UP Politics: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने के बाद समाजवादी पार्टी को यूपी विधानसभा के उपचुनाव से काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं. अब सपा की नजर इस उपचुनाव की 10 सीटों पर है. ये उपचुनाव बीजेपी और सपा दोनों के लिए इम्तेहान होगा.
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UP Politics: लोकसभा चुनाव के नतीजों से सपा की उम्मीद की लव जली. बीजेपी को आधी पर समेटने के बाद सपा की नजर आगामी यूपी विधानसभा के उपचुनाव पर है. ये उपचुनाव दोनों ही पार्टियों के लिए एक इम्तेहान है. यूपी के 9 विधानसभा सदस्य संसद पहुंच गए हैं, जिनमें सपा के 4 और बीजेपी के 5 विधायक सांसद बने हैं. ऐसे में अब उनकी खाली हुई सीटों पर न सिर्फ प्रत्याशी चयन को लेकर मंथन करना है, बल्कि इन सीटों पर जीत दर्ज करके आगे के लिए संदेश भी देना जरूरी है. इसके लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपनी रणनीति पर काम भी कर रहे हैं.
किन-किन सीटों पर उपचुनाव है?
जिन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है, उनमें मैनपुरी की करहल सीट, फैजाबाद की मिल्कीपुर सीट, अंबेडकर नगर की कटेहरी सीट, मुरादाबाद की कुंदरकी सीट, अलीगढ़ की खैर सीट, गाजियाबाद की सदर सीट, प्रयागराज की फूलपुर सीट, मीरांपुर विधानसभा सीट और मिर्जापुर की मझवा सीट का नाम शामिल है. इस सभी सीटों को बीजेपी और सपा हर हाल में जीतना चाहती है.
करहल सीट पर सबकी नजर
लोकसभा चुनाव से 'कमबैक' करने वाली समाजवादी पार्टी के लिए ये उपचुनाव बेहद खास है. वह अब इसी को बनाए रखना चाहेगी. दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे की सीटों पर नजर बनाए हुए है. सबसे ज्यादा अखिलेश यादव की सीट करहल विधानसभा चर्चाओं में है. कन्नौज से अखिलेश यादव के सांसद चुने जाने के बाद इस सीट पर सबकी नजर है. माना जा रहा है कि इस सीट पर पूर्व सांसद और अखिलेश यादव के भतीजे तेज प्रताप यादव को मौका मिल सकता है. भतीजे तेज प्रताप अखिलेश यादव के विश्वस्त हैं. साथ ही मैनपुरी और कन्नौज के चुनाव में लगातार सक्रिय भी रहे हैं.
अयोध्या में फिर इम्तेहान
करहल विधानसभा के जैसे ही अयोध्या के मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर भी कांटे की टक्कर होगी. अयोध्या की इस सीट से सपा विधायक अवधेश प्रसाद अयोध्या से सांसद बन गए हैं. ये एक ऐसी सीट है, जहां 9 बार से अवधेश प्रसाद विधायक रहे हैं, क्योंकि वह अब संसद पहुंच गए हैं. सपा ने रणनीति के तहत यहां सामान्य सीट पर दलित प्रत्याशी उतारा था. तो ऐसे में सपा उनके बेटे अजीत प्रसाद को चुनावी मैदान में उतार सकती है. क्योंकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जीती हुई इस विधानसभा सीट को किसी भी हाल में हाथ से नहीं जाने देना चाहेंगे. जिसकी वजह से अखिलेश यादव अभी से एक्टिव हो गए हैं. समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अयोध्या में साधु-संतों से मुलाकात की. सूत्रों की मानें तो अखिलेश यादव ने इस सीट से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को लड़ाने का इशारा स्थानीय पदाधिकारियों को दे दिया है हालांकि, इसकी आधिकारिक घोषणा बाद में की जाएगी.
गढ़ बचा पाएगी सपा?
कानपुर की सीसामऊ सीट समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी के सजायाफ्ता होने से खाली है. ये सपा की मजबूत सीटों में से एक है, जहां इस बार सपा इरफान सोलंकी के परिवार से ही किसी को टिकट दे सकती है. मुरादाबाद की कुंदरकी सीट संभल लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, लेकिन मुस्लिम बहुल होने की वजह से ये सीट समाजवादी पार्टी की गढ़ मानी जाती है. जियाउर रहमान वर्क यहां से विधायक थे, जो इस बार संभल सीट से सांसद बन चुके हैं. ऐसे में 60 फीसदी मुस्लिम बाहुल्य वाली इस सीट पर बीजेपी के लिए जीतना थोड़ा मुश्किल है.
बीजेपी के लिए मुश्किल मुकाबला
कटहरी अंबेडकरनगर की सीट है, जहां से सपा के वरिष्ठ नेता और विधायक लालजी वर्मा विधायक थे. इस बार लालजी वर्मा अंबेडकरनगर से सांसद बन गए हैं. अब लालजी वर्मा अपनी बेटी छाया वर्मा को यहां से चुनाव लड़ाना चाहते हैं और ये सीट भी बीजेपी के लिए मुश्किल सीटों में से एक है. मुजफ्फरनगर की मीरापुर जीतना भी बीजेपी के लिए आसान नहीं है. 2022 में आरएलडी, सपा गठबंधन ने ये सीट जीती थी, चंदन चौहान जो सपा और आरएलडी के गठबंधन में जीते थे. इस बार बीजेपी-आरएलडी गठबंधन से बिजनौर से सांसद बन गए हैं, लेकिन ये सीट मुस्लिम बाहुल्य होने की वजह से सपा के लिए जीत दर्ज करना मुश्किल नहीं.
सपा और बीजेपी की परीक्षा
वहीं गाजियाबाद से विधायक अतुल गर्ग, हाथरस से विधायक अनूप वाल्मीकी, फूलपुर से प्रवीण पटेल, मिर्जापुर के मझवां से डॉ. विनोद बिंद भदोही के सांसद चुने गए हैं. ऐसे में 6 महीने में यूपी की सभी 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एक बार फिर से सियासी दलों की अग्निपरीक्षा होगी. खासतौर पर समाजवादी पार्टी और बीजेपी की रणनीति की परीक्षा होगी. इन सीटों में 4 सीटें सपा तो 5 सीटें बीजेपी के पास थीं. ऐसे में बीजेपी के लिए जहां सपा के कब्जे वाली सीटों को जीतकर लोकसभा चुनाव का कसर पूरा करना है. वहीं सपा के सामने भी लोकसभा चुनाव की जीत की लहर को बरकरार रखने की चुनौती है.
गठबंधन के तालमेल का भी इम्तेहान
इतना ही नहीं जिन सीटों पर उपचुनाव होना है, उन सीटों पर गठबंधन के सहयोगियों के बीच भी तालमेल की परीक्षा होगी. जहां बीजेपी के लिए आरएलडी से तालमेल का इम्तेहान है तो वहीं सपा को कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की चुनौती है. कांग्रेस सपा की 4 सीटों में हिस्सेदारी भी मांग सकती है. वहीं जितिन प्रसाद के विधानपरिषद की सीट खाली होने से एक एमएलसी सीट पर भी चुनाव होगा.