MP Assembly Election 2023: बुंदेलखंड की नरयावली विधानसभा सीट पर 20 साल से भाजपा का कब्जा है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा के प्रदीप लहारिया जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं. 2003 में सरकार विरोधी लहर में नरयावली सीट भाजपा के खाते में चली गई थी.
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Seat Analysis: बुंदेलखंड की नरयावली विधानसभा सीट पर 20 साल से भाजपा का कब्जा है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा के प्रदीप लहारिया जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं. 2003 में सरकार विरोधी लहर में नरयावली सीट भाजपा के खाते में चली गई थी. तब से लगातार यहां भाजपा की जीत होती जा रही है. हालांकि, इस बार यहां चुनाव बेहद दिलचस्प हो सकता है, क्योंकि यहां भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए प्रदीप लहारिया के चचेरे भाई हेमंत लहारिया टिकट की मांग कर रहे हैं. अगर पार्टी उन्हें उम्मीदवार घोषित करती है तो चुनाव दिलचस्प हो सकता है.
नरयावली सीट पर आखिरी चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2018 में यहां 67 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इसमें प्रदीप लहारिया की 8900 वोटों से जीत हुई थी. लहारिया को 74360 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र चौधरी 65460 वोट मिले. जीत का मार्जिन 6.11% था. बहरहाल आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना प्रत्याशी तय नहीं किया है, लेकिन संवत: पार्टी 3 बार के विजेता लहारिया पर ही दांव लगा सकती है. दूसरी ओर यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस बार किसे उम्मीदवार बनाती है.
वोटर्स के आंकड़े और जातिगत समीकरण
2018 के आंकड़ों के मुताबिक, नरयावली सीट पर कुल 2.20 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं. इसमें 1 लाख से ज्यादा महिलाएं और 1.19 लाख से ज्यादा पुरुष मतदाता हैं. जातिगत समीकरणों की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग के वोटर्स का अच्छा खास प्रभाव है. यहां करीब 70 हजार से ज्यादा वोटर अजा वर्ग के हैं. इसके अलावा 50 हजार पिछड़ा वर्ग और 40 हजार से ज्यादा सवर्ण वर्ग भी निर्णायक स्थिति में हैं.
सीट का सियासी इतिहास
साल 1977 से अस्तित्व में आई यह सीट शुरुआत में कांग्रेस का गढ़ रही. 1977 से लेकर 1990 तक यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की . 1990 में पहली बार यहां भाजपा आई और नारायण प्रसाद ने जीत दर्ज की, हालांकि, 1993 में यह सीट एक फिर कांग्रेस के पाले में चली गई और कांग्रेस के प्यारेलाल चौधरी ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1998 में भी कांग्रेस के सुरेंद्र चौधरी जीते. हालांकि, 2003 में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकलकर भाजपा के पाले में चली गई.