बस्तर का 'टार्जन' जो बाघों के साथ रहा, जिंदगी पर फिल्म भी बनी लेकिन शोहरत ने ही ले ली जान!
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बस्तर का 'टार्जन' जो बाघों के साथ रहा, जिंदगी पर फिल्म भी बनी लेकिन शोहरत ने ही ले ली जान!

हॉलीवुड फिल्म जंगल बुक के मोगली की कहानी तो आपने देखी ही होगी, लेकिन क्या आपने रियल मोगली की कहानी को देखा है? दरअसल ये कहानी उस आदिवासी बच्चे चेंदरू की है जो छत्तीसगढ़ का रहने वाला था. उसकी बाघ से ऐसी दोस्ती थी कि वो दिनभर उसके साथ खेलता था, सोता था.

बस्तर का 'टार्जन' जो बाघों के साथ रहा, जिंदगी पर फिल्म भी बनी लेकिन शोहरत ने ही ले ली जान!

नई दिल्ली: हॉलीवुड फिल्म जंगल बुक के मोगली की कहानी तो आपने देखी ही होगी, लेकिन क्या आपने रियल मोगली की कहानी को देखा है? दरअसल ये कहानी उस आदिवासी बच्चे चेंदरू की है जो छत्तीसगढ़ का रहने वाला था. उसकी बाघ से ऐसी दोस्ती थी कि वो दिनभर उसके साथ खेलता था, सोता था. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बच्चे पर स्वीडिश डायरेक्टर ने फिल्म भी बनाई जिसने इस बच्चे को विश्वप्रसिद्ध कर दिया. 

दादा ने दिया नायाब तोहफा
आपको बता दें कि चेंदरू मंडावी ने 18 सितम्बर 2013 लम्बी बीमारी से जूझते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया था. कल उनकी पुण्यतिथि थी. चेंदरू नारायणपुर के गढ़ बेंगाल का रहने वाला था. मुरिया जनजाति का यह लड़का बड़ा ही बहादुर था. बचपन में चेंदरू को उनेक दादा ने जंगल से बाघ के शावक को लाकर दे दिया था. चेंदरू ने उसका नाम टेंबू रखा था. इन दोनों की बाद में दोस्ती ऐसे हुई, जो मिसाल साबित हुई.

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स्वीडिश डायरेक्टर ने बनाई फिल्म
मीडिया रिपोर्ट की माने तो शेर और बच्चे की अनोखी दोस्ती की चर्चे ईसाई मिशनरियों के जरिए स्वीडन के ऑस्कर विनर फिल्म डायरेक्टर आर्ने सक्सडॉर्फ तक पहुंची, उन्होंने इस पर फिल्म बनाने की सोची और वो फिल्म बनाने के मकसद से बस्तर आ पहुंचे. यहां उन्होंने चेंदरू को ही हीरो का रोल दिया और बस्तर में रहकर ही 2 साल शूटिंग कर डाली. फिल्म का नाम था एन द जंगल सागा जो 1957 में रिलीज हुई. जिसे इंग्लिश में दि फ्लूट एंड दि एरो के नाम से जाना गया.

पीएम नेहरू से भी हुई मुलाकात
फिल्म रिलीज होने के बाद चेंदरू को भी स्वीडन और बाकी देशों में ले जाया गया. उस दौरान वह महीनों विदेश में रहा. चेंदूरू टाइगर ब्यॉय के नाम से फेमस होने लगा. इसी बीच उनकी तत्कालीन पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी मुलाकात हुई. तब चेंदरू को पीएम नेहरू ने पढ़ने-लिखने पर नौकरी का आश्वासन दिया था, पर लौटकर जब वो बस्तर आया तो वह पढ़ नहीं सका. फिर गुमनामी में ही जीने लगा. 

लंबी बीमारी से लड़ते हुए निधन
अपने गांव लौटने के बाद चेंदरू चकाचौंध ग्लैमर में जीने का आदी हो चुका चेंदरू गांव में गुमसुम सा रहता था. एक समय ऐसा आया कि गुमनामी के वो बाहर की दुनिया से पूरा अलग हो गया. फिर एक दिन आया कि 18 सितम्बर  2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो टाइगर बॉय की मौत हो गयी.

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