Inflation Rate: आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि देश की इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार मजबूत बनी हुई है. दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़े 6.4 परसेंट के करीब हो सकते हैं.
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India GDP News: बढ़ती महंगाई से आम आदमी को राहत देने के लिए आरबीआई को आगे आना पड़ा. महंगाई से राहत देने और बाजार में कैश फ्लो कम करने के लिए रिजर्व बैंक ने ब्याज दर में इजाफा किया. नतीजतन सितंबर का रिटेल इंफ्लेशन रेट 5.02 परसेंट पर रेपो रेट 6.50 परसेंट पर है. रेपो रेट बढ़ने से होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन सभी महंगे हो गए. लोन महंगा होने से विकास भी असर पड़ रहा है. इंडस्ट्री से लेकर रियलएस्टेट सेक्टर तक ब्याज दर में कमी की मांग कर रहे हैं.
रेपो रेट को 6.50 परसेंट पर कायम
फेड रिजर्व की तरफ से ब्याज दर में लगातार दूसरी बार किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया. रिजर्व बैंक ने भी तीन मौद्रिक समीक्षा नीति में रेपो रेट को 6.50 परसेंट पर ही कायम रखा है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि देश की इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार मजबूत बनी हुई है. दूसरी तिमाही के जीडीपी के आंकड़े 6.4 परसेंट के करीब हो सकते हैं. महंगाई हमारी पहली प्राथमिकता है. उनके इस बयान से तो यही सवाल है कि क्या आरबीआई महंगाई के लिए विकास को कुर्बान करने के लिए तैयार है? आइए जानते हैं केंद्रीय बैंक महंगाई पर फोकस करने में क्यों लगा है?
बाइंग कैपेसिटी में गिरावट
महंगाई का सबसे पहला असर आम आदमी पर देखा जाता है. महंगाई बढ़ने से लोगों की बाइंग कैपेसिटी कम हो जाती है. एक निश्चित आमदनी में आम आदमी को कम चीजों के साथ गुजारा करना पड़ता है. महंगाई का असर यह होता है कि लोग महंगी चीजों को खरीदना कम कर देते हैं और रोजमर्रा की जरूरत पर ज्यादा खर्च करने लगते हैं. इंफ्लेशन रेट को नीचे लाकर आरबीआई आम आदमी की बाइंग कैपिसिटी को पुराने लेवल पर वापस लाना चाहता है.
कारोबार पर प्रभाव
महंगाई का असर अलग-अलग कारोबार पर भी पड़ता है. इसके एक निश्चित सीमा से ज्यादा बढ़ने पर प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ जाती है और उद्योग-धंधों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कंपनियों का मार्जिन घटकर कम हो जाता है. महंगाई बढ़ने का सीधा असर ब्याज दर पर भी होता है और कॉरपोरेट्स को पैसा उधार लेने के बदले ज्यादा भुगतान करना पड़ता है. लंबी अवधि में यह स्थिति परेशान कर सकती है.
निवेश पर असर
महंगाई बढ़ने का सीधा असर निवेश और इस पर मिलने वाले रिटर्न पर पड़ता है. इसका असर शेयर मार्केट पर भी देखा जाता है. इंफ्लेशन बढ़ने से कंपनियों का प्रॉफिट गिर जाता है और निवेशकों के सामने चुनौतियां आ जाती हैं. जिस तरह महंगाई बढ़ने से बाइंग कैपिसिटी घटती है, उसी तरह रिटर्न में गिरावट आना भी खतरे की घंटी हो सकता है.
विकास को प्रभावित करती है महंगाई
आरबीआई का यह मानना है कि अगर महंगाई को कंट्रोल नहीं किया गया तो यह विकास को प्रभावित करेगी. किसी भी देश के सेंट्रल बैंक का फोकस विकास को बढ़ावा देना होता है लेकिन इस महंगाई को कम करने के लिए कई बार विकास को कुछ हद तक धीमा करना होता है. महंगाई को नियंत्रित करने में सफलता मिलने पर विकास को फिर से बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. यह लॉन्ग टर्म में विकास के लिए जरूरी है.
विस और लोस चुनाव
देश के पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा के सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी दमदार प्रदर्शन करना चाहती है. ऐसा तभी संभव हो सकता है जब इंफ्लेशन रेट में गिरावट आए. सरकार ने रिजर्व बैंक को महंगाई दर 2 से 6 परसेंट के दायरे में रखने का टारगेट दिया हुआ है. सरकार की तरफ से भी महंगाई दर को नीचे लाने के प्रयास किये जा रहे हैं. इसी का असर है कि सितंबर में यह गिरकर 5.02 फीसदी पर आ गई. जुलाई में महंगाई दर बढ़कर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी.
एक प्रतिशत महंगाई बढ़ने का जीडीपी पर असर
एक प्रतिशत महंगाई बढ़ने का जीडीपी पर नकारात्मक असर होता है. इसका सीधा असर लोगों की आमदनी और खर्च पर पड़ता है. आमदनी कम होने से लोगों की क्रय शक्ति गिरती है. इससे अर्थव्यवस्था में भी गतिरोध आने का खतरा रहता है. बिक्री कम होने से कंपनियों को नौकरी में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इसके अलावा महंगाई दर बढ़ने से भविष्य की आमदनी में गिरावट आने की भी आशंका बनी रहती है. इससे निवेशक कम जोखिम भरा निवेश करने लगते हैं या निवेश से बचते हैं. फेडरल रिजर्व के एक रिपोर्ट के अनुसार एक प्रतिशत महंगाई बढ़ने से जीडीपी में करीब 0.2 परसेंट की गिरावट आ सकती है.