Jyotiba Phule Death Anniversary: महिलाओं के लिए ज्योतिबा फुले इसलिए थे खास, जानें बलिदान की कहानी
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Jyotiba Phule Death Anniversary: महिलाओं के लिए ज्योतिबा फुले इसलिए थे खास, जानें बलिदान की कहानी

Jyotiba Phule Death Anniversary: हर दौर में समाज सुधारकों को विरोध और संघर्ष झेलना पड़ता है. 19वीं सदी में भारतीय समाज (Indian Society) में फैली कुरीतियों के खिलाफ ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) अलग नहीं है, लेकिन खास बहुत है.

Jyotiba Phule Death Anniversary: महिलाओं के लिए ज्योतिबा फुले इसलिए थे खास, जानें बलिदान की कहानी

Jyotiba Phule Death Anniversary: आज अगर कुरीतियों और रुढ़ीवादिता की जंजीरों से बाहर है तो इसका श्रेय हमारे समाज में हुए समाज सुधारकों को जाता है. पर कहते है ना अगर कोई सुधार के लिए अपनी आवाज को मुखर करता है तो पूरा समाज मिलकर उसका विरोध करता है. क्योंकि बदलाव  में ढलना कोई नहीं चाहता. लेकिन फिर भी समाज सुधारक अपनी राह में आए हर रोड़े को पार करते हुए अपना रास्ता बना ही लेते है. 

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वहीं, 19वीं सदी में भारतीय समाज (Indian Society) में फैली कुरीतियों के खिलाफ ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) का नाम अलग नहीं है. क्योंकि इश्वर चंद्र विद्यासागर के बाद  महिलाओं के उत्थान (Women Empowerment) के लिए इन्होंने ही अपनी आवाज को मुखर किया था.  उन्होंने महिला शिक्षा, नवजात शिशुओं की हत्या रोकने के लिए अनाथ आश्रम खोले और हिंदू समाज  के सभी वर्गों के साथ ही नहीं बल्कि बाकी धर्मों को भी साथ लाने के लिए सार्थक प्रयास किए.

कौन थे ज्योतिबा फुले 
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में हुआ था. उनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविन्दराव था.उनका परिवार कई पीढ़ी पहले माली का काम करता था. वे सातारा से पुणे फूल लाकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करते थे इसलिए उनकी पीढ़ी 'फुले' के नाम से जानी जाती थी। 

महिलाओं के लिए प्रयास
ज्यातिबा फुले कार्य महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज नाम की संस्था के जरिए समाज में आज भी किए जाते हैं. उनका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को शिक्षा का अधिकार प्रदान करवाना था. इसके अलावा उन्होंने बाल विवाह का विरोध किया और विधवा विवाह को भी समाज में स्वीकार्य बनाने के लिए प्रयास किए.  वे समाज को अंधविश्वास और पुरानी कुप्रथाओं से मुक्ति करना चाहते थे.

स्त्रियों की शिक्षा के लिए विशेष
ज्योतिबा का पूरा जीवन स्त्रियों की शिक्षा, उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता के लिए बीता. 19वीं सदी में स्त्रियों की शिक्षा को महत्वहीन समझा जाता था. वे महिलाओं और पुरुषों के इस भेद का मिटाना चाहते थे. उन्होंने कन्याओं के लिए भारत की सबसे पहली पाठशाल पुणे में बनाई.  महिलाओं की तकलीफों से उन्हें बहुत ही दुख होता था और महिलाओं के उत्थान के लिए बदलाव लाने के निश्चय किया. एक बार की बात है उस समय महाराष्ट्र में जाति-प्रथा बड़े ही वीभत्स रूप में फैली हुई थी. स्त्रियों की शिक्षा को लेकर लोग उदासीन थे, ऐसे में ज्योतिबा फुले ने समाज को इन कुरीतियों से मुक्त करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन चलाए. उन्होंने महाराष्ट्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा तथा अछूतोद्धार का काम आरंभ किया था. उन्होंने पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहला विद्यालय खोला.

अपनी पत्नी को शिक्षित कर अध्यापिका बनाया

समाज सुधार की शुरुआत ज्योतिबा ने अपने ही घर से की थी. उन्होंने महिलाओं के लिए उस समय एक ऐसा शिक्षित कदम उछाया जिससे आज हर महिला समाज में सर उठा के जी रही है. ज्योतिबा ने  सबसे पहले अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले को खुद शिक्षा प्रदान की. कन्याओं के लिए जब उन्हें कोई महिला अधापिका नहीं मिली तो उन्होंने अपने को इस पद के लिए तैयार किया और उन्हें इस योग्य बनाया. इसके लिए उन्हें अपने ही समाज के लोगों तक से विरोध झेलना पड़ा. पर उन्होंने परवाह न करते हुए अपनी राह पर चलते रहे और अपनी पत्नी को शिक्षित कर  अध्यापिका बनाया. 

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