MP Chunav: कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में ऐसा क्या किया? कांग्रेस के 'राम भक्त' को क्यों नहीं हरा पा रही बीजेपी
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MP Chunav: कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में ऐसा क्या किया? कांग्रेस के 'राम भक्त' को क्यों नहीं हरा पा रही बीजेपी

Chhindwara: कमलनाथ की राजनीति की एक सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने छिंदवाड़ा से बेइंतिहा मोहब्बत की है. उन्होंने छिंदवाड़ा को वह सब दिया जो कोई भी नेता अपने गृह जिले या अपनी सीट को देना चाहता है. साल 1980 से कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से जीतते आए हैं.

MP Chunav: कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में ऐसा क्या किया? कांग्रेस के 'राम भक्त' को क्यों नहीं हरा पा रही बीजेपी

Kamalnath Politics: तारीख- 13 दिसंबर 1980. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक चुनावी मंच सजा हुआ था. माइक पर इंदिरा गांधी बोल रहीं थीं. इंदिरा गांधी के नाम के आगे तब तक 'प्रधानमंत्री' हट चुका था. मंच पर एक युवा नेता की तरफ इशारा करते हुए इंदिरा गांधी ने रैली में आए लोगों से कहा कि ये कांग्रेस नेता तो हैं ही साथ ही राजीव और संजय के बाद मेरे तीसरे बेटे भी हैं. उस युवा नेता का नाम था कमलनाथ. यह भारतीय राजनीति का वह दौर था जब देश आपातकाल झेल चुका था और जनता पार्टी की सरकार सत्ता में थी. कांग्रेस के समर्थक कहते हैं कि उस दौर में गांधी परिवार काफी संघर्ष के दौर में था. संजय..राजीव खुद इंदिरा सिस्टम के निशाने पर थे. ऐसे में कमलनाथ कुछ उन लोगों में थे जिन्होंने संजय गांधी को ऐसे घेर रखा था जैसे किसी ने संजय गांधी के इर्द-गिर्द लक्ष्मण रेखा खींच दी हो. यहां तक कि 1979 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान संजय गांधी को एक मामले में कोर्ट ने तिहाड़ जेल भेज दिया तो कमलनाथ ने जानबूझकर जज से लड़ाई कर ली ताकि वे भी संजय के साथ जेल में रह सकें.

संजय गांधी से रही करीबी
तब का दिन और अब आज का दिन है जबकि कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में वापसी करने के लिए तड़प रही है, कमलनाथ गांधी परिवार के करीबी विश्वासपात्र बने रहे. कमलनाथ तब दून कॉलेज में पढ़ते थे जब उनकी दोस्ती संजय गांधी से हुई थी. संजय गांधी उन्हें राजनीति में लेकर आए. दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में उनकी दोस्ती खूब जमी. कभी वे गांधी परिवार की कार चलाते दिखते तो कहीं किसी सभा में संजय गांधी के साथ दिखते. आपातकाल के दौर में वे गांधी परिवार के साये के रूप में बने रहे. यहां तक कि नारे भी लगे, 'इंदिरा के दो हाथ, संजय गांधी और कमलनाथ'.

छिंदवाड़ा से बेइंतिहा मोहब्बत की
हालांकि कमलनाथ की राजनीति पर नजर रखने वाले कुछ एक्सपर्ट्स अब मानने लगे हैं कि कमलनाथ कांग्रेस के लिए मजबूरी बन गए हैं. लेकिन कमलनाथ की राजनीति की एक सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने छिंदवाड़ा से बेइंतिहा मोहब्बत की है. उन्होंने छिंदवाड़ा को वह सब दिया जो कोई भी नेता अपने गृह जिले या अपनी सीट को देना चाहता है. साल 1980 से कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से जीतते आए हैं. केवल 1993 में उन्हें उप-चुनाव में सुंदरलाल पटवा ने हराया था. उप चुनाव भी इसलिए हुआ क्योंकि हवाला स्कैम में नाम आने के बाद उन्होंने उस लोकसभा चुनाव में अपनी पत्नी को लड़ाया था लेकिन क्लीन चिट मिलने के बाद जब फिर लड़े तो पटवा ने हराया था. लेकिन अगले ही चुनाव में वे फिर जीत गए.

मजबूत गढ़ कैसे बना लिया​
ये कमलनाथ ही हैं जिनकी वजह से छिंदवाड़ा में कांग्रेस का दबदबा बरकरार है. जिले की सभी सात विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं. इसके अलावा, छिंदवाड़ा से कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ सांसद हैं. इस कारण छिंदवाड़ा को कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ माना जाता है, जिसे जीतना किसी अन्य दल के लिए आसान नहीं है.

कैसे बना 'छिंदवाड़ा मॉडल'
कभी छिंदवाड़ा बहुत ही पिछड़ा इलाका हुआ करता था. लोगों को ब्रेड खरीदने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती थी. लेकिन पिछले चार दशकों में छिंदवाड़ा का कायाकल्प हुआ है. अब यहां बड़े-बड़े ब्रांड्स के शोरूम खुल गए हैं. छिंदवाड़ा अब एक अलग पहचान वाला जिला बन गया है. कमलनाथ ने हर क्षेत्र में विकास के लिए प्रयास किया है, चाहे सड़कें हों या सिंचाई. उन्होंने छिंदवाड़ा को एक मिशन के रूप में विकसित करने का प्रयास किया है. छिंदवाड़ा में कौशल विकास के लिए कई केंद्र बनाए गए हैं. पूरे देश में किसी भी जिले में इतने सारे कौशल विकास केंद्र नहीं हैं. ये केंद्र कमलनाथ ने 15 साल पहले बनाए थे.

छिंदवाड़ा में किसी से कोई भेदभाव नहीं
इतना ही नहीं छिंदवाड़ा के सिमरिया में कमलनाथ ने एक बड़ा हनुमान मंदिर भी बनवाया हुआ है. शिकारपुर में अपने आवास के पास भी उन्होंने एक भव्य हनुमान मंदिर बनाया है. एक इंटरव्यू में खुद कमलनाथ बताते हैं कि छिंदवाड़ा में वे राजनीति से ऊपर उठकर लोगों की मदद करते हैं. वे किसी भी राजनीतिक दल के समर्थक से भेदभाव नहीं करते. वे कहते हैं मेरे पास कोई भी आ सकता है. अगर कोई परेशान है तो मैं उसकी मदद करने की पूरी कोशिश करता हूं. मुझे नहीं देखना पड़ता कि वह किस पार्टी का है.

छिंदवाड़ा के लोगों के लिए हमेशा हाजिर
छिंदवाड़ा के स्थानीय पत्रकार कहते हैं कि कमलनाथ उन नेताओं में से हैं जो अपने क्षेत्र की ज़रूरतों को समझते हैं और उसे पूरा करने के लिए लगातार प्रयास करते हैं. वे लोगों की समस्याओं को सुनते हैं और उनका समाधान करते हैं. वे हमेशा छिंदवाड़ा के लोगों के बीच रहते हैं और उनकी मदद करते हैं. उन्होंने मंत्री रहते हुए छिंदवाड़ा का खूब विकास किया है. उन्होंने 1991 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में पर्यावरण एवं वन मंत्री के रूप में पदभार संभाला, जो एक स्वतंत्र प्रभार था. इसके बाद, उन्होंने कपड़ा मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, सड़क एवं परिवहन और राजमार्ग मंत्री, शहरी विकास मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया.

अब हिंदुत्व की राजनीति करने लगे?
हाल के सालों में कमलनाथ पर आरोप लगते रहे हैं कि बीजेपी के मुकाबले में आने के लिए हिंदुत्व का सहारा ले रहे हैं. यह भी कहा जाता है कि वे कांग्रेस के स्टैंड से अलग भी स्टैंड ले लेते हैं. जैसे हाल ही में उन्होंने एक बयान दे दिया कि बाबरी विध्वंस में कांग्रेस के योगदान जो नकारा नहीं जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि राम मंदिर बनाने में कांग्रेस की भी भूमिका है. उनका इशारा राजीव गांधी के ताला खुलवाने के आदेश की तरफ था. उनके इस बयान की जमकर चर्चा हुई है. हालांकि इस पर कांग्रेस ने चुप्पी साध ली.

अब वे 'राम भक्त' बन गए
पिछले मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कमलनाथ हिंदुत्व के विचारधारा पर चलते आए और खुद को राम भक्त के रूप में पेश किया. उनका यह रूप इस विधानसभा चुनाव में भी दिख रहा है. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद एक बार तो उन्होंने पार्टी के सभी जिला मुख्यालयों पर हनुमान जयंती के दिन कार्यक्रम आयोजित कराए थे. उन्होंने संगठन के कई प्रकोष्ठ भी बनाए, जिनमें साधु संतों, पुजारियों और आयोजन के प्रकोष्ठों की चर्चा रही. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि कमलनाथ ने अपने हिंदुत्व के रुख को लेकर पार्टी के भीतर ही विरोध का सामना किया है. वे बागेश्वर बाबा से भी मिले.

बीजेपी के पास छिंदवाड़ा में कमलनाथ की कोई काट नहीं
यही सब कारण हैं कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ ने जो लीगेसी स्थापित की है वह किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने छिंदवाड़ा से अपने नकुलनाथ को खड़ा किया और उन्हें भी वैसे ही जीत मिली जैसी कमलनाथ को मिलती रही है. अब देखना यह होगा कि कब तक बाजेपी कमलनाथ के गढ़ में उन्हें चुनौती दे पाएगी.

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