रतलाम: नवजात बच्चों की मौत का सिलसिला जारी, 40 दिन में 61 नवजातों की मौत
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रतलाम: नवजात बच्चों की मौत का सिलसिला जारी, 40 दिन में 61 नवजातों की मौत

मध्यप्रदेश में भी सरकारी अस्पताल में व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं, मध्यप्रदेश के रतलाम जिला अस्पताल में भी नवजात की मौत के आंकड़े सामान्य से लगभग ऊपर जा रहे हैं.

रतलाम के एसएनसीयू में पिछले 40 दिन में 61 नवजात की मौत

रतलाम: देश के अलग अलग राज्यों से  जिला अस्पतालों में नवजात बच्चों की मौत के बड़े आंकड़े सामने आए हैं, जिन्होंने शासकीय अस्पताल में अव्यवस्थाओं की पोल खोल दी है. अब मध्यप्रदेश में भी सरकारी अस्पताल में व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं, मध्यप्रदेश के रतलाम जिला अस्पताल में भी नवजात की मौत के आंकड़े सामान्य से लगभग ऊपर जा रहे हैं. जिला अस्पताल के सिविल सर्जन ने नवजात मौत के सामान्य से ज्यादा की मौत के आंकड़ों को स्वीकारा है लेकिन यह भी जानकारी दी कि जिला अस्पताल में ज्यादातर डिलीवरी के बिगड़े केस निजी अस्पतालों से और आसपास जिलों के सीमावर्ती इलाकों से आते हैं, जिसके कारण यह संख्या बढ़ी है.

कोटा के बाद अब रतलाम में नवजात शिशुओं की मोत के बढ़ते आंकड़े सामने आये हैं, रतलाम के एसएनसीयू में पिछले 40 दिन में 61 नवजात की मौत की खंबर ने एक बार फिर अस्पताल की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े किए हैं, जिसमे ज्यादातर नवजात की मौत सांस लेने में परेशानी के कारण सामने आई है, वहीं इन बच्चों में ज्यादातर कम वजन के बच्चे भी शामिल हैं. 

सरकार के दावे, हकीकत से दूर
सरकार लाख दावे स्वास्थ सेवाओं को बढ़ाने के लिए कर रही है लेकिन इन दावों की हकीकत कुछ और ही सामने आ रही है. शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिये करोड़ो रूपये खर्च किये जाते हैं, लेकिन रतलाम में जिला चिकित्सालय के एसएनसीयू में नवजात की मौत का आंकड़ा भी चिंता से दूर नही है. रतलाम में बीते 40 दिन में 61 नवजात ने दम तोड़ दिया है. वहीं इस नवजात मृत्यु के आंकड़े को जिला अस्पताल सिविल सर्जन भी स्वीकार रहे हैं, लेकिन सिविल सर्जन का यह भी कहना है कि जिला अस्पताल में आने वाले डिलीवरी केस में ज्यादातर मामले निजी अस्पतालों से और आसपास के जिलों के सीमावर्ती इलाकों से भी आ रहे हैं, इनमे ज्यादातर डीलीवरी केस बिगड़ने के बाद जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं, जिला अस्पताल में व्यवस्थाओं को पुख्ता बताया है. 

नवजात शिशुओं की मौत के प्रमुख कारण
Birth asphyxia (बर्थ एसफिक्सिया) या जन्म श्वास रोधक एक ऐसी दशा है जिसमें नवजात पैदा होने के बाद न तो रोता है और न ही सांस ले पाता है. यह बच्चे के मस्तिष्क में आक्सीजन की कमी के कारण होता है, आक्सीजन की कमी होना मुख्यतः बच्चे के मुंह में गंदा पानी चले जाने, कम वजन का होने, समय से पूर्व पैदा होने, या जन्मजात दोष होने की वजह से हो सकती है. इस दौरान यदि नवजात को तुरंत उचित देखभाल नहीं मिलती है, तो उसकी जान जाने का भी खतरा हो सकता है. यह कारण बच्चे के डिलीवरी में देरी से होता है कभी-कभी डिलीवरी के लिए अस्पताल पहुंचने में देरी के कारण भी यह स्थिति निर्मित होती है.

नवजात की मौत का दूसरा कारण  Neonatal sepsis (नियोनेटल सेप्सिस) भी है. जिसमे गर्भ के समय इन्फेक्शन होता है, बच्चा कमजोर हो जाता है और इंफेक्शन के कारण बच्चे की मौत हो जाती है. 

वही तीसरा कारण जन्मजात जटिलता को बताते है लेकिन यह सबसे कम प्रतिशत नवजात की मौत का कारण होता है. 

जिला अस्पताल में नवजात शिशु मृत्युदर 
सूत्रों से मिले आंकड़े बताते हैं कि रतलाम के एसएनसीयू में 1 दिसंबर से 6 जनवरी तक 338 नवजात को भर्ती किया गया, इनमें से 15 प्रतिशत यानी 53 नवजात की मौत हो गई है. इस दौरान 23 बच्चों को जान बचाने के लिए इंदौर रेफर कर दिया गया, वहीं दिसंबर में 50 बच्चों की मौत एसएनसीयू में हुई है. इसके अलावा अप्रैल से अब तक 463 बच्चों ने दम तोड़ा. फिलहाल इन आंकड़ों की पुष्टि किसी ने की नही है.

जिला अस्पताल प्रभारी ने भी माना व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता 
सिविल सर्जन के अनुसार अगर किसी माह में कुल भर्ती नवजातों की 12 से 15 प्रतिशत तक मृत्यु होती है, तो सरकार की गाइड लाइन के अनुसार यह सामान्य है, लेकिन रतलाम में यह आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है. मामला संज्ञान में आया है हम इसकी जाँच करवा कर व्यवस्था में सुधार के लिए मीटिंग कर रहे हैं और जल्द ही नावजात की मौत की संख्या को कम करने की कवायद की जा रही है. 

अंदर की बात 
जिला अस्पताल में डॉक्टर्स की कमी हमेशा से रही है लगातार डॉक्टर्स की कमी को पूरा करने की कवायद विफल हो रही है. वहीं शासकीय अस्पताल में लगातार डॉक्टर्स पर हो रहे हमले विवाद की स्थिति ने डॉक्टर्स की रुचि जिला अस्पतालों में कम कर दी है, जिसके कारण भी जिला अस्पताल में डॉक्टर्स सेवाएं देने से कतराते हैं. 

रतलाम जिले का एक बड़ा इलाका रावटी सैलाना बाजना आदिवासी बाहुल्य छेत्र है, इन इलाकों में मजदूरी वर्ग ज्यादा है, वहीं शिक्षा के अभाव में यहां स्वास्थ जागरूकता की भी कमी है और इसके कारण भी इन इलाकों के ज्यादातर डिलेवरी केस बिगड़ जाते हैं जिसके कारण भी नवजात शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा बढ़ जाता है. 

 

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