Indian Judicial Structure: न्यायपालिका से जुड़े शब्द जज, जस्टिस या मजिस्ट्रेट आपने सुने ही होंगे, कोर्ट में मामलों की सुनवाई यही करते हैं. इन सबको एक ही समझा जाता हैं. क्या ये तीनों अलग-अलग हैं या एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं? यहां जानते हैं इस बारे में...
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Difference Between Judge, Justice And Magistrate: भारत की न्यायपालिका संविधान का अभिन्न हिस्सा है और देश की कानून व्यवस्था को बनाए रखने में इसकी अहम भूमिका होती है. जज, जस्टिस और मजिस्ट्रेट जैसे पद न्यायपालिका की अलग-अलग भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को दर्शाते हैं. हालांकि, इन तीनों पदों के कार्य, पावर और जिम्मेदारियों में बड़ा अंतर है. यहां समझिए जज, जस्टिस और मजिस्ट्रेट के बीच क्या अंतर है और इनकी भूमिकाएं कैसे अलग-अलग न्यायिक प्रक्रियाओं में अहम योगदान देती हैं.
जज: न्याय व्यवस्था के प्रमुख निर्णयकर्ता
जज, जिसे न्यायाधीश भी कहा जाता है, देश की न्याय व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. वे जिला अदालतों और सत्र अदालतों में न्याय प्रदान करते हैं. जज के पास मामलों का निर्णय देने की शक्ति होती है. ये सिविल और क्रिमिनल दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई करते हैं. जिला अदालत में सीनियर जज के नेतृत्व में अन्य जज काम करते हैं, जो न्याय प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाए रखने में मदद करते हैं.
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मजिस्ट्रेट: सीमित अधिकारों वाले न्यायिक अधिकारी
मजिस्ट्रेट न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा होते हैं, लेकिन उनके अधिकार जज की तुलना में सीमित होते हैं. मजिस्ट्रेट छोटे-मोटे क्रिमिनल मामलों की सुनवाई करते हैं और फांसी या उम्रकैद जैसी सजा नहीं सुना सकते. मजिस्ट्रेट का कार्य क्षेत्र एक जिले तक सीमित होता है. सबसे वरिष्ठ मजिस्ट्रेट को चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (CJM) कहा जाता है. ये रेवेन्यू और छोटे मामलों की सुनवाई करते हैं.
जस्टिस: न्यायपालिका का सर्वोच्च पद
जस्टिस, जिसे हिंदी में न्यायमूर्ति कहा जाता है, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में कार्यरत होते हैं. यह न्यायपालिका का सबसे उच्च पद है. जस्टिस के पास मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है. जस्टिस संवैधानिक मामलों, बड़े कानूनी विवादों और मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हैं. इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है.
जज और मजिस्ट्रेट में अंतर
जज और मजिस्ट्रेट के बीच का अंतर उनके अधिकार क्षेत्र और शक्तियों में होता है. जज बड़े कानूनी मामलों की सुनवाई करते हैं और उनके निर्णय व्यापक होते हैं. वहीं, मजिस्ट्रेट छोटे स्तर के क्रिमिनल और रेवेन्यू मामलों की सुनवाई तक सीमित रहते हैं. मजिस्ट्रेट राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, जबकि जज की नियुक्ति हाई कोर्ट के माध्यम से होती है.
जज और जस्टिस में क्या अंतर है?
जज और जस्टिस दोनों ही न्याय प्रक्रिया का हिस्सा हैं, लेकिन उनकी भूमिका और कार्यक्षेत्र अलग हैं. जस्टिस का पद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में होता है और वे संवैधानिक मामलों की सुनवाई करते हैं. वहीं, जज का कार्य जिला और सत्र अदालतों में होता है. दोनों ही पदों के लिए नियुक्ति प्रक्रिया और जिम्मेदारियां भिन्न हैं.
न्यायपालिका के इन पदों का महत्व
जज, जस्टिस और मजिस्ट्रेट, सभी न्याय व्यवस्था को सुचारू रखने में अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाते हैं. ये पद न केवल कानून का पालन सुनिश्चित करते हैं, बल्कि समाज में न्याय और शांति बनाए रखने में भी सहायक होते हैं. इनकी भूमिका और शक्तियों को समझना नागरिकों को न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को बेहतर ढंग से जानने में मदद करता है.