धौलपुर: घड़ियाल के अंडों से निकले नन्हे मेहमान, चंबल नदी हुई गुलजार
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धौलपुर: घड़ियाल के अंडों से निकले नन्हे मेहमान, चंबल नदी हुई गुलजार

धौलपुर न्यूज: चंबल नदी के पास घड़ियाल और मगरमच्छ के अंडों से बच्चे निकल गए हैं. इस वजह से घड़ियाल और मगरमच्छ एलो पेरेंटिंग करते हुए नजर आ रहे हैं.

धौलपुर: घड़ियाल के अंडों से निकले नन्हे मेहमान, चंबल नदी हुई गुलजार

Dholpur: मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैली चंबल नदी घड़ियाल और मगरमच्छ के अंडों से निकले नन्हे मेहमानों से गुलजार हो गई है. एक ओर जहां मादा घड़ियाल अपने बच्चों की देखभाल में जुटी हैं वहीं, नर घड़ियाल उन्हें पीठ पर बैठाकर चंबल की सैर करा रहे हैं. मगरमच्छ भी अपने बच्चों की निगरानी में जुटे हैं.

घड़ियाल का नाम आते ही दिलों में दहशत सी फैल जाती है. नदी में राज करने वाले घड़ियालों के बारे में अगर कहा जाए कि नर घड़ियाल अपने बच्चों के अलावा अन्य नरों के बच्चों को भी अपनी पीठ पर बैठाकर तैरते हैं, उनकी देखभाल करते हैं तो हैरान मत होइएगा. घड़ियाल भी एलो पेरेंटिंग करते हैं. इस तरह की परवरिश कई जानवर करते हैं, जिनमें एक घड़ियाल भी हैं जैविक रूप से माता-पिता न होने पर भी बच्चों की परवरिश करना एलो पेरेंटिंग कहलाता है.

एलो पेरेंटिंग कर रहे मगरमच्छ

हर घड़ियाल की पांच किलोमीटर की टेरेटरी (क्षेत्र) होती है. उस टेरेटरी में रहने वाली हर मादा से उसकी मैटिंग होती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर मादा उस क्षेत्र में अंडे दे. मादा अंडे वहां देती है, जहां बालू होती है . हैचिंग पीरियड के बाद मादा के साथ नर भी बच्चों को संभालते हैं. कई नर ऐसे होते हैं जो एलो पेरेटिंग करते हैं. यानी आनुवांशिक रूप से वो जिन बच्चों के पिता नहीं होते, उनकी देखभाल भी करते हैं. इन दिनों चंबल में ऐसे कई नर घड़ियाल हैं, जो अपनी पीठ पर बच्चों को घुमाते देखे जा सकते हैं.

डीएफओ अनिल यादव ने बताया घड़ियाल और मगरमच्छों ने चंबल किनारे रेत में अप्रैल माह में घोंसले बनाए थे. जो जून माह में पूरी हो गई है. घड़ियाल व मगरमच्छ के प्रत्येक घौंसले से 35 से 40 बच्चे निकलते हैं. प्रत्येक घौंसले में तीन से पांच अंडे खराब भी हो जाते हैं. 429 घड़ियाल व मगरमच्छ के घौंसले बनाए थे. जिनमें से 12532 बच्चे सुरक्षित बाहर निकले हैं, जबकि 2070 अंडे खराब हो चुके हैं.

हर वर्ष चंबल में पैदा होने वाले 95 प्रतिशत घड़ियाल व मगरमच्छ के बच्चे जान गंवा देते हैं. दअसल, जून माह में बच्चे अंडे से बाहर आते हैं और जुलाई व अगस्त माह में नदी में बाढ़ आने के कारण अधिकतर बच्चे छोटे होने से बह जाते हैं. यही नहीं ये बच्चे घड़ियाल-मगरमच्छ या दूसरे जानवरों का शिकार भी बन जाते हैं.

बच्चों के सामने जीवित रहने की मशक्कत

धौलपुर जिले के गांव अंडवा पुरैनी और गांव समोना के आस-पास इनकी नेस्टिंग हुई है अब बच्चों के सामने जीवित रहने की मशक्कत है. मादा अंडे वहां देती है, जहां रेता (बजरी) होता है. कई मादाएं एक साथ मिल कर बच्चों की परवरिश करती हैं. वहीं, इन दिनों चंबल में ऐसे कई नर घड़ियाल हैं, जो अपनी पीठ पर बच्चों को घुमाते देखे जा सकते हैं

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