हरियाणा में खेला... मायावती और चौटाला के साथ आने से किसे नुकसान?

BSP INLD Alliance: हरियाणा में BSP और INLD के बीच गठबंधन हो चुका है. अभय चौटाला को गठबंधन का नेता बनाया गया है. वे ही गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के भी दावेदार हैं. गठबंधन दलित और जाट वोटों की गोलबंदी करने का प्रयास करेगा. 

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Jul 11, 2024, 02:38 PM IST
  • तीसरी बार दोनों के बीच गठबंधन
  • 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी बसपा
हरियाणा में खेला... मायावती और चौटाला के साथ आने से किसे नुकसान?

नई दिल्ली: BSP INLD Alliance: हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी (BSP) और इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के बीच गठबंधन की घोषणा हो गई है. बसपा हरियाणा की 90 में से 37 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. जबकि INLD 53 sसीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. INLD के प्रमुख अभय चौटाला ने इसे लोगों की इच्छाओं के अनुसार हुआ गठबंधन बताया है. दोनों दलों की साझेदारी से सीधे तौर पर कांग्रेस को नुकसान हो सकता है, जबकि भाजपा इसे अच्छे संकेत के तौर पर देख रही है. 

चौटाला बने गठबंधन के नेता
अभय चौटाला ने कहा कि हम हम गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा गठबंधन करेंगे, सरकार बनाएंगे. मायावती के भतीजे और बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने अभय चौटाला को गठबंधन का नेता बताते हुए कहा, 'सरकार बनती है तो अभय चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री बनेंगे.' लेकिन सवाल ये उठता है कि BSP और INLD साथ मिलकर सत्ता तक का सफर कैसे तय करेंगे?

जाटों के बाद दलित बड़ी संख्या में
हरियाणा में करीब 22% आबादी जाट समाज की है. ये परंपरागत रूप से कांग्रेस और INLD के वोटर रहे हैं. बीते विधानसभा चुनाव में इन्होंने दुष्यंत चौटाला की पार्टी JJP पर भी भरोसा जताया था. तब जाटों के वोट तीन पार्टियों में बंटे. इस बार भी कुछ ऐसा ही समीकरण बनता दिख रहा है. लेकिन INLD को उम्मीद है कि BSP के साथ आने से दलित वोटर्स भी उनके पक्ष में आएंगे. प्रदेश में जाटों के बाद दलितों की आबादी ही सबसे अधिक है. ये कुल आबादी के करीब 21% हैं. हरियाणा की 90 में से 17 सीटें रिजर्व (आरक्षित) हैं. इन पर दलित वोटर्स पर पूरा दारोमदार है. इसके अलावा, जाट भी INLD और BSP गठबंधन के पक्ष में आते हैं तो बाजी पलटी जा सकती है. 

INLD और BSP के सामने बड़ी चुनौती
हरियाणा में 1991 के बाद से विधानसभा चुनाव में बसपा का कोई प्रत्याशी नहीं जीत पाया है. पार्टी का वोट प्रतिशत भी लगातार घटता जा रहा है. साल 2009 के विधानसभा चुनाव में BSP को 6.73% वोट मिले. 2014 के विधानसभा चुनाव में 4.37% और 2019 के विधानसभा चुनाव में 4.14% वोट ही मिल पाए. कुछ ऐसा ही हाल INLD का भी है. 2014 में INLD प्रदेश की प्रमुख पार्टियों में शामिल थी. तब विधानसभा चुनाव में पार्टी को 24.11% वोट मिले थे. लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले हुई टूट से पार्टी को नुकसान हुआ. INLD का बड़ा वोट JJP के पक्ष में चला गया. INLD को केवल 2.44% वोट ही मिले. 2014 में INLD 19 सीटों पर जीती, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में केवल अभय चौटाला सीट बचा पाए. बाकी सारे प्रत्याशी चुनाव हार गए. 

BJP को क्यों फायदा?
भाजपा ने हरियाणा में गैर-जाट पॉलिटिक्स शुरू की है. मार्च 2024 में पार्टी ने मनोहर लाल खट्टर को CM पद से हटाकर नायब सिंह सैनी को सत्ता सौंप दी थी. JJP से भी गठबंधन तोड़ दिया था. इसका सीधा संदेश यही था कि पार्टी OBC को अपने पाले में करना चाहती है. हरियाणा में OBC जातियां 30% के करीब हैं, ब्राह्मण 8%  और राजपूत 3.5% हैं. लिहाजा, इन्हीं के वोट के सहारे भाजपा को वापसी की उम्मीद है. इन्हीं के दम पर भाजपा विपरीत परिस्थितियों में भी लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीटें जीत गई. अब यदि दलित वोटर कांग्रेस की बजाय BSP और INLD के पक्ष में जाता है तो भाजपा को फायदा हो सकता है.

कांग्रेस को नुकसान क्यों संभव?
हरियाणा में दलित और जाट वोटों पर कांग्रेस का हमेशा से फोकस रहा है. JJP के बनने के बाद कांग्रेस से कुछ जाट वोट भी छिटका. लोकसभा चुनाव में पार्टी ने आरक्षण का मुद्दा उठाकर दलित वोटर्स को अपने पक्ष करने का काम किया. लेकिन अब BSP और INLD का गठबंधन होने से दलित कांग्रेस का साथ छोड़ते हैं तो नुकसान संभव है. 

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