Lumpy Skin Disease: संक्रमित क्षेत्र के केंद्र बिंदु से 10 किलोमीटर की परिधि के क्षेत्र में पशुओं की बिक्री पर बैन होना चाहिए. संक्रमित पशु और उसके आसपास, घर आदि जगहों पर साफ-सफाई, जीवाणु और विषाणुनाशक रसायन जैसे 20 पर्सेंट ईथर, फार्मेलीन 1 प्रतिशत, फिनाइल 29 प्रतिशत, सोडियम हाइपोक्लोराइड 3 प्रतिशत, आयोडीन कंपाउंड, अमोनियम कंपाउड आदि का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
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आकाश द्विवेदी/भोपालः मध्य प्रदेश में लंपी वायरस का अलर्ट जारी किया गया है. दरअसल मध्य प्रदेश में कुछ जगहों पर लंपी वायरस की पुष्टि हुई है. जिसके बाद राज्य सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग ने लंपी वायरल को लेकर गाइडलाइन जारी की है. सरकार ने रोग की पहचान और नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश बताए हैं. साथ ही रोग की पुष्टि के लिए सैंपल लेकर राज्य पशु रोग अन्वेषण प्रयोगशाला, भोपाल भेजने के निर्देश दिए गए हैं.
क्या है लंपी वायरस की बीमारी
गाइडलाइन में बताया गया है कि लंपी स्किन डिजीज पशुओं की एक वायरल बीमारी है. यह पॉक्स वायरस से फैलती है और मच्छर-मक्खी के काटने आदि से यह एक पशु से दूसरे पशुओं में फैलती है.
लक्षण
इस रोग की शुरुआत में दो से तीन दिन हल्का बुखार रहता है. उसके बाद पूरे शरीर की चमड़ी पर 2-3 सेमी की गांठे निकल आती हैं. यह गांठें गोल उभरी हुई होती हैं और चमड़ी से मसल्स तक जाती हैं. बाद में यह गांठें मुंह, गले और सांस नली तक फैल जाती हैं. साथ ही लिंफ नोड में सूजन, पैरों में सूजन, दुग्ध उत्पादकता में कमी, गर्भपात, बांझपन और कभी कभी मौत भी जाती है. हालांकि अधिकतर पशु 2-3 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं लेकिन दुग्ध उत्पादकता में कमी कई सप्ताह तक बनी रहती है. मृत्यु दर 15 प्रतिशत है और संक्रामकता दर 10-20 प्रतिशत रहती है.
उपचार के लिए इन बातों का रखें ध्यान
लंपी वायरस से संक्रमित पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखना चाहिए. पशु चिकित्सक के निर्देश अनुसार पशु का उपचार किया जाना चाहिए. सेकेंडरी बैक्टीरियल इंफेक्शन रोकने के लिए पशु को 5-7 दिनों तक घावों पर एंटीबायोटिक लगाना चाहिए. साथ ही एंटी इंफ्लामेटरी और एंटी हिस्टामिनिक लगाना चाहिए.
बुखार होने पर पैरासिटामॉल खिलाना चाहिए. घाव पर एंटीसेप्टिक Fly repellant ointment लगाना चाहिए. पशु को मल्टीविटामिन खिलाना चाहिए. संक्रमित पशु को पर्याप्त मात्रा में तरल खाना देना चाहिए और बीमार होने पर हल्का खाना और हरा चारा देना चाहिए.
बचाव के उपाय
संक्रमित पशु को स्वस्थ पशु से तत्काल अलग करना चाहिए. संक्रमित पशु को स्वस्थ पशुओं के झुंड से दूर रखना चाहिए. संक्रमित क्षेत्र में बीमारी फैलाने वाले कीट पतंगों, मक्खी मच्छरों की रोकथाम के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए. संक्रमित क्षेत्र से अन्य क्षेत्र में पशुओं के आवागमन पर रोक लगनी चाहिए. संक्रमित क्षेत्र में बाजार में पशुओं की बिक्री, प्रदर्शनी, पशु संबंधित खेलों पर भी रोक लगाई जानी चाहिए. संक्रमित पशु से सैंपल लेते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए और पीपीई किट आदि का पालन किया जाना चाहिए.
संक्रमित क्षेत्र के केंद्र बिंदु से 10 किलोमीटर की परिधि के क्षेत्र में पशुओं की बिक्री पर बैन होना चाहिए. संक्रमित पशु और उसके आसपास, घर आदि जगहों पर साफ-सफाई, जीवाणु और विषाणुनाशक रसायन जैसे 20 पर्सेंट ईथर, फार्मेलीन 1 प्रतिशत, फिनाइल 29 प्रतिशत, सोडियम हाइपोक्लोराइड 3 प्रतिशत, आयोडीन कंपाउंड, अमोनियम कंपाउड आदि से साफ-सफाई की जानी चाहिए. संक्रमित पशु से सीमेन संग्रहण का काम नहीं किया जाना चाहिए. संक्रमित पशु के ठीक होने के बाद उसके सीमन और ब्लड की पीसीआर जांच की जानी चाहिए. जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही सीमेन का इस्तेमाल किया जा सकता है.