Jaypee Healthcare: एक्सप्रेसवे, हाईवे, हाईराइज बिल्डिंग, अस्पताल...और न जाने क्या-क्या. कभी रियल स्टेट डेवलपर के तौर पर जिसका सिक्का चलता था, आज उसकी 'आखिरी' कंपनी भी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है. बात हो रही है जेपी यानी जयप्रकाश ग्रुप (Jaiprakash Group) की.
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Jaypee Group: एक्सप्रेसवे, हाईवे, हाईराइज बिल्डिंग, अस्पताल...और न जाने क्या-क्या. कभी रियल स्टेट डेवलपर के तौर पर जिसका सिक्का चलता था, आज उसकी 'आखिरी' कंपनी भी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है. बात हो रही है जेपी यानी जयप्रकाश ग्रुप (Jaiprakash Group) की. जेपी समूह की एक और कंपनी दिवालिया हो गई है. एनसीएलटी ने जेपी हेल्थकेयर (Jaypee Healthcare) के खिलाफ इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग शुरू करने का आदेश दे दिया है.
दिवालिया हुई जेपी ग्रुप की एक और कंपनी
जेपी हेल्थकेयर जेपी ग्रुप की आखिरी मूल्यवान कंपनी है, जो अब दिवालिया हो गई है. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक देश की कई दिग्गज कंपनियों ने जेपी हेल्थकेयर को खरीदने के लिए दिलचस्पी दिखा रही है, जिसमें फोर्टिस हेल्थकेयर, अपोलो हॉस्पिटल्स, मेदांता और मैक्स हेल्थकेयर जैसे बड़े खिलाड़ी शामिल है.
रिपोर्ट के मुताबिक एनसीएलटी की इलाहाबाद पीठ ने जेसी फ्लावर्स एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी की ओर से दायर याचिका पर जेपी हेल्थकेयर को कॉर्पोरेट दिवाला और समाधान प्रक्रिया के लिए स्वीकार करने का मौखिक आदेश दिया. इस आदेश के लिखित कॉपी का इंतजार है. केयर रेटिंग्स के एक डिस्क्लोजर के मुताबिक कंपनी पर अलग-अलग बैंकों का 1000 करोड़ बकाया है. हालांकि ये कोई पहला मामला नहीं है, जब जेपी समूह की कंपनिया दिवालिया प्रक्रिया से गुजरी हो.
संकट में कंपनी
कर्ज संकट में फंसी जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (Jaiprakash Associates) को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने दिवालिया प्रक्रिया से गुजने की मंजूरी दे दी . कंस्ट्रक्शन, सीमेंट और हॉस्पिटेलिटी बिजनेस में काम करने वाली कंपनी कर्ज के भारी बोझ से दबी है. कर्ज को कम करने के लिए कंपनी ने बीते कुछ सालों में अपने कई सीमेंट प्लांट बेच दिए हैं. जो जयप्रकाश समूह आज मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उसकी नींव 218 रुपये की सैलरी पाने वाले एक इंजीनियर ने रखी थी.
किसने रखी जेपी ग्रुप की नींव
शायद ही कोई यकीन कर पाए कि 218 रुपये की सैलरी पाने वाले एक साधारण का इंजीनियर करोड़ों का कारोबार खड़ा कर सकता है. 1931 में यूपी के बुलंदशहर में जन्मे जयप्रकाश गौड़ एक मिडिल क्लास से ताल्लुक रखते थे. किसी तरह पिता ने पैसों का इंतजाम कर रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग में दाखिला करवाया. पढ़ाई के बाद नौकरी मिली तो सैलरी के तौर पर मात्र 218 रुपये मिले. जयप्रकाश गौड़ को बेतवा नदी पर बन रहे बांध प्रोजेक्ट में काम मिला.
218 रुपये की सैलरी वाले ने खड़ा कर दिया करोड़ों का कारोबार
उन्होंने देखा की इंजीनियर के तौर पर उन्हें 218 रुपये की सैलरी मिलती है तो वहीं कॉन्ट्रैक्टर्स हर महीने करीब 5,000 रुपए मिल रहे हैं. उन्होंने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वो नौकरी के बजाए अपना काम करेंगे. साल 1958 में जेपी गौड़ ने नौकरी छोड़ अपना काम शुरू कर दिया. कुछ सालों के संघर्ष के बाद उन्हें सफलता मिलने लगी. वो वक्त भी आया जब जयप्रकाश गौड़ की कंपनी को देश के पहले एक्सेस कंट्रोल एक्सप्रेसवे का काम मिला. कुछ ही सालों में कंपनी ने ए्सप्रेसवे, हाईवे से लेकर के फॉर्मूला वन रेसिंग ट्रैक बनाने का रिकॉर्ड बना लिया. 165 किमी लंबी ग्रेटर नोएडा-आगरा एक्सप्रेसवे या यमुना एक्सप्रेस जेपी की ही देन है. कंपनी ने रियल एस्टेट सेक्टर में भी खूब नाम कमाया. दिल्ली-एनसीआर में 32000 से अधिक फ्लैट्स बनाए. 218 रुपये की सैलरी पाने वाले एक साधारण से इंजीनियर ने करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर दी.
एक के बाद एक सेक्टर में बढ़ती कारोबार
साल 1981 में जेपी ग्रुप में होटल और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में कदम रखा और अपना पहला होटल बिजनेस शुरू किया. साल 1987 में जयप्रकाश एसोसिएट लिमिटेड शेयर बाजार में लिस्ट हो गई. कंपनी ने 1992 में हाइड्रो पावर सेक्टर में एंट्री मारी. इसके बाद साल 1986 में जेपी सीमेंट की शुरूआत की. साल 2001 में जेपी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी की नींव रखी गई. वहीं साल 2008 में जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन अस्तित्व में आई. साल 2011 में रियल स्टेट सेक्टर और साल 2014 में जेपी ने मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल से हेल्थ सेक्टर में एंट्री की.
कर्ज के बोझ में दबती चली गई कंपनी
देश ही नहीं कंपनी का काम विदेशों तक फैलने लगा. साल 1979 में जेपी समूह को इराक में 250 करोड़ का काम मिला था. काम के साथ-साथछ दौलत बढ़ी और 2010 में उन्हें फोर्ब्स मैगजीन में उन्हें भारतीय अरबपतियों की लिस्ट में 48वां स्थान मिला. 1.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति वाले जयप्रकाश गौड़ की दौलत बढ़ती चली गई. हालांकि जैसे-जैसे कंपनी का कारोबार बढ़ा, कंपनी पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता चला गया. कंपनी कर्ज और ब्याज के बोझ से दबती और डिफॉल्ट होती चली गई. कर्ज चुकाने के लिए एक के बाद एक कंपनियां दिवालिया होती चली गई. हाल ही में जेपी इंफ्रा के कारोबार को सुरक्षा ग्रुप ने खरीद लिया, कर्ज चुकाने के लिए कंपनी को एक-एक कर अपना सीमेंट कारोबार बेचना पड़ा. कर्ज कंपनी के लिए बर्बादी का सबक बन गया.