गुजरात में अतीक से भी बड़ा क्रिमिनल था ये डॉन, पुलिस एनकाउंटर से मच गया था तहलका

कहा जाता है कि अब्दुल लतीफ कभी किसी पर सामने आकर हमला नहीं करता था, बल्कि अपने विपक्षी गुटों के बीच फूट डालने का काम करता था और उनमें से किसी एक गुट को अपने में मिलाकर दूसरे का सफाया कर देता था.

Written by - Pramit Singh | Last Updated : Apr 19, 2023, 11:07 AM IST
  • अब्दुल लतीफ के एनकाउंटर पर मचा था बवाल.
  • कभी पूरे गुजरात में इस गैंग्सटर का आतंक था.
गुजरात में अतीक से भी बड़ा क्रिमिनल था ये डॉन, पुलिस एनकाउंटर से मच गया था तहलका

नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या को लेकर इस वक्त कोहराम मचा हुआ है. विपक्षी नेता इसे राज्य में प्रशासन व्यवस्था का फेल होना करार दे रहे हैं तो वहीं सोशल मीडिया पर कुछ अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. कई ऐसे भी वीडियो सामने आए हैं जिनमें लोग अतीक अहमद के पक्ष में बातें करते देखे जा रहे हैं. दरअसल भारत में माफियातंत्र इसी तरह काम करता है. अपराधी खुद को स्थापित करने और अपना नेटवर्क फैलान के लिए बड़ी संख्या में लोगों की मदद भी करते हैं जिससे उनकी छवि रॉबिनहुड वाली बने. अतीक की तरह गुजरात में भी एक क्रिमिनल था जिसने अपने छवि कुछ  लोगों में रॉबिनहुड वाली बनाने की कोशिश की थी. 90 के दशक में उसके एनकाउंटर ने पूरे राज्य में तहलका मचाकर रख दिया था. उस डॉन पर रईस नाम की बॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है. इसमें अभिनेता शाहरुख खान मुख्य रोल में थे.

बात हो रही है गुजरात के अब्दुल लतीफ की. गुजरात में 1980 का दशक अब्दुल लतीफ के काले कारनामों और अपराधों की वजह से जाना जाता है. एक वक्त था जब गुजरात में हर तरफ अब्दुल की तूती बोलती थी. राज्य के हर काले कारनामे को अब्दुल अंजाम दिया करता था. राज्य के हर एक ठेके पर अब्दुल का एकछत्र अधिकार हुआ करता था. कहा जाता है कि गरीब परिवार में पले-बढ़े अब्दुल ने अपराध, उगाही, अवैध वसूली, अपहरण और ब्लैकमेलिंग का रास्ता पैसों की किल्लतों की वजह से चुना. अब्दुल के ऊपर 40 हत्याओं में शामिल होने का आरोप था. वहीं, वह 40 अपहरण के मामलों में भी आरोपी बनाया गया था. 

दरियापुर में हुआ था जन्म
अब्दुल का जन्म साल 1951 में गुजरात के मुस्लिम बहुल इलाके दरियापुर में हुआ था. अब्दुल के पिता वहाब शेख तंबाकू का काम किया करते थे और अपने इस धंधे के दम पर सात बच्चों का पेट पाल रहे थे. अब्दुल 12वीं के बाद अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सका. इसके बाद उसने अपने परिवार की मदद के लिए पिता के साथ मिलकर बिजनेस करने का फैसला किया. हालांकि, वह इसमें सफल नहीं हो पाया. 

देसी शराब का अवैध धंधा
इसके बाद अब्दुल ने 1980 के दशक में कालूपुर ओवरब्रिज के पास देसी शराब बेचने का काम शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में तो अब्दुल, अल्ला रक्खा नाम के एक अपराधी के साथ व्यापार करता रहा, लेकिन बाद में उसने अपना खुद का धंधा शुरू कर दिया और अब खुद ही शराब की तस्करी करने लगा. 

हथियारों की तस्करी करने लगा अब्दुल
अब्दुल जब गुजरात में शराब की तस्करी कर रहा था, उस समय पूरे गुजरात में शराब पर पाबंदी थी. हालांकि, अब्दुल पुलिसवालों की आंखों में धूल झोंकता रहा. स्वभाव से गुस्सैल अब्दुल जब शराब के पेशे से भी संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने अवैध हथियारों की तस्करी का धंधा शुरू कर दिया. इसके लिए अब्दुल ने हथियार सप्लायर शरीफ खान से हाथ मिला लिया. 

अपराध की दुनिया में रखा पांव
अवैध हथियारों की तस्करी के साथ-साथ अब्दुल ने अब अपराध की दुनिया में भी अपना पैर रख दिया. हत्या, वसूली, उगाही, अवैध कब्जा, अपहरण और ब्लैकमेलिंग अब अब्दुल के लिए आम बात बन गई. धीरे-धीरे अब्दुल इन कामों में मंझा हुआ खिलाड़ी बनता चला गया और उसके जुर्म की लिस्ट बड़ी होती चली गई. 

कहा जाता है कि अब्दुल लतीफ कभी किसी पर सामने आकर हमला नहीं करता था, बल्कि अपने विपक्षी गुटों के बीच फूट डालने का काम करता था और उनमें से किसी एक गुट को अपने में मिलाकर दूसरे का सफाया कर देता था. ऐसा करते-करते अब्दुल का नेटवर्क अब केवल अहमदाबाद में सीमित न रहकर पूरे गुजरात में फैल गया था. जैसे-जैसे अब्दुल का क्राइम बढ़ता गया ठीक वैसे उसके दुश्मनों की भी संख्या लगातार बढ़ती गई. अब अब्दुल की दुश्मनी वर्ल्ड के सबसे खतरनाक डॉन दाऊद इब्राहिम से हो चुकी थी. 

दाऊद से कैसे हुई दुश्मनी
अब्दुल की दाऊद के साथ दुश्मनी का असल किस्सा तब शुरू हुआ, जब अब्दुल लतीफ पठान गिरोह के दो बदमाशों अमीन खान और आलम खान से मिला. इन दोनों बदमाशों का झगड़ा पहले से ही दाऊद के साथ चल रहा था. एक सोने की खेप को लेकर दोनों गुटों के बीच तकरार हुई और इस तकरार में पठान गिरोह ने दाऊद के बड़े भाई सबीर इब्राहिम को मार दिया. इसके बाद लतीफ ने एक सोची समझी रणनीति के तहत पठान गिरोह के उन दोनों साथियों को पनाह दी और अंडरवर्ल्ड का हिस्सा बन गया. 

दाऊद इब्राहिम के ऊपर करवाया हमला
इसके बाद अब्दुल लतीफ ने दाऊद इब्राहिम के ऊपर हमला भी करवाया. यह बात दाऊद इब्राहिम की पेशी के समय की है. दाऊद कोफे पोसा ( तस्करी विरोधी कानून) के तहत साबरमती के सेंट्रल जेल में बंद था और उसकी पेशी होनी थी. इस बात की भनक अब्दुल लतीफ को लगी, फिर क्या था, दाऊद के खून के प्यासे लतीफ ने दाऊद की हत्या के लिए अपने गुंडों को भेज दिया. लतीफ के भेजे गए गुंडों ने पुलिस की गाड़ी को बीच में रोककर ताबड़तोड़ फायरिंग की. हालांकि, उस हमले में दाऊद बच निकला. 

रॉबिनहुड वाली छवि बनाने की कोशिश
एक तरफ जहां अब्दुल लतीफ की दुश्मनी वर्ल्ड के सबसे बड़े डॉन दाऊद इब्राहिम से हो गई थी. वहीं, वह दूसरी ओर अपने गिरोह में बेरोजगार युवाओं को शामिल कर मुस्लिम इलाकों में गरीबों का मसीहा बनता जा रहा था. एक तरह से अब्दुल की धाक अब पूरे गुजरात में बढ़ने लगी थी. लतीफ को अब राजनीतिक समर्थन भी प्राप्त होने लगे. अब्दुल लतीफ ने जेल में बंद रहते हुए साल 1986 का निकाय चुनाव लड़ा. इस दौरान उसने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा और उन पांचों सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहा. 

दाऊद से दोस्ती करने का किया फैसला
जीत के बाद अब्दुल की राजनीतिक पकड़ तो मजबूत हुई, लेकिन दाऊद के साथ उसकी दुश्मनी उसके व्यापार में रोड़ा बनने लगी. इसके लिए उसने दाऊद से दोस्ती करने का फैसला लिया. कहा जाता है दोनों के बीच हुई दोस्ती में सबसे पहले दोस्ती का हाथ दाऊद ने ही बढ़ाया था. दाऊद ने साल 1989 में लतीफ को दुबई आने का न्योता दिया था. इसके बाद से ही दोनों अपराधियों के बीच अब दोस्ती का नया अध्याय शुरू हो गया. 

कहा जाता है कि 9 अक्टूबर 1992 को कांग्रेस नेता रऊफ वलीउल्लाह के हत्याकांड के बाद अब्दुल दाऊद के बुलावे पर दुबई चला गया. इसके कुछ दिनों बाद वह कराची भी गया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अब्दुल ने यहीं से टाइगर और दाऊद के साथ मिलकर मुंबई बम धमाके की योजना बनाई. 

दिल्ली में पकड़ा गया अब्दुल
इसके बाद उसकी तलाश पूरे भारत में की जाने लगी. वह पुलिस की नजरों से लगातार बचता रहा, लेकिन उसकी सारी कोशिशें नाकाम हुई और साल 1995 में वह देश की राजधानी दिल्ली में पकड़ा गया. इसके बाद लतीफ दो सालों तक जेल में बंद रहा. फिर 29 नवंबर 1997 को उसने भागने की कोशिश की. उसकी वह कोशिश नाकाम हुई और पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. अब्दुल लतीफ के एनकाउंटर पर खूब बवाल मचा था. 

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