Lord Shanidev: शनिदेव की पूजा करने का सही समय क्या है. शनिदेव सुबह में कोई भी पूजा स्वीकार नहीं करते हैं. सुबह को पूजा करने से क्या फल मिलता है और शाम को क्या फल मिलता हैं. आइये जानते है.
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Lord Shanidev: शनि देव कर्मों के हिसाब से फल देते हैं और ये न्याय के देवता कहलाते हैं. शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है. इस दिन शनि देव की विधि- विधान से पूजा करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है. ऐसे में शनिदेव की पूजा किस समय फलदायी माना जाता है. शनिदेव की पूजा करने का सही समय क्या है. सुबह को पूजा करने से क्या फल मिलता है और शाम को पूजा करने से क्या फल मिलता हैं. आइये जानते है.
शनिदेव पश्चिम दिशा में विराजित है तो वहीं सूर्यदेव पूरब दिशा में विराजित हैं. दोनों एक दूसरे के अपोजिट हैं. सूर्यदेव की किरणें सूर्योदय के समय पूरब से निकलती है तो शनिदेव पश्चिम में विराजमान होने के कारण सूर्यदेव की किरणें इनकी शनिदेव की पीठ पर पड़ती है. ऐसे में शनिदेव कोई भी पूजा स्वीकार नहीं करते हैं. इस समय वो दृष्टि डालनी बंद कर देते है. जैसे ही सूर्यदेव संध्या में सूर्यास्त में पश्चिम दिशा में जाते है शनिदेव प्रकट हो जाते हैं. ऐसे में शनिदेव की पूजा सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद फलीभूत माना जाता है, और भक्तों पर प्रसन्न होते हैं. सूर्यास्त के बाद शनिदेव का पूजा का विधान है.
जहां शनि देव के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वहीं शनि के शुभ प्रभावों से व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है.
ऐसा माना जाता है कि शनि रंक को भी राजा बना सकते हैं. आइए जानते हैं शनि देव की पूजा में किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. शनिदेव और उनके पिता सूर्य के बीच प्रेम नहीं बल्कि शत्रुता है. बता दें कि शनिदेव भगवान सूर्य और माता संवर्णा के पुत्र हैं. माना जाता है कि शनिदेव और सूर्यदेव के बीच आपसी संबंध मधुर नहीं है.
स्कंदपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ, लेकिन सूर्य देव के तेज के कारण संज्ञा बहुत परेशान रहा करती थीं. सूर्य देव और संज्ञा की तीन संताने हुईं मनु , यमराज और यमुना. लेकिन तब भी संज्ञा सूर्य देव के तेज से घबराती थीं इसलिए सूर्य के तेज को सहन करने के लिए संज्ञा ने अपनी हमशक्ल सवर्णा को बनाया और अपने बच्चों की देखरेख का जिम्मा उसको देकर स्वयं अपने पिता के घर चली गईं. छाया रूप की होने के कारण सवर्णा पर सूर्य देव के तेज का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता था. सूर्य देव और सवर्णा की तीन संताने हुईं तपती, भद्रा और शनि.
पुराणों के अनुसार स्वर्णा भगवान शिव की बड़ी भक्त थीं जब शनि गर्भ में थे तब भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने कठोर तप शुरू किया. उनकी तपस्या इतनी कठोर थी की उन्हें खाने-पीने की भी सुध नहीं रही. भूख प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण तप का प्रभाव स्वर्णा के गर्भ पल रहे शनि पर भी पड़ा और जन्म के बाद शनि देव का रंग काला पड़ गया.
शनि देव के जन्म के बाद जब स्वर्णा शनि देव को लेकर सूर्य देव के पास गईं तो शनि देव के काले रंग को देखकर सूर्य देव ने स्वर्णा पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया की यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता. मां के कठोर तप की शक्ति शनि देव में भी आ गई थी और मां का अपमान देखकर शनि देव को क्रोध आ गया.
उस समय शनि की क्रोधित नजर पड़ी, तो सूर्य देव भी काले हो गए. उस समय सूर्य देव शापित चेहरा लेकर शिवजी के पास पहुंचें. जहां शिवजी ने उन्हें स्थिति से अवगत कराया. तब सूर्य देव को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने संवर्णा से माफी मांगी. लेकिन इस घटना के बाद से शनिदेव और पिता सूर्य के संबंध खराब हो गए. आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव की आंखों में नहीं देखना चाहिए. शनि देव की पूजा करते समय हमेशा अपनी नजरें नीचे रखें. शनि देव से नजरें मिलाने से आप पर शनि देव की बुरी नजर पड़ सकती है.
सर्वप्रथम सुबह स्नान कर निवृत्त हो जाएं. इस दिन हो सके तो स्वच्छ काले रंग का वस्त्र धारण करें. पूरे दिन उपवास करें और शाम को शनिदेव मंदिर जाकर पूजा करें. सरसों के तेल का दीपक शनिवार को शाम के वक्त बरगद और पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं, फिर दूध और धूप चढ़ाएं.
ओम शनैश्चराय विदमहे सूर्यापुत्राय धीमहि।। तन्नो मंद: प्रचोदयात।।
अगर घर पर पूजा कर रहे हो तो शनि यंत्र स्थापित करें शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन शनि यंत्र की स्थापना कर उसका विधिपूर्वक पूजन करें. इसके बाद हर दिन शनि यंत्र की विधि-विधान से पूजन करें और सरसों के तेल से दीपक जलाएं. तथा नीला या काला फूल चढ़ाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से शनिदेव खुश होते हैं.