नई दिल्ली: यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच जिस व्यक्ति के सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह है यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की. जेलेंस्की इन कठिन परिस्थितियों में जिस तरह से यूक्रेन का नेतृत्व कर रहे हैं कि आज कोई उन्हें 'प्रतिरोध का प्रतीक' कह रहा है, तो कोई 'आजादी का मसीहा'. लेकिन इस सब के बीच एक और व्यक्ति की चर्चा फिर से उठ रही है, वे हैं अफगानिस्तान के आखिरी राष्ट्रपति अशरफ गनी अहमदजई. आज जब यूक्रेन पर हमला हुआ है, तब जेलेंस्की अपने देश के साथ हर मोर्चे पर खड़े हुए हैं, वहीं जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर हमला बोला था, तब गनी अपने देश को बेसहारा छोड़कर भाग निकले थे.
इस स्थिति को देखते हुए जब यूक्रेन और अफगानिस्तान के राष्ट्रपतियों की चर्चा करें, तो आमने-सामने एक प्रोफेसर और एक कॉमेडियन नजर आते हैं. गनी अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बनने से पहले जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे. वहीं जेलेंस्की एक कॉमेडियन के रूप में मशहूर हैं.
गनी: शिक्षा के पटल से राजनीति के गलियारों तक
गनी ने साल 2009 में पहली बार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा. उन्होंने इस चुनाव में गतिशील अर्थव्यवस्था और अफगान लोगों के लिए रोजगार के अवसर को अपना चुनावी मुद्दा बनाया. उस चुनाव में गनी ने प्रवासी अफगानी लोगों से उनके अभियान का समर्थन करने और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए भी कहा. हालांकि इस चुनाव में गनी को हार का सामना करना पड़ा और वे चौथे स्थान पर रहे.
साल 2014 में गनी दूसरी बार चुनाव लड़े. यह चुनाव काफी चर्चा का विषय रहा, क्योंकि चुनाव के पहले राउंड में गनी और अब्दुलाह अब्दुलाह दोनों को ही 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं हासिल हुए. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की देख-रेख में चुनाव के दूसरे राउंड का आयोजन हुआ, जिसमें गनी ने अच्छे बहुमत के साथ जीत हासिल की. इस चुनाव में जीत के साथ गनी पहली बार अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बने.
5 साल सत्ता में रहने के बाद गनी ने 2019 के चुनाव में एक बार फिर राष्ट्रपति पद के लिए दावा पेश किया. इस बार उन्हें जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना और वे एक बार फिर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बने. अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने की ओर आगे बढ़ रहे गनी का सफर तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ खत्म हो गया. साल 2021 में तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर हमला किया. तब कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गनी कई गाड़ियों में कैश भरकर अपने परिवार के साथ उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद भाग गए और अपने देश की जनता को बेसहारा करके छोड़ गए.
राजनीति में कदम रखने से पहले गनी हमेशा से अफगानिस्तान के विकास और अफगान लोगों के लिए अच्छे भविष्य के सपने देखते रहे. गनी ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में अपनी सेकंडरी लेवल की स्कूलिंग पूरी की. इसके बाद वे आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चले गए. उन्होंने बेरुत की अमेरिकन यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत साल 1977 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री हासिल की.
इस दौरान सोवियत रूस के हमले में उनके घर के अधिकांश पुरुषों को जेल में डाल दिया गया, लेकिन इस वाकये ने भी गनी के शिक्षा के प्रति रुझान को प्रभावित नहीं किया. गनी ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा. उन्होंने साल 1983 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से anthrpology में पीएचडी की डिग्री हासिल की.
इसके बाद उन्हें University of California, Berkeley में पढ़ाने का भी मौका मिला. इसके बाद उन्हें साल 1983 में प्रतिष्ठित जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका मिला. इस बीच उन्हें वर्ल्ड बैंक के साथ भी काम करने को मौका मिला. उन्होंने वर्ल्ड बैंक के एक रिसर्च प्रोग्राम के तहत 'राज्य के निर्माण और सामाजिक बदलाव' विषय पर शोध भी किया. उन्होंने काफी लंबे समय तक वर्ल्ड बैंक में काम किया और वे एशिया से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स से भी जुड़े रहे. साल 2002 में वे वर्ल्ड बैंक की नौकरी छोड़कर अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करज़ई के साथ चीफ एडवाइजर के रूप में जुड़े और अफगानिस्तान की राजनीति में कदम रखा. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने तालिबान के समर्थकों से कई बार अपील की कि वे अफगानिस्तान की नागरिकता हासिल कर लें.
इस बयान से चर्च में आए थे गनी
तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा किया, उससे 10 दिन पहले गनी का एक सभा में दिया गया बयान सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ. अशरफ गनी उस बयान में एक मंच से ये ऐलान करते हुए दिख रहे हैं कि वे तालिबान का हमला होने पर देश छोड़कर नहीं भागेंगे. उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा कि अफगानिस्तान की सरजमीं के बड़े सम्राट रहे अमानुतल्लाह खान अपने मुल्क को छोड़कर भाग गए थे, लेकिन मैं नहीं भागूंगा. पर जब दस दिनों में तालिबान ने अफगानिस्तान पर हमला बोला, तो गनी अपने देश को और अपने लोगों को बेसहारा छोड़कर भाग निकले.
जेलेंस्की: 'प्रतिरोध का प्रतीक'
गनी जहां वतन पर हमला होते ही देश छोड़कर भाग निकले, उसके उलट जेलेंस्की यूक्रेन के लोगों के लिए 'प्रतिरोध का प्रतीक' बनकर उभरे. ये उनके नेतृत्व का ही कमाल है कि रूस की प्रशिक्षित सेना का सामना करने के लिए यूक्रेन के आम नागरिक हाथों में हथियार लेकर सड़कों पर उतर आए हैं.
पर जेलेंस्की का इतिहास गनी की तरह उतना समृद्ध नहीं रहा है. जेलेंस्की के बारे में एक बात आज सबसे अधिक चर्चा का विषय बनी हुई है कि कैसे एक कॉमेडियन देश का राष्ट्रपति बन बैठा. जेलेंस्की ने कानून की डिग्री हासिल करने के बाद कॉमेडी को अपना करियर बनाया. उन्होंने कई फिल्मों, सीरीजों में अभिनेता, निर्देशक के तौर पर काम किया. उन्होंने 'सर्वेंट ऑफ द पीपल' नामक एक सीरीज में यूक्रेन के राष्ट्रपति का किरदार निभाया. उस वक्त किसी ने भी यह अंदाजा नहीं लगाया था कि एक देश के राष्ट्रपति का रोल करने वाला कॉमेडियन असल में उस देश का राष्ट्रपति बन बैठेगा.
आज भी जब कई लोग जेलेंस्की की इसीलिए आलोचना कर रहे हैं कि एक देश की बागडोर किसी कॉमेडियन के हाथ में नहीं सौंपनी चाहिए. पर जब हम जेलेंस्की की तुलना गनी से करते हैं, तो एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाला प्रोफेसर वतन पर हमला होते ही देश को पीठ दिखाकर भाग निकला. पर एक कॉमेडियन अभी भी अपने देश के नागरिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हुआ है.
जेलेंस्की जहां आज अपने देश के नागरिकों के साथ डटकर दुश्मन देश का सामाना कर रहे हैं, वहीं गनी आज एक अरब देश में पॉलिटिकल असाइलम में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
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