नई दिल्ली. पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की शुक्रवार को हुई हत्या ने भारत में भी शोक की लहर पैदा कर दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आबे से जुड़े अपने जीवन के अनुभवों को शेयर करते हुए कई ट्वीट किए हैं. भारत में कल यानी शनिवार को आबे की स्मृति में एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई है. दरअसल शिंजो आबे ऐसे जापानी प्रधानमंत्री थे जिन्हें भारत के मित्र और हितचिंतक के रूप में पहचाना जाता है. उन्होंने कई बार भारत की यात्रा की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आबे वाराणसी की गंगा आरती का हिस्सा भी बन चुके हैं.
स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से हटने के बाद भी शिंजो आबे जापान में बेहद लोकप्रिय थे. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बनने वाले व्यक्ति शिंजो आबे ही थे. साल 2006 में वो महज 52 साल की उम्र में जापान के प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री बनने के बाद शिंजो आबे का कार्यकाल महज एक साल का रहा था. इसके बाद स्वास्थ्य कारणों से उन्हें अपने पद से हटना पड़ा था. उन्हें अल्सरेटिव कोलाइटिस की समस्या हुई थी. लेकिन इसी एक साल में शिंजो आबे वो काम कर चुके थे जिसकी वजह से उन्हें अगली बार देश का प्रधानमंत्री बनना था.
2007 में ही राष्ट्रवाद पर बिल
दरअसल मार्च 2007 ने जापान के दक्षिण पंथी दलों के साथ मिलकर आबे ने एक बिल प्रस्तावित किया था जिससे राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा सके. यह बिल जापानी युवाओं में अपने क्षेत्र और देश के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने के लिए प्रस्तावित किया गया था. राष्ट्रवाद और जापानी कल्चर की ग्लोरी को वापस लाने का यह प्रयास लोगों के दिल में उतरा. हालांकि पहली बार प्रधानमंत्री रहते आबे की सरकार पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे थे. इसी क्रम में शिंजो आबे ने इस्तीफा भी दिया था. लेकिन बाद में खुलासा हुआ कि इस्तीफे के पीछे उनकी बीमारी सबसे बड़ी वजह थी.
बीमारी से उबर किया कमबैक और फिर छा गए
खैर इलाज से शिंजो आबे रिकवर हुए और एक बार फिर राजनीति में कम बैक किया. 2012 में जब जापानी प्रधानमंत्री योशीहीको नोडा ने देश के निचले सदन को भंग किया तो शिंजो आबे ने आम चुनाव में जबरदस्त प्रचार अभियान छेड़ा. इस चुनाव में भी आबे के प्रचार की टैगलाइन थी 'टेक बैक जापान'. चुनाव प्रचार के दौरान आबे ने देश में आर्थिक सुधारों और सीमा विवाद में सख्त स्टैंड अपनाने का वादा किया था.
प्रचंड जीत
आबे की इस चुनाव में इतनी जबरदस्त जीत हुई थी कि अपनी पुरानी सहयोगी पार्टी न्यू कोमिटो पार्टी के साथ मिलकर वो ऊपरी सदन के वीटो पावर को भी धता बता सकते थे. यानी उनके पास पूरे सदन में दो-तिहाई से अधिक का बहुमत मौजूद था.
2014 में फिर जीते और 2020 में बीमारी के कारण दिया इस्तीफा
इस जीत के बाद आबे ने जापानी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कई स्तर पर प्रयास किए. इन सबके बीच जापान के गौरवपूर्ण इतिहास, सांस्कृतिक मूल्यों को भी जमकर तरजीह दी गई. 2014 में भी जब आबे देश के प्रधानमंत्री बने तो पूरे चुनाव प्रचार की आधारशिला में राष्ट्रवाद ही छुपा था.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक आबे के समर्थकों का कहना था कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देश के ऊपर जमे अमेरिकी प्रभाव को हटाने के लिए राष्ट्रवाद की सोच को मजबूत बनाने की आवश्यकता थी. 2014 के चुनाव में भी आबे ने जबरदस्त जीत हासिल की. फिर साल 2020 तक वो देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने रहे. 2020 में एक बार फिर बीमारी के कारण ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
इसे भी पढ़ें- नहीं रहे शिंजो आबे, उनके दिल में बसता था हिंदुस्तान और मोदी से था याराना
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.