यूपी: इन जिलों में छिपी है 2024 की जीत की चाभी, अखिलेश यादव का इन्हीं पर रहेगा ज्यादा फोकस

सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि मुलायम सिंह के बाद इस क्षेत्र में शिवपाल की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है. हालांकि, अब वक्त बदल गया है.शिवपाल ने भी अखिलेश को अपना नेता मान लिया है.  ऐसे में अखिलेश यादव यादवलैंड में कोई रिक्त स्थान नहीं छोड़ना चाहते हैं. नई पीढ़ी पर अखिलेश यादव अपनी छाप छोड़ने में जुटे हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 8, 2023, 12:28 PM IST
  • अखिलेश यादव अपने क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं
  • सपा के मुखिया हर छोटे बड़े कार्यक्रम में नजर आ रहे हैं
यूपी: इन जिलों में छिपी है 2024 की जीत की चाभी, अखिलेश यादव का इन्हीं पर रहेगा ज्यादा फोकस

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने पिता की विरासत को संभालने में जुटे हैं. सैफई लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से उनका फोकस बदल गया है. यादव लैंड को मजबूत करने के लिए वे पहली बार इटावा, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, औरैया, फरुर्खाबाद और कन्नौज पर पूरी तरह से फोकस कर रहे हैं. इसे 2024 लोकसभा चुनाव के लिहाज से उनकी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.

शिवपाल की अच्छी पकड़ 
सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि मुलायम सिंह के बाद इस क्षेत्र में शिवपाल की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है. इसीलिए शिवपाल यादव को अपने पाले में लेने के बाद अब वे यहां के हर गांव में युवाओं से सीधे जुड़ कर भविष्य की रणनीति को मजबूत बना रहे हैं. अपनी यात्राओं के दौरान वे यहां पर चाय, पकौड़ी और भुने आलू का लुफ्त उठाते भी दिखाई देते हैं. इसे यूपी के लिए सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है.

वक्त बदल गया है
सियासी जानकारों की मानें तो इस इलाके में शिवपाल सिंह का जमीन पर जुड़ाव रहा है. हालांकि, अब वक्त बदल गया है. शिवपाल ने भी अखिलेश को अपना नेता मान लिया है. परिवार के नई पीढ़ी भी सियासत में आ चुकी है. ऐसे में अखिलेश यादव यादवलैंड में कोई रिक्त स्थान नहीं छोड़ना चाहते हैं. नई पीढ़ी पर अखिलेश यादव अपनी छाप छोड़ने में जुटे हैं. 

हर छोटे बड़े कार्यक्रम में हो रहे शामिल
सपा के एक नेता की मानें तो मैनपुरी का चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव अपने क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैं. हर छोटे बड़े कार्यक्रम में नजर आ रहे हैं. चुनाव के दौरान भी वह लगातार वहीं पर सक्रिय रहे थे. मैनपुरी, सपा का प्रमुख गढ़ रहा है. यहां से सपा ने आठ बार और मुलायम सिंह ने पांच बार जीत दर्ज की थी. मुलायम की सहानभूति इस बार उपचुनाव में ऐसी दिखी कि सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. 

-अखिलेश यादव ने दिसंबर माह में मैनपुरी में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया
-अगले दिन किशनी में पार्टी के लोगों के बीच रहे.
-14 दिसंबर को अपनी विधानसभा क्षेत्र करहल में रहे. 
-23 दिसंबर को जसवंत नगर में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. 
-क्रिसमस में मैनपुरी में एक समारोह में शामिल हुए. 
-फिर मैनपुरी में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

वोट बैंक को सहेजने निकले
छोटे नेता जी अखिलेश को लगने लगा है कि अगर अपने वोट बैंक को सहेज लिया जाए तो आने वाले चुनाव में अच्छा काम हो सकता है. इसी कारण वे शिवपाल को अपने खेमे लेने के बाद यादव बेल्ट को मजबूत करने में जुटे हैं. 

मुलायम सिंह करते थे परिश्रम 
राजनीतिक जानकारों के अनुसार सपा संस्थापक मुलायम सिंह ने अपने क्षेत्र को मजबूत करने में बहुत परिश्रम किया था. मैनपुरी के आस-पास के लोग उनके क्षेत्र छोड़ने के बाद लखनऊ और दिल्ली में जाकर मिलते थे. मुलायम सिंह यदाव उनकी समस्या सुनते और निपटाते थे. लोगों से उनका व्यक्तिगत जुड़ाव ही उनकी ताकत था. इसीलिए इटावा, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे यादव बाहुल इलाके में अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखा. शायद अखिलेश 2024 में इतना समय इन क्षेत्रों में न दे पाएं, इसी कारण वे मुलायम के न रहने के बाद उनकी खाली जगह को भरने और ज्यादा से ज्यादा समय यहां देने के प्रयास में लगे हैं.

2014 और 2019 में हुआ नुकसान
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डाक्टर आशुतोष वर्मा कहते हैं कि फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज जैसे इलाकों से नेता जी के जमाने से लोग प्यार देते रहे हैं. 2014 और 2019 में जरूर इन क्षेत्रों में हमें कुछ नुकसान हुआ है. लेकिन हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष इस नुकसान की भरपाई के लिए खुद इन क्षेत्रों में जा रहे हैं. यहां के लोगों से मिल रहे हैं. 

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि 2014 से मुलायम का गढ़ रहे यादवलैंड पर भाजपा लगातार अपनी दखल बढ़ा रही है. उसी का नतीजा रहा कि 2019 में न सिर्फ यादव बाहुल्य क्षेत्र, कन्नौज, फिरोजाबाद, जैसे इलाकों में भाजपा ने कब्जा जमा लिया. मुलायम सिंह के निधन के बाद भाजपा ने मैनपुरी में उनके शिष्य रहे रघुराज सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया. वहीं, इस उपचुनाव ने सपा ने अपनी रणनीति बदली. सारे विवाद भुलाकर अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल को न सिर्फ जोड़ा, बल्कि उपचुनाव से दूर रहने की परंपरा को खत्म कर घर-घर जाकर चुनाव प्रचार भी किया. अखिलेश चाहते कि मैनपुरी से जली लौ अब धीमी न पड़े इसलिए वह यादवलैंड की बागडोर संभाले हुए हैं. इसमें 2024 में कितनी कामयाबी मिलेगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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