Manipur Violence Live Updates: मणिपुर में दो महिलाओं के साथ हुई वीभत्स वारदात की वीडियो आने के बाद विपक्षी पार्टियों ने भाजपा शासित राज्य मणिपुर में हो रही हिंसा पर केंद्र सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. 20 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र में भी विपक्ष ने संसद में मणिपुर हिंसा पर जमकर बवाल किया है.
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Manipur Viral Video: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi On Manipur Violence) ने मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई वीभत्स वारदात को देश की 140 करोड़ जनता के लिए शर्मनाक बताया है. उन्होंने कहा है कि वे इस घटना से पीड़ा और क्रोध से भरे हुए हैं और मणिपुर की घटना किसी भी सभ्य समाज के लिए बेहद शर्मनाक है. संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले संसद भवन में पत्रकारों से बात करते हुए PM Modi ने कहा कि यह घटना 140 करोड़ देशवासियों के लिए शर्मनाक है और दोषियों को कतई बख्शा नहीं जाएगा.
क्या है पूरा मामला?
मणिपुर में हिंसक भीड़ द्वारा दो युवतियों को सड़क पर नग्न घुमाए जाने का भयावह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वीडियो वायरल होने के बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही है. इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने दावा किया कि 4 मई को दोनों महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाने के बाद धान के खेत में उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया. इस वीडियो के सामने आने के बाद विपक्षी पार्टियों ने भाजपा शासित राज्य मणिपुर में हो रही हिंसा पर केंद्र सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. 20 जुलाई से शुरू हुए मानसून सत्र में भी विपक्ष ने संसद में मणिपुर हिंसा पर जमकर बवाल किया.
यहां भी डाल लें एक नजर
मणिपुर हिंसा की आग अब धीरे-धीरे पूरे देश का तापमान बढ़ाने लगी है. कोई इसे राज्य सरकार की नाकामी बता रहा है, तो कोई सीधा केंद्र पर हमला कर रहा है. मणिपुर में एक जातीय विवाद ने कैसे इतना भयानक रूप ले लिया, यहां यही समझने की कोशिश करेंगे. आपको बता दें कि पिछले करीब 83 दिनों से मणिपुर में आगजनी, लूटपाट, दंगा और हिंसा का माहौल बना हुआ है. इस दंगे को समझने के लिए हमें मणिपुर की भगौलिक स्थिति समझनी होगी. मणिपुर की राजधानी इंफाल में पूरे प्रदेश की करीब 57 फीसदी आबादी रहती है, जबकि इंफाल पूरे प्रदेश का मात्र 10 फीसदी हिस्सा ही कवर करता है. इंफाल के चारों तरफ 90 फीसदी केवल पहाड़ हैं. मणिपुर के कुल आबादी की बात करें तो इनमें 53 फीसदी आबादी मैतेई समुदाय है. वहीं राज्य के 60 विधायकों में से 40 मैतेई समुदाय से आते हैं.
नगा-कुकी बनाम मतेई समुदाय
राज्य में कुल 3 मान्यता प्राप्त जनजातियां हैं, जिनमें नगा और कुकी प्रमुख हैं. जहां मतेई मुख्यत हिंदू धर्म को मानते हैं, वहीं नगा और कुकी जनजातियां ईसाई हैं. करीब 8-8 फीसदी आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है. भारतीय संविधान का आर्टिकल 371C मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को कुछ विशेष सुविधाएं देता है. 'लैंड रिफॉर्म एक्ट' की वजह से पहाड़ की जमीनों पर सिर्फ जनजातियों का हक है, वहीं मैतेई पहाड़ों की जमीन नहीं खरीद सकते हैं. इसके अलग जनजातिय समुदाय के लोग इंफाल घाटी में आकर बस सकते हैं. यहीं से यह विवाद जन्म लेता है.
चुराचंदपुर से भड़की आग
28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में एक रैली का आयोजन किया है. गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में हुई इस रैली ने हिंसक रूप ले लिया था. इसी रात कुछ उपद्रवियों ने तुइबोंग एरिया में मौजूद वन विभाग के ऑफिस में आग लगा दी थी, लेकिन इस दौरान पुलिस और कुकी आदिवासी ही आमने-सामने थे. इस घटना के 5 दिन बाद यानी 3 मई को 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला गया. ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर के बैनर तले निकलने वाले इस मार्च का मुख्य उद्देश्य मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने का विरोध करना था. इस मार्च के खिलाफ मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए जिसके बाद हालात और बिगड़ गए.
मणिपुर सरकार द्वारा उन जनजातियों पर कार्रवाई भी की गई, जो पहाड़ों पर जमीन कब्जा कर अफीम की खेती किया करते थे. राज्य सरकार के इस काम ने आग में घी का काम किया है, और हथियारबंद जनजाति समुदाय और ज्यादा भड़क गए. इसका असर ये हुआ कि इस हिंसा में मैतेई समुदाय के अलावा पुलिस पर भी कई हमले हुए हैं. मैतेई समुदाय के आरक्षण के विरोध में खड़ी हुई रैली अब और भयानक रूप ले चुकी है.
3 और 4 मई की 'काली रात'
देखते ही देखते एक विरोध प्रदर्शन के लिए निकली रैली ने हिंसात्मक रवैया अपना लिया और पूरे मणिपुर प्रदेश को अपनी आगोश में ले लिया. 4 मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली का आयोजन होने वाला था लेकिन हालात को देखते हुए रैली को स्थगित कर दिया गया. मणिपुर में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता देने के विरोध में जनजातीय संगठन द्वारा 3 मई को जिस रैली का आयोजन किया गया, उस रैली के बाद लगभग पूरे मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 150 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 600 से अधिक लोग घायल हुए हैं. मणिपुर में जातीय संघर्ष के मद्देनजर विभिन्न समुदायों के लगभग 50,650 पुरुष, महिलाएं और बच्चे विस्थापित हो गए हैं और अब स्कूलों, सरकारी भवनों और सभागारों में स्थापित 350 शिविरों में शरण लिए हुए हैं.
(इनपुट: एजेंसी)