नई दिल्ली: ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के बड़ागांव तहसील के गर्गडबहल गांव की 45 वर्षीय मटिल्दा कुल्लू ने फोर्ब्स की सबसे ताकतवर भारतीय महिलाओं की लिस्ट में जगह बनाई है.
अरुंधति भट्टाचार्य, अपर्णा पुरोहित और रसिका दुग्गल जैसे चर्चित नामों के साथ फोर्ब्स की सबसे ताकतवर भारतीय महिलाओं की लिस्ट में मतिल्दा कुल्लू के नाम ने काफी चर्चाएं बटोरी हैं. फोर्ब्स ने उन्हें सबसे ताकतवर भारतीय महिलाओं की लिस्ट में तीसरा स्थान दिया है.
जानिए कैसे एक 'आशा दीदी' बन गई विश्व की तीसरी सबसे ताकतवर महिला
एक आदिवासी इलाके से आने वाली मतिल्दा कुल्लू अपने गांव में 'आशा दीदी' के नाम से जानी जाती हैं. वे बीते 15 सालों से गांव के निवासियों की सेवा में जुटी हुई हैं.
कोरोना काल में जब लोग अपनों से भी मिलने से कतरा रहे थे, ऐसे दौर में भी मतिल्दा कुल्लू पूरे गांव में घूम-घूमकर लोगों को कोरोना महामारी के खतरों और उसके इलाज के प्रति जागरूक कर रही थीं.
गांव के लोगों की बदली मानसिकता
आशा वर्कर के रूप में मात्र 4,500 रुपये प्रतिमाह कमाने वाली मतिल्दा कुल्लू ने अपने गांव के 964 लोगों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है.
उनके गांव के निवासी बीमार पड़ने पर डॉक्टर के पास न जाकर ओझा और तांत्रिकों के पास इलाज के लिए जाते थे. मतिल्दा ने गांव में घूम-घूमकर लोगों को जागरूक किया और उन्हें डॉक्टरी इलाज के महत्व को समझाया.
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लोगों को डॉक्टर के पास जाने की सलाह देने पर उनका मजाक भी उड़ाया जाता था. लेकिन यह उनके कठिन परिश्रम का ही फल था कि लोग डॉक्टर के महत्व प्रति जागरूक हुए और उनका गांव ओझा और तांत्रिकों के चंगुल से मुक्त हुआ.
आज उसी का फल है की गांव के अधिकतम लोग ओझा-तांत्रिक के पास न जाकर डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं. मतिल्दा गांव भर में नवजात बच्चों को लगने वाले टीकों और उनके इलाज की पूरी जानकारी रखती हैं.
गांव को समर्पित है मतिल्दा का जीवन
मतिल्दा कुल्लू ने अपना जीवन गांव वालों की देखभाल के लिए समर्पित कर दिया है. मतिल्दा के दिन की शुरुआत सुबह 5 बजे होती है.
वे सुबह उठकर घर के काम निपटा घर के चार सदस्यों के लिए खाना बनाती हैं. इसके बाद वे घर के चार मवेशियों को चारा देने के साथ-साथ उनकी पूरी देखभाल भी करती रहती हैं.
ये सारा काम करने के बाद भी आराम करने के बजाय 'आशा वर्कर' के तौर पर दिन-रात गांव के लोगों की सेवा में जुटी रहती हैं.
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