भारत की सबसे बड़ी नहर कैसे बनी 'गंगानहर' से 'इंदिरा गांधी नहर' जानें पूरी कहानी
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1254559

भारत की सबसे बड़ी नहर कैसे बनी 'गंगानहर' से 'इंदिरा गांधी नहर' जानें पूरी कहानी

इंदिरा गांधी नहर का सच:रेगिस्तान का नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है कि दूर-दूर तक पसरे रेत के टीले और दूर-दूर तक सूखा. वैसे में रेगिस्तान की छाती को चीड़कर पानी निकालना को दूर सोचने मात्र से ही पसीना निकल आता है. 

1984 में इस नहर का नाम इंदिरा गांधी नहर रखा गया.

Jaipur: गंगा को पृथ्वी पर लाने का श्रेय भगीरथ को दिया जाता है लेकिन रेगिस्तान में नदी लाने का श्रेय या फिर राजस्थान का भागीरथी किसे कहा जाता है. जीहां,राजस्थान का भागीरथी जिसे आज भी यहां के लोग पूजते है. बहुत ही दिलचस्प कहानी कहे या एक रोचक इतिहास जिसे राजस्थान के लोग इसे अपना गौरव मानते हैं. रेगिस्तान का नाम सुनते ही मन में एक तस्वीर उभरती है कि दूर-दूर तक पसरे रेत के टीले और दूर-दूर तक सूखा. वैसे में रेगिस्तान की छाती को चीड़कर पानी निकालना को दूर सोचने मात्र से ही पसीना निकल आता है. लेकिन ये ख्वाब कभी देखा गया था जो बाद में हकीकत हो गया.

आइए जानते हैं क्या है- इंदिरा गांधी नहर की प्रमुख विशेषताएं

  • यह एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित नहर है.
  • इस नहर ने पश्चिमी राजस्थान के लोगों का दशा और दिशा बदल दिया. 
  • इस नहर के द्वारा 17.41 करोड़ हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जाता है.
  • यह नहर राजस्थान में मरुस्थल की गंगा सिद्ध हुई है.
  • इंदिरा गांधी नहर ने अनेक लोगों को रोजगार प्रदान किया. 

इंदिरा गांधी नहर को राजस्थान का भागीरथी कहा जात है. पहले इस नहर को ‘राजस्थान नहर’ के नाम से जाना जाता था. इंदिरा गांधी नहर का नाम सुनते ही लगता है कि इस नहर को इंदिरा गांधी द्वारा बनवाया गया होगा. लेकिन हकीकत कुछ और ही है. आइए जानते कि इंदिरा गांधी नहर परियोजना का जनक किसे कहा जाता है.

'छप्पनिया अकाल' ने मचाई थी बड़ी तबाही
इंदिरा गांधी नहर के निर्माण से पूर्व लोगों को कई मील दूर पैदल चलकर पीने का पानी लाना पड़ता था. तब राजस्थान में पानी तलाश करना एक जंग लड़ने जैसा ही था. तभी सन 1899 में उत्तर भारत में भयंकर अकाल पड़ा था. इस भयंकर अकाल में राजस्थान बुरी तरह चपेट में आया था. राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, नागौर, चुरू और बीकानेर इलाके भयंकर तरीके से सूखे की जद में आये थे. ये अकाल विक्रम संवत 1956 में होने के कारण इसे स्थानीय भाषा में 'छप्पनिया अकाल' भी कहा जाता है. अंग्रेजों के गजेटियर में ये अकाल 'द ग्रेट इंडियन फैमीन 1899' के नाम से दर्ज हो गया था.

fallback

महाराजा गंगा सिंह ने रेगिस्तान में नदी लाने का बीड़ा उठाया
इस अकाल को देखकर बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने रेगिस्तान में नदी लाने का बीड़ा उठाया. उस रेगिस्तान पर पानी लाने का बीड़ा उठाया जहां राहगीर चाहकर भी गुजरना नहीं चाहते थे. इस इलाके में भीषण गर्मी पड़ने की वजह से गुजरना तो दूर इन इलाकों के तरफ देखना भी पसंद नहीं करते थे. लू के ऐसे थपेड़े पड़ते थे जैसे बदन पर आग के गोले पीछे-पीछे चल रहे हो.  

तभी बीकानेर रियासत के नये राजा महाराजा गंगा सिंह का राजतिलक हुआ था. महाराजा गंगा सिंह जी ने राजा लालसिंह के घर तीसरी संतान के रूप जन्म लिया. जिनके बड़े भाई डूंगरसिंह जी थे. महाराजा गंगासिंह जी का जन्म 3 अक्टुबर 1880 को हुआ था.महाराजा गंगा सिंह जी के जन्म के समय ही देश अंग्रेजी सत्ता के अधीन हो चुका था और गुलामी की जंजीरों में कैद था.

fallback

महाराजा गंगा सिंह को छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी मिली
महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर रियासत का कार्य भार बड़े भाई डुंगरसिंह जी की मृत्यु उपरांत संभाला था. ये एक वीर योद्धा के साथ साथ करणी माता के परम भक्त थे. महज सात साल की उम्र में राजा बन चुके महाराजा गंगा सिंह को छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी मिल गई थी. महाराजा गंगासिंह राजस्थान में पानी की कमी से भलीभांति वाकिफ थे. 

छप्पनिया अकाल का दिल दहला देने वाला नजारा देख चुके थे महाराजा
दरअसल महाराजा गंगा सिंह ने साल 1899 में राजस्थान में छप्पनिया अकाल का दिल दहला देने वाला नजारा देख चुके थे. इन इलाके के लोगों को पानी के लिए मरते और तड़पते हुए देखा था. तभी से उन्होंने राजस्थान के लोगों के लिए एक ख्वाब देखा था. वो ख्वाब था रेगिस्तान में दूर -दूर तक पसरे रेत के टीले के बीच नदी प्रवाहित करने का. इन्हें कलयुग का भागीरथ भी कहा जाता है. आज भी राजस्थान के लोग इनकी पूजा करते है.

कलयुग का भागीरथ महाराजा गंगा सिंह को कहा जाता है
कलयुग के भागीरथ कहे जाने वाले महाराजा गंगा सिंह ने रेगिस्तान में नदी का तो ख्वाब देख लिया था, लेकिन आज के जमाने की तरह ना तो उस वक्त टेक्नोलॉजी थी और ना ही हाईटेक इंजिनियर थे. वो चाहते थे कि पंजाब से बातचीत करके सतलुज नदी से एक नहर निकालकर राजस्थान के के जैसेलमेर तक पहुंचाय जा सके.जिससे राजस्थान के पूरे इलाके में पानी की समस्या खत्म किया जा सके. 

बसने के लिए मुफ्त में जमीन दी थी महराजा गंगा सिंह ने
जब महाराजा गंगा सिंह ने पंजाब से बातचीत किया तो पंजाब पानी देने के लिए राजी हो गया. जिसके बाद सतलुज नदी से एक नहर निकालकर राजस्थान को पानी दिया गया. इनके शानदार प्रयास और जी-तोड़ कोशिशों को देखते हुए इस नहर का नाम गंग नहर रखा गया था. नहर तो आ गई थी लेकिन उस सूखी और रेतीली जमीन पर कोई खेती करने को राजी नहीं था. ऐसे में राजा गंगा सिंह ने लोगों को खेती करने के लिए खुद बुलाया. साथ ही लोगों को बसने के लिए जमीन भी मुफ्त में दी थी, ताकि बीकानेर की बंजर जमीन को हरा-भरा किया जा सके.

ये भी पढ़ें- राजस्थान में विधायकों को कितनी सैलरी मिलती है, वेतन भत्ते का पूरा गणित समझिए

रेगिस्तान की छाती चीड़कर निकाला गया पानी
जंग तो अब शुरू हुई थी, क्योंकि रेगिस्तान की छाती चीड़कर पानी निकालना कोई बच्चों को खेल नहीं था. उस वक्त लोगों को ये काम नामुमकिन लग रहा था. धूल भरी आंधी और रेत का वबंडर के सामने कोई टिक ही नहीं पा रहा था. एक से बढ़कर एक इंजिनियर आये लेकिन सबने हाथ खड़े कर दिए.

कंवर सिंह की टीम का हैरत अंगेज प्लान 
उस वक्त ना तो आधुनिक मशीनें थी और ना ही पर्याप्त संसाधन ही थे. लेकिन कंवर सिंह ने नहर के ड्राफ्ट तैयार करते समय यहां के वातावारण को भी ध्यान में रखा था, तभी तो उस से निपटने के लिए कंवर सिंह और उनकी टीम हैरत अंगेज प्लान बना रखा था.

रेगिस्तान के जहाज का गदहों ने निभाया साथ
कंवर सिंह जानते थे कि इस मौसम में कोई काम आ सकता है तो वो है रेगिस्तान का जहाज. जब नहर बनाने के लिए जमीन खोदने की बारी आई तो रेगिस्तान के जहाज कहे जाने वाले ऊंट को लगाया गया. ऊंटों ने जमीन खोदने का काम शुरु किया तो इनका साथ गदहों ने बखूबी निभाया.  

ऊंट और गदहों ने मिलकर युद्धस्तर पर काम करना शुरु कर दिया. रात-दिन काम पर लगा दिया गया. इन जानवरों ने मिट्टी की खुदाई और ढुलाई कर नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिया. ये जानवर नहीं होते ये नहर बन पाना नामुमकिन था. इस नहर को बनाने में कई जानवरों और इंजिनियर ने जान गंवा दी थी, लेकिन काम को रोका नहीं गया. 

बहुत सीमित संशाधनों में  इंजिनियर कंवर सेन ने ये नहर बनाया था
साल 1927 में गंगनहर बनकर तैयार हो गई थी. इस गंग नहर ने तो बीकानेर की फिजां बदल दी. इस रेतीले और बंजर जमीन को हरा भरा बना दिया. उस वक्त बहुत सीमित संशाधनों में  इंजिनियर कंवर सेन ने ये नहर बनाया था. महाराजा गंगा सिंह ने इंजीनियर कवंर सेन से कहा था कि एक दूसरी नहर बीकानेर से जैसलमेर तक की बनवाए. महाराज गंगा सिंह का सपना था कि राजस्थान के चप्पे-चप्पे में ये पानी पहुंचे, लेकिन पैसे की कमी के कारण उनका ये दूसरा प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया. कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए साल 1943 में 62 साल की आयु में वो दुनिया को अलविदा कह गए. 

उन्होंने राजस्थान की जनता को गंग नहर दी वो वरदान साबित हुआ. जब भारत आजाद हुआ तो राजशाही खत्म हो गई और लोकतंत्र आ गया लेकिन इस नहर ने कैसे बीकानेर को हरा भरा बनाया ये बात राजस्थान सरकार को भी पता थी इसलिए इस नहर के विस्तार का काम शुरू किया गया.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नहर का दौरा करने पहुंची थी
इसके बाद बाड़मेर,चुरू, नागौर जैसे 11 जिले पानी के लिए बुरी तरह से तरस रहे थे वहां पर पानी पहुंचाने का काम शुरू किया गया. साल 1983 में नहर के विस्तार का काम चल रहा था उसी वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस नहर का दौरा करने आई. दौरा करने का ईनाम इतना बड़ा दिया गया कि 1 साल बाद यानी साल 1984 में इस नहर का नाम इंदिरा गांधी नहर रख दिया. 

fallback

मजेदार बात यह है कि इस नहर को बनाने का सपना महाराज गंगा सिंह ने देखा था और इंजीनियर कंवर सेन ने कड़ी मेहनत से बनाया था. इस नहर का उद्घाटन सर्वपल्ली राघाकृष्णन द्वारा किया गया था और नाम इंदिरा गांधी नहर परियोजना रख दिया गया.

अपने जिले की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें  

 

Trending news