Delhi Tis Hazari court: एक मां ने अपनी दो बेटियों को गला घोंटकर मार डाला. महिला के इस काम को कोर्ट ने न सिर्फ जघन्य अपराध कहा, बल्कि इस मामले में न्याय की सख्त जरूरत को समझते हुए फैसला सुनाया है. अदालत ने इस अपराध को मातृत्व के आदर्शों के खिलाफ एक गंभीर उल्लंघन के रूप में देखते हुए सजा सुनाई.
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Delhi News: उस मां की दो बेटियां थीं, पहली की उम्र 5 साल और दूसरी दुधमुंही थी, सिर्फ 5 महीने की. लेकिन उस मां ने ऐसा काम किया जिससे अदालत की अंतरात्मा तक कांप गई. जिन हाथों से उसने अपने दोनों बच्चों को दूध पिलाया, पाला-पोसा, उन्हीं हाथों से एक दिन उनका गला घोंट दिया. मामला कोर्ट पहुंचा तो जज भी इस पूरी वारदात को सुनकर हिल गए.
दरअसल, दिल्ली की एक अदालत ने 2018 में अपनी दो बच्चियों की गला दबाकर हत्या करने के मामले में एक महिला, लीलावती (32), को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इस मामले को दुर्लभतम श्रेणी में रखते हुए अदालत ने कहा कि इस जघन्य अपराध ने न केवल अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दिया है, बल्कि पूरे समाज को भी हिला कर रख दिया है. इस अपराध ने समाज के उन मानदंडों को भी चुनौती दी है, जिनके तहत माताओं को उनकी पालन-पोषण की भूमिका, त्याग, ममता और निस्वार्थता के प्रतीक के रूप में आदर्श माना जाता है.
तीस हजारी अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सचिन जैन ने अपने फैसले में कहा कि लीलावती द्वारा अपनी बेटियों की हत्या करना एक क्रूर और निर्मम कृत्य है, जो इस मामले को दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में लाता है. हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि दोषी के दो अन्य बच्चों की भलाई और उसके पुनर्वास को ध्यान में रखते हुए मृत्युदंड की तुलना में आजीवन कारावास की सजा अधिक उपयुक्त है.
अभियोजन पक्ष के अनुसार लीलावती ने 20 फरवरी, 2018 को अपनी पांच साल और पांच महीने की दो बेटियों की गला दबाकर हत्या कर दी थी. अदालत ने इस घटना को न केवल एक माता द्वारा अपने बच्चों के प्रति विश्वासघात का कृत्य करार दिया, बल्कि इसे एक ऐसा अपराध बताया जिसने समाज की अंतरात्मा को भी गहराई से झकझोर दिया है.
अदालत ने दोषी लीलावती को आजीवन कारावास और 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई. इसके साथ ही अदालत ने यह भी पाया कि दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना के तहत मुआवजे का कोई आधार नहीं है, क्योंकि इस मामले में लाभार्थी ही अपराधी है. अदालत के आदेश में कहा गया कि चूंकि दोनों बेटियां/पीड़िता पहले ही अपनी जान गंवा चुकी हैं और लाभार्थी ही अपराधी है, जिसने जघन्य हत्या की, और पिता ने न्याय के लिए लड़ने के बजाय दोषी को बचाने की पूरी कोशिश की, इसलिए वर्तमान मामले में मुआवजा देने का कोई आधार नहीं बनता है.
(इनपुट: भाषा)