RINL Privatization: आरआईएनएल (RINL) का आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में 75 लाख टन का प्लांट है. कंपनी गंभीर वित्तीय और परिचालन से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही है. इसका कुल बकाया 35000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है.
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Govt Investment in RINL: सरकारी कंपनी राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (RINL) को आर्थिक और परिचालन संबंधि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में कंपनी बंद होने के कगार पर है. कंपनी को चलती स्थिति में बनाए रखने के लिए सरकार ने इसमें करीब 1640 करोड़ रुपये डाले हैं. एक ऑफिशिय डॉक्यूमेंट में इससे जुड़ी जानकारी मिली है. इस्पात मंत्रालय (Ministry of Steel) ने एक नोट में कहा कि सरकार आरआईएनएल (RINL) को चलती हालत में बनाए रखने के लिए कई उपाय कर रही है.
कंपनी को कुल 1140 करोड़ का लोन दिया गया
डॉक्यूमेंट के अनुसार, ‘इस बारे में भारत सरकार ने 19 सितंबर, 2024 को कंपनी में इक्विटी के रूप 500 करोड़ रुपये डाले हैं. इसके अलावा 27 सितंबर, 2024 को कंपनी को वर्किंग कैपिटल की जरूरतों को पूरा करने के लिए 1140 करोड़ रुपये का लोन दिया गया है.’ इसमें कहा गया है कि एसबीआई (SBI) के मालिकाना हक वाली सब्सिडियरी कंपनी एसबीआई कैपिटल को आरआईएनएल (RINL) की व्यवहार्यता पर एक रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया है.
विशाखापत्तनम में कंपनी का 75 लाख टन का प्लांट
रिपोर्ट में कहा गया ‘आरआईएनएल गंभीर वित्तीय संकट में है और इस्पात मंत्रालय... वित्त मंत्रालय के परामर्श से आरआईएनएल को चालू हालत में बनाए रखने के लिए अलग-अलग कदम उठा रहा है. इस्पात मंत्रालय के तहत आने वाली आरआईएनएल (RINL) इस्पात निर्माण कंपनी है. आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में इसका 75 लाख टन का संयंत्र है. कंपनी गंभीर वित्तीय और परिचालन से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही है. आरआईएनएल का कुल बकाया 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है.
प्राइवेटाइजेशन के फैसले का श्रमिक संघों ने विरोध किया
जनवरी 2021 में कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति (CCEA) ने रणनीतिक विनिवेश के जरिये आरआईएनएल (RINL) में सरकारी हिस्सेदारी के 100 प्रतिशत विनिवेश के लिए अपनी ‘सैद्धांतिक’ मंजूरी दी थी. इसे विशाखापत्तनम स्टील प्लांट या विजाग स्टील भी कहा जाता है. कंपनी के प्राइवेटाइजेशन के सरकार के फैसले का श्रमिक संघों ने विरोध किया था. उनका कहना था कि आरआईएनएल के पास खुद के इस्तेमाल वाली लौह अयस्क खान नहीं है, जिसकी वजह से उसे मौजूदा संकट झेलना पड़ रहा है.
आरआईएनएल के प्राइवेटाइजेशन का विरोध कर रहे एक यूनियन के नेता जे अयोध्या राम ने कहा, ‘आरआईएनएल के पास कभी भी कैप्टिव यानी खुद के इस्तेमाल वाली खदानें नहीं थीं. अन्य सभी प्राथमिक इस्पात निर्माता जो ब्लास्ट फर्नेस के माध्यम से इस्पात बनाते हैं, उन्हें कैप्टिव खदानों का लाभ मिलता है. इससे कच्चे माल की लागत में मदद मिलती है. हमने हमेशा बाजार मूल्य पर लौह अयस्क खरीदा है. आप इसमें परिवहन लागत भी जोड़ सकते हैं.’ (इनपुट : भाषा से भी)