Vijayadashami: राजस्थान में एक ऐसी जगह है, जहां विजयदशमी से पहले ही रावण का दहन किया जाता है, आखिर इसकी क्या कहानी है, ऐसा क्यों किया जाता है, आपको बता दें कि तीन दिनों तक विजय उत्सव भी मनाया जाता है.
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Vijayadashami: पूरे देश भर में विजयदशमी के पर्व पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है, लेकिन राजधानी जयपयर के रेनवाल क्षेत्र में असत्य पर सत्य की जीत का यह पर्व 1 दिन नहीं बल्कि 6 माह तक मनाया जाता है.500 सालों से विजय दशमी से पहले दशहरा मनाने की परंपरा आज भी अपनी संस्कृति और विरासत को संजोए हुए है. इस मेले में दक्षिण भारत की शैली को दर्शाया जाता है जिसे देखने दूरदराज से जनसैलाब उमड़ता है.
देश भर में विजयदशमी का त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है,लेकिन किशनगढ़ रेनवाल शहर में विजयदशमी से 4 दिन पहले ही यहां दशहरा का पर्व मनाया जाता है. अपनी संस्कृति और परंपराओं को निभाते हुए असत्य पर सत्य की जश्न 1 दिन नहीं बल्कि पूरे 6 माह तक मनाया जाता है.
रावण दहन का जश्न यहां रेनवाल सहित आसपास के क्षेत्र में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है, दक्षिण भारतीय शैली में होने वाले इस मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते है.इस मेले की खास बात ये है कि विजयादशमी के दिन राम रावण की सेना के बीच युद्ध होता है.इसमें बुराई के प्रतीक रावण का वध किया जाता है.
किशनगढ़ रेनवाल का दशहरा एक अलग ही छाप छोड़ता हुआ नजर आता है,यहां के दशहरे में दक्षिण भारत की शैली नजर आती है. दक्षिण भारत की मुखौटा नृत्य से सबसे आकर्षण का केंद्र है, इस नृत्य को देखकर यहां के लोग गदगद हो जाते हैं.दूसरा आकर्षण का केंद्र है विजय उत्सव है, जहां सब जगह रावण दहन के बाद जश्न मनाना बंद कर देते हैं.
वहीं, यहां पूरी रात भर विजय उत्सव मनाया जाता है, श्री राम की सेना पूरी रात भर ढोल नगाड़ों की मधुर-धुन पर रात जश्न मनाते हुए नजर आते हैं. और इसकी संस्कृति और परंपरा को देखने देर रात तक लोग यहां डटे रहते हैं.
किशनगढ़ रेनवाल में दशहरे पर चली आ रही वर्षों से इस परंपरा को सभी क्षेत्र के लोग बखूबी निभाते आ रहे हैं. यहां एक दर्जन से ज्यादा बार रावण का दहन किया जाता है, और इन सभी मेलों में दक्षिण भारत की प्रमुख शैली मुखौटा नृत्य यहां की खास पहचान है जिसे देखने दूरदराज से लोग आते हैं.
यहां 6 माह तक चलने वाले रावण दहन के कार्यक्रमों में सभी समाज के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और यहां एक परिवार पिछले 34 सालों से रावण के पुतले का निर्माण करते आ रहे हैं रेनवाल में 6 महीने मनाए जाने वाले दशहरे के त्योहार में इस परिवार की अहम भूमिका रहती है.
किशनगढ़ रेनवाल में आसोज सुदी छठ को रावण दहन किया जाता है,इसके अलावा रेनवाल और करड़ में अष्टमी को रावण दहन किया जाता है,सिनोदिया और डासरोली में नवमी को रावण दहन किया जाता है,हरसोली गांव में विजयादशमी पर रावण दहन किया जाता है.
करणसर में आसोज सुदी तेरस को रावण दहन किया जाता है,बागावास और मिंडी गांव में कार्तिक चतुर्थी को रावण दहन किया जाता है.बांसडी खुर्द मे कार्तिक सप्तमी को रावण दहन किया जाता है.नांदरी में होली के बाद वैशाख दशमी को रावण दहन किया जाता है.
नवरात्रों के साथ ही अपने देश भर में संस्कृति और परंपराओं के साथ धार्मिक त्योहार शुरू हो जाते हैं,और विजयदशमी को बुराई के प्रतीक रावण का पुतला जलाकर बुराई का अंत किया जाता है. लेकिन यहां रेनवाल में विजयदशमी से पहले अहंकारी रावण का पुतला जलाया जाता है, जिसे होली तक बार बार मारा जाता है.ऐसे में आज भी लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को निभा रहे हैं.
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