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Jaipur Kite Festival: चांदी-सोने के घुंघरू लगाकर मखमली कपड़े की बनी उड़ती थीं पतंगें, 400 साल पहले इस राजा ने शुरू की थी पतंगबाजी की परंपरा

Jaipur Kite Festival: देशभर में मंकर संक्रांति की धूम है. लेकिन राजस्थान में इस त्योहार पर अलग ही नजारा देखने को मिलता है. राज्य में काइट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है.

जयपुर काइट फेस्टिवल

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जयपुर काइट फेस्टिवल

हर साल की तरह इस बार भी जयपुर में काइट फेस्टिवल का आयोजन हो रहा है. इस फेस्टिवल में लोग दूर-दूर से शामिल होने आते हैं. खास बात इसकी यह होती है कि यहां आपको पतंगों की खूब वैराइटी देखने को मिलती है. जयपुर का काइट फेस्टिवल देश ही नहीं, दुनियाभर में मशहूर है.

400 साल पुराना है पतंगबाजी का इतिहास

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400 साल पुराना है पतंगबाजी का इतिहास

बता दें कि राजस्थान में पतंगबाजी की परंपरा आज -कल से नहीं बल्कि 400 साल से चली आ रही है. जयपुर की बसावट से पहले आमेर में पतंगबाजी की शुरुआत हुई थी. तब के तत्कालीन मिर्जा राजा जयसिंह के समय भी पतंगें उड़ाई जाती थी. 

महाराजा सवाई रामसिंह ने शुरु की परंपरा

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महाराजा सवाई रामसिंह ने शुरु की परंपरा

19वीं शताब्दी में सवाई रामसिंह ने पतंग उड़ाने का चलन शुरू किया था. उन्हें पतंगबाजी का काफी शौक था.  रामसिंह ने 36 कारखाने बनवाए थे, जिनमें एक कारखाना पतंगों का था. इसमें कई जगहों से पतंगें मंगवाकर संग्रह किया जाता था. 

मखमल के कपड़े की होती थी पतंग

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मखमल के कपड़े की होती थी पतंग

जानकारी के मुताबिक तब पतंगों को तुक्कल के नाम से जाना जाता था. कहा जाता है कि सवाई रामसिंह पतले मखमली कपड़े की चांदी-सोने के घुंघरू लगी पतंगें चन्द्रमहल की छत से खूब उड़ाया करते थे. इतना ही नहीं पतंग लूटने वालों को इनाम देते थे. इस परंपरा को माधोसिंह द्वितीय, मानसिंह द्वितीय ने आगे बढ़ाया.

समय के साथ बदलते रहे पतंगों के आकार

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समय के साथ बदलते रहे पतंगों के आकार

समय के साथ पतंगों का आकार और नाम में कई बदलाव हुए.  लेकिन पतंगबाजी का जुनून आज भी लोगों के सिर चढ़कर बोलता है.  जानकारों की मानें तो पहले पतंगें कपड़े और कागज की बनती थीं, अब कागज और पन्नी की पतंगें मार्केट में मिलती हैं. वहीं बाजारों में सोने-चांदी की पतंगों का भी खूब क्रेज देखने को मिलता है.