोस्त समान थे." तौफीक ने एक यादगार संगीत कार्यक्रम का जिक्र करते हुए बताया कि जर्मनी में 80 के दशक के अंत में उन्हें अपने पिता अल्ला रक्खा और भाई जाकिर हुसैन के साथ प्रस्तुति देने का मौका मिला था.
जाकिर हुसैन का संगीत में योगदान
जाकिर हुसैन ने अपने करियर में कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते, जिनमें प्रतिष्ठित ग्रैमी अवॉर्ड भी शामिल है. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व मंच पर नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. उनके तबले की थाप ने हर पीढ़ी के संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया.
तौफीक ने बताया करियर का महत्वपूर्ण मोड़
तौफीक कुरैशी ने बताया कि जर्मनी का वह संगीत कार्यक्रम उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ था. उन्होंने कहा, "जाकिर भाई के साथ मंच साझा करना मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा क्षण था. उन्होंने हमेशा युवा कलाकारों को प्रोत्साहित किया और कभी किसी को असहज महसूस नहीं होने दिया."
फेफड़ों की बीमारी से हुआ निधन
जाकिर हुसैन का निधन फेफड़ों की बीमारी "इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस" के कारण हुआ. इस बीमारी से उत्पन्न जटिलताओं के चलते उन्होंने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में अंतिम सांस ली. जाकिर हुसैन के निधन से संगीत जगत में शोक की लहर है. उनके चाहने वाले और शिष्य उन्हें एक महान गुरु और प्रेरणा के रूप में याद कर रहे हैं. उनकी तबला साधना और संगीत के प्रति समर्पण ने उन्हें दुनिया भर में सम्मान दिलाया.
पिता अल्ला रक्खा की विरासत को आगे बढ़ाया
जाकिर हुसैन ने अपने पिता और महान तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा की विरासत को आगे बढ़ाया. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को आधुनिकता के साथ जोड़ते हुए इसे विश्व मंच पर लोकप्रिय बनाया. जाकिर हुसैन की कला, उनका व्यक्तित्व और संगीत के प्रति उनका समर्पण उन्हें हमेशा यादगार बनाए रखेगा. उनके जाने से भारतीय संगीत जगत को अपूरणीय क्षति हुई है, लेकिन उनकी थाप हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजती रहेगी.
(एजेंसी इनपुट के साथ)