नई दिल्लीः Enforcement Directorate: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और यूपी की रायबरेली सीट से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने शुक्रवार की सुबह एक्स पर अपने एक पोस्ट के जरिए दावा किया कि जल्द ही उनके घर ED की रेड पड़ने वाली है. इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि जब से 29 जुलाई को उन्होंने सदन में चक्रव्यूह वाला भाषण दिया है, तभी से ED उनके घर पर छापेमारी की प्लानिंग करने में लग गई है.
1956 में हुई ईडी की स्थापना
बहरहाल, आइए जानते हैं कि आखिर ED का काम क्या होता है और किसी के घर पर ED की रेड कैसे पड़ती है. साथ ही हम यह भी जानेंगे कि ED किसके कहने पर काम करती है. ईडी इसे एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट या प्रवर्तन निदेशालय भी कहा जाता है. साल 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद देश में फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA) बना था. इसके बाद इसी के अंतर्गत 1 मई 1956 को प्रवर्तन इकाई बनी.
1957 में पड़ा ईडी नाम
साल 1957 में इसका नाम बदलकर डायरेक्टोरेट ऑफ एनफोर्समेंट या एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट कर दिया गया. मौजूदा समय में इसे ही संक्षिप्त में ED कहा जाता है. ED का हेड ऑफिस देश की राजधानी दिल्ली में है. ED वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाली एक सरकारी एजेंसी है. इसे बनाने का मकसद आर्थिक अपराध और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन में जांच करना था.
ED के मुख्य कार्य
ED का मुख्य काम मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े क्राइम, जिसमें पैसों की हेराफेरी कर कमाई गई संपत्ति की जांच करना और उसे जब्त करना है. साथ ही विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन रोकना, भगोड़े अपराधियों पर शिकंजा कसना है. ED देश में धन शोधन निवारण अधिनियम 2002(पीएमएलए), विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम 1999(फेमा), भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम 2018(एफ.ई.ओ.ए) और विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम 1973(फेरा) के तरह कार्य करती है.
जानें कैसा है ED का स्ट्रक्चर
बात अगर ED के स्ट्रक्चर की करें, तो इसमें एक डायरेक्टर और उनके साथ एक जॉइंट डायरेक्टर (AOD) होते हैं. फिर इनके नीचे 9 स्पेशल डायरेक्टर होते हैं. ये स्पेशल डायरेक्टर देश के अलग अलग जोन और हेडक्वार्टर, इंटेलिजेंस आदि के आधार पर बंटे होते हैं. इसके बाद इनके नीचे कई जॉइंट डायरेक्टर, डेप्युटी डायरेक्टर आदि होते हैं और फिर अलग अलग अधिकारी होते हैं.
एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र है ED
बता दें कि किसी थाने में एक करोड़ रुपये या उससे ज्यादा की हेराफेरी का मामला दर्ज होने पर पुलिस ईडी को इसकी जानकारी देती है. फिर पुलिस से मिली जानकारी के आधार पर ईडी थाने से एफआईआर या चार्जशीट की कॉपी लेकर जांच की शुरुआत कर सकती है. इसके अलावा अगर ईडी को मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस से पहले लग जाती है, तो वह मामले पर एक्शन लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होती है.
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